क्या लालबहादुर शास्त्री और नरेन्द्र मोदी में तुलना संभव है ?
नई दिल्ली, 25 सितंबर। भारत के तीन प्रधानमंत्रियों की तीन तस्वीरें चर्चा में हैं। प्रधानमंत्री रहने के दौरान इन्होंने विमान यात्रा के समय का उपयोग अपने कर्तव्य निर्वहन में किया। इन तीन तस्वीरों में लालबहादुर शास्त्री, नरेन्द्र मोदी और मनमोहन सिंह विमान यात्रा के दौरान सरकारी फाइलों को निबटाते हुए दिख रहे हैं। सोशल मीडिया में लालबहादुर शास्त्री की तुलना नरेन्द्र मोदी से की जा रही है।
2020 में बिहार चुनाव से पहले अमित शाह ने जो पहली वर्चुअल रैली की थी उसमें उन्होंने नरेन्द्र मोदी की तुलना लालबहादुर शास्त्री से की थी। लेकिन क्या लालबहादुर शास्त्री और नरेन्द्र मोदी में तुलना हो सकती है ? इन दोनों नेताओं की राजनीतिक पृष्ठभूमि अलग है और इनके प्रधानमंत्री बनने की परिस्थितियां भी अलग हैं। फिर इनमें कैसे तुलना हो सकती है ? राजनीतिक वैज्ञानिकों का मानना है कि जैसे क्रिकेट में डॉन ब्रैडमैन और सचिन तेंदुलकर की तुलना संभव नहीं है वैसे राजनीति में लालबहादुर शास्त्री और नरेन्द्र मोदी के बीच भी तुलना नहीं हो सकती।
लालबहादुर शास्त्री कैसे बने थे प्रधानमंत्री ?
27 मई 1964 को प्रधानमंत्री जवाहल लाल नेहरू का निधन हो गया था। तब सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा हुआ कि नेहरू के बाद सत्ता की बागडोर कौन संभालेगा ? कौन नेता जवाहर लाल नेहरू की जगह लेने के काबिल है ? सवाल बहुत कठिन था। उस समय मोरारजी देसाई और लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे थे। कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज मोरारजी देसाई को पसंद नहीं करते थे। मोरारजी ईमानदार और योग्य नेता थे लेकिन उनका स्वभाव बहुत रुखा और सख्त था। जब कि लालबहादुर शास्त्री विनम्र, मृदुभाषी और सहज नेता थे। इन खूबियों के साथ-साथ वे त्वरित फैसला लेने वाले नेता थे। पिता के निधन के बाद इंदिरा गांधी सदमे थीं। इसलिए वे सत्ता की जोड़तोड़ से बिल्कुल अलग थीं। इस बीच चर्चित पत्रकार कुलदीप नैयर ने यूएनआइ में एक खबर ब्रेक की - मोरारजी देसाई भारत के अगले प्रधानमंत्री बनने वाले हैं।
एक खबर से कैसे बदल गयी राजनीति ?
जैसे ही मोरारजी देसाई के भावी प्रधानमंत्री बनने की खबर प्रकाशित हुई कांग्रेस में खलबली मच गयी। कांग्रेस कार्यकारिणी के अधिकतर सदस्यों ने यह मान लिया कि मोरारजी देसाई ने दबाव बनाने के लिए यह खबर प्लांट करायी है। इसे मोरारजी देसाई की अतिमहत्वाकांक्षा से जोड़ कर देखा जाने लगा। कांग्रेस अध्यक्ष कामराज पहले से खार खाये बैठे थे। उन्होंने शास्त्री जी को कांग्रेस संदीय दल का नेता चुने जाने के लिए लॉबिंग शुरू कर दी। कुलदीप नैयर की खबर मोरारजी देसाई के खिलाफ चली गयी। लालबहादुर शास्त्री को कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुन लिया गया। शास्त्री जी के मन में जवाहर लाल नेहरू के प्रति अगाध श्रद्दा थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद वे इंदिरा गांधी को अपनी कैबिनेट में शामिल करना चाहते थे। नेहरू जी के अंतिम संस्कार के बाद इंदिरा गांधी उनके अस्थि विसर्जन के लिए दिल्ली से प्रयागराज जा रहीं थीं।
इंदिरा गांधी कैसे बनीं शास्त्री कैबिनेट में मंत्री ?
स्टेशन पर शास्त्री जी खुद इंदिरा गांधी को छोड़ने आये थे। रेलवे स्टेशन पर उन्होंने एक बार फिर इंदिरा गांधी से कैबिनेट में शामिल होने का आग्रह किया। इंदिरा गांधी उन्हें झिड़क कर आगे बढ़ गयी। तब शास्त्री जी ने कहा अगर आप मंत्री नहीं बनेंगी तो मुझे विजयालक्ष्मी पंडित (नेहरू जी की बहन) को कहना पड़ेगा। यह सुन कर इंदिरा गांधी परेशान हो गयीं। उनका अपनी बुआ के साथ छत्तीस का आंकड़ा था। प्रयागराज से लौटने के बाद इंदिरा गांधी शास्त्री जी से मिलने गयीं। उन्हें बुआ (विजया लक्ष्मी पंडित) को मंत्री बनने से रोकना था। इंदिरा गांधी कैबिनेट में शामिल होने के लिए राजी हो गयीं। उन्हें सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया।
वरिष्ठ नेता के प्रति किसका कैसा भाव ?
शास्त्री जी अपने वरिष्ठ नेता के प्रति समर्पण और श्रद्धाभाव के साथ प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की परिस्थितियां बिल्कुल अलग थीं। उन्हें गुजरात की राजनीति से केन्द्र में आना था। 2013 में जब गोवा कार्यकारिणी की बैठक में उन्हें भाजपा चुनाव अभियान समिति (2014) का अध्यक्ष बनाया गया तो पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी नाराज हो गये। इसके पहले उन्हें भाजपा में पीएम इन वेटिंग कहा जाता था। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने उन्हें रिप्लेस कर अपने लिए जगह बनायी। इस फैसले से लालकृष्ण आडवाणी इतने नाराज थे कि उन्होंने गोवा बैठक खत्म होने के अगले ही दिन (10 जून 2013) पार्टी के सभी प्रमुख पदों से इस्तीफा दे दिया था। वे गोवा में आयोजित भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में बीमार होने की बात कह कर शामिल भी नहीं हुए थे।
तीन PM, अलग अलग रंग
हालांकि भाजपा संसदीय बोर्ड ने आडवाणी का इस्तीफा नामंजूर कर दिया था लेकिन पार्टी के शीर्ष स्तर पर मनमुटाव शुरू हो गया था। लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था, पार्टी के कुछ नेता अपने निजी एजेंडे को तरजीह दे रहे हैं। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता लालकृष्ण आडवाणी की नाराजगी के गलियारे से होकर गुजरा है। यानी प्रधानमंत्री बनने की अलग अलग परिस्थितियों के आधार लालबहादुर शास्त्री और नरेन्द्र मोदी के बीच के अंतर को समझा जा सकता है। जहां तक मनमोहन सिंह की बात है तो उनके प्रेस सलाहकार रहे संजय बारू ने खुद उनके लिए 'एक्सिडेंटल प्राइममिनिस्टर' शब्द का प्रयोग किया है। मतलब मनमोहन सिंह को परिस्थितियों का प्रधानमंत्री बताया गया है। इसलिए उनकी तुलना लालबहादुर शास्त्री या नरेन्द्र मोदी से नहीं की जा सकती।