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लाशों की सौदागर तीस्ता सीतलवाड़

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यह बात अहमदाबाद में कौन नहीं जानता कि सांप्रदायिक दंगा विशेषज्ञ तीस्ता जावेद सीतलवाड़ गुलबर्गा सोसायटी में लाशों का एक संग्राहलय बनाना चाहती थी। इस संग्राहलय को बनाने के बहाने वह पूर्व सांसद एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी को लेकर दुनिया भर के अलग-अलग देशों में गई। साम्प्रदायिक दंगों को नरसंहार प्रचारित करके खूब सारा धन इकट्ठा किया। गुलबर्गा में लाशों का संग्रहालय तो नहीं बन पाया लेकिन इसके नाम पर उसके पास बहुत सारा धन एकत्र हो गया।

लाशों की सौदागर तीस्ता सीतलवाड़

अब इस बात को लंबा अर्सा गुजर गया है। जो धन जुटाया गया था, उसका पता नहीं, कहाँ गायब हो गया। तीस्ता ने कहा था कि वह पैसे देकर गुलबर्गा सोसायटी खरीद लेगी लेकिन गुलबर्गा सोसायटी के लोग आज भी सड़क पर ठोकरे खा रहे हैं। उन्हें पैसा नहीं मिला। तीस्ता अपनी दुनिया में व्यस्त हो गयीं और उन्होंने पीड़ितों का फोन तक उठाना बंद कर दिया।

एक दिन पहले 25 जून 2022 को जब मीडिया में तीस्ता की गिरफ्तारी की खबर आई तो ऐसा ही लगा कि अब उसे धोखाधड़ी की सजा मिलेगी जब गुजरात दंगा मामले में झूठी जानकारी देने के आरोप में गुजरात एटीएस ने तीस्ता सीतलवाड़ को उनके घर से गिरफ्तार किया। मतलब धोखाधड़ी का मामला उस पर अलग से चलेगा। अहमदाबाद पुलिस अपराध शाखा में इंस्पेक्टर दर्शनसिंह बी बराड की शिकायत पर तीस्ता के अलावा पूर्व आईपीएस अफसर संजीव भट्ट और आरबी श्रीकुमार के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।

संजीव भट्ट और आरबी श्रीकुमार ने एसआईटी के सामने कानून व्यवस्था से जुड़ी जिस बैठक का हवाला देकर अपना बयान दर्ज कराया था, अब जांच से यह बात सामने आई है कि ये दोनों उस बैठक में शामिल ही नहीं हुए थे। एफआईआर में इन पर यही आरोप लगे हैं कि आरोपियों ने जकिया जाफरी के माध्यम से न्यायालय में याचिकाएं लगाईं और एसआईटी और दूसरे जांच आयोग को गलत जानकारियां देते रहे। 2002 गुजरात दंगों में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में कहा कि जजमेंट में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी आरोपों को खारिज किया है। आप कह सकते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने यह आरोप सिद्ध किया है कि जो कुछ हुआ वह राजनीति द्वारा प्रेरित था।

श्री शाह ने तीस्ता के नाम का उल्लेख करते हुए कहा- "मैंने बहुत जल्दबाजी में जजमेंट पढ़ा है, लेकिन इसमें तीस्ता सीतलवाड़ का नाम बहुत स्पष्ट दिया है। तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ ने हर थाने में भाजपा के कार्यकर्ता को दंगों में शामिल करने वाली ऐप्लिकेशन दी थी। मीडिया का दबाव इतना था कि ऐसी ऐप्लिकेशन को सच मान लिया गया। जनता ने कभी इन आरोपों को स्वीकारा नहीं। लेकिन मीडिया, एनजीओ और हमारी विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने भाजपा के खिलाफ गलत आरोपों को चलाया।"

फरवरी 2002 में गुजरात में साम्प्रदायिक दंगे हुए थे। उन दिनों तीस्ता मुम्बई में रहती थी। तीस्ता को पीड़ितों की मदद के लिए अहमदाबाद आने का न्योता रईस खान पठान ने दिया था, जो कि स्वयं मुसलमानों के बीच एक सामाजिक कार्यकर्ता था। रईस के बुलाने पर ही तीस्ता मुम्बई से दंगा पीड़ितों की मदद के लिए गुजरात आई थी। मुम्बई के साम्प्रदायिक दंगों के समय रईस व तीस्ता साथ काम कर चुके थे। रईस खान तीस्ता को गुजरात दंगा पीड़ितों तक लेकर गए। तीस्ता ने पीड़ितों का वीडियो बनाकर वेवसाइट पर डाला। उनकी एक पत्रिका थी, 'कम्युनलिज्म कॉम्बैट', उसमें उन्होंने तमाम पीड़ितों और फरियादियों की तस्वीरों और बयानों को इंगलिश और गुजराती में प्रकाशित किया।

गुजरात आने से पहले तीस्ता एक अंग्रेजी अखबार में काम कर चुकी थी। इसलिए उन्होंने अपने संबंधों का इस्तेमाल करके मीडिया में अपनी ब्रांडिंग प्रारंभ कर दी। तीस्ता ने गुलबर्गा, नरोडा पाटिया, नरोडा गांव, ओड, सरदारपुर में पीड़ितों को न्याय दिलाने की लड़ाई जमीन पर कम, मीडिया और फंडिंग एजेन्सी, देसी-विदेशी दानदाताओं के सामने अधिक लड़ी।

इस पूरे मामले पर जब रईस खान पठान से बात हुई थी, तो उन्होंने बताया कि "होता यह था कि तीस्ता जो एफिडेविट तैयार करती थी, पीड़ितों से नोटरी करवा कर अपने पास ही रखती थी। 2002 से 2012 तक बिना किसी रोक टोक के वह यह सब करती रही।" मतलब पीड़ितों को पता ही नहीं होता था कि तीस्ता उनके नाम पर क्या बयान लिख रही है।

2007 में दो-ढाई लाख रुपए में अहमदाबाद में रहने लायक घर मिल जाता था। 24 दिसम्बर 2007 गुलबर्गा सोसायटी के एक पीड़ित मोहम्मद शरीफ नसरूद्दीन शेख के पास गुलबर्गा सोसायटी खरीदने के लिए 01 करोड़ 86 लाख का ऑफर लेकर एक खरीददार आया था। इस सोसायटी में कुल सोलह घर थे। इस मामले में मोहम्मद शरीफ, रईस खान की राय जानना चाहते थे। जब उन्होंने रईस से संपर्क किया तो रईस ने कहा- तीस्ता से बात करनी होगी।

मोहम्मद शरीफ के प्रस्ताव के संबंध में जब रईस ने तीस्ता को बताया, वह उन पर नाराज हो गईं। उनका कहना था- "तुमने यह होने कैसे दिया? उनके पास ग्राहक आए कैसे? सोसायटी बेचने का ख्याल भी उनके दिमाग में कैसे आया?" फिर तीस्ता ने रईस को अहमदाबाद उच्च न्यायालय में वकील सुहेल तीरमिजी के पास गुलबर्गा सोसायटी के लोगों को लेकर आने को कहा। 25 दिसम्बर 2007 को तमाम लोग वकील के यहां इकट्ठे हुए। तीस्ता ने वहां कहा कि मैं नहीं चाहती कि यह सोसायटी बिके। दो महीने में आपसे यह सोसायटी पैसे देकर मैं खुद खरीद लूंगी। तीस्ता ने अपना यह वादा पूरा नहीं किया।

फिर आया साल 2012, जब गुलबर्गा सोसायटी के पीड़ितो ने पुलिस में जाकर तीस्ता के खिलाफ शिकायत लिखाई। पीड़ितों का कहना था कि तीस्ता गुलबर्गा सोसायटी के पीड़ितों के नाम का इस्तेमाल करती है और उनके नाम पर 28 फरवरी को प्रत्येक साल सोसायटी के अंदर कार्यक्रम करती है। बड़े-बड़े लोगों और मीडिया को बुलाती है। कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग करती है और उस डॉक्यूमेन्ट्री को दिखाकर धन एकत्र करती है लेकिन उन पैसों से सोसायटी के लोगों की कोई मदद नहीं हो रही। गुलबर्गा के लोगों ने पुलिस से निवेदन किया कि सोसायटी में तीस्ता का प्रवेश प्रतिबंधित किया जाए। तीस्ता ने गुजरात दंगों के दौरान सबरंग ट्रस्ट' और 'सिटीजन फार जस्टिस एंड पीस' नाम के दो एनजीओ में पैसे मंगाए। इसके अलावा तीस्ता ने 'सबरंग कम्युनिकेशन' नाम से एक कंपनी भी बनाई हुई है।

प्रकारान्तर में तीस्ता ने रईस खान को अपने एनजीओ से अलग कर दिया। जब रईस ने तीस्ता को एनजीओ से अलग किए जाने की वजह जानने के लिए फोन किया तो बकौल रईस खान उन्होंने धमकाते हुए कहा - ''आज के बाद आप सीजेपी (Citizens for Justice and Peace) में नहीं हैं। आगे से मुझे फोन ना कीजिए। बाकि केन्द्र की सरकार से मेरी नजदीकी है। इस बात का अंदाजा तुम्हे होगा। मैं तुम्हारी पूरी जिन्दगी खत्म कर दूंगी और पता भी नहीं चलेगा कि तुम कहां चले गए?''

कांग्रेस की सरकार ने गुजरात दंगों में उनकी सक्रियता को देखते हुए 2002 में ही राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार दिया और 2007 में फिर उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया। इसके अलावा तीस्ता सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली नेशनल एडवाइजरी काउंसिल की भी सदस्य थीं। आरोप तो यह भी लगते रहे हैं कि कांग्रेस ने तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ को जो 1.4 करोड़ रुपये दिए थे। इसका उद्देश्य ही मोदी के खिलाफ अभियान चलाने और भारत को बदनाम करना था।

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(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

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English summary
No Body Know in Ahmedabad that Teesta Javed Setalvad wanted to build a museum of corpses in Gulbarga Society.
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