एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा... तू गलत जगह पैदा हो गई स्वीटी
नई दिल्ली। तीन दिन पहले रिलीज हुई फिल्म 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' दो लड़कियों के बीच प्रेम कहानी को दिखाते हुए बस यही कहती है कि ये सब नॉर्मल है। फिल्म की नायिका स्वीटी (सोनम कपूर) ने लगातार बताने की कोशिश की कि समलैंगिकता को टैबू की तरह ना देखें, इसे बीमारी ना समझें। वो लोग जो अपने सेक्सुअल रुझान को लेकर माइनॉरिटी हैं, वो भी आम इंसान है लेकिन फिल्म देखते-देखते ही लगा कि ये सब बातें कौन सुन रहा है। शायद कुछ लोग उस पर तरस तो खा रहे हैं लेकिन उसे नॉर्मल कौन मानने को तैयार है?
साउथ दिल्ली के पॉश टाइप एरिया के मॉल में इतवार को मैं ये फिल्म देखने गया। जैसा कि अब अमूमन होता है, मॉल वगैरह में एक खास तबके के लोग होते हैं, तथाकथित उच्चवर्ग के लोग। जिन्हें मॉडर्न और खुले विचारों वाला भी प्रचारित किया जाता है। फिल्म शुरू होती है तो सीधे समलैंगिकता की बात नहीं आती, इंटरवल पर जाकर स्वीटी हीरो (राजकुमार राव) से कहती है कि वो उससे प्यार नहीं करती वो तो किसी भी लड़के से प्यार नहीं करती बल्कि एक लड़की उसे पसंद हैं। ये कहते हुए उसकी आंखों में आंसू होते हैं लेकिन हीरो उस पर हंसता है और हीरो से ज्यादा तेज हंसता है दिल्ली के पॉश इलाके का ये सिनेमा हॉल।
सीन के एकदम बाद इंटरवल होता है और लाइट जलती है तो अंदाजन फिल्म देख रहे आधे लोग पेट पकड़े हुए उठते हैं। मेरे बराबर में बैठी एक लेडी अंग्रेजी में बड़बड़ती हैं कि क्या किसी ने भी फिल्म के बारे में नहीं पढ़ा है। उनका मतलब था, फिल्म में लड़कियों का प्यार दिखाया गया है, ये पहले से पता होना चाहिए लोगों को, हंस क्यों रहे हैं। मुझे लगा कि कुछ लोग शायद इसलिए नहीं हंसे कि उन्हें इस बात का पहले से पता था वर्ना हो सकता है कि वो भी हंस दिए होते।
फिल्म आगे बढ़ती है और क्योंकि वो फिल्म है, हमारी फिल्मों में हैप्पी एंडिंग होती ही है। तो फिल्म का हीरो एक प्ले लिखता है और इसके जरिए स्वीटी की समलैंगिकता को लेकर उसके परिवार को सहज करने की कोशिश करता है। प्ले देखकर मोगा (पंजाब) की स्वीटी का पिता पिघल जाता है और उसकी समलैंगिकता को कुबूल लेता है। दो लड़कियां हाथ पकड़कर खड़ी हैं और परिवार के भी ज्यादातर लोग उन्हें कुबूल कर ले रहे हैं। फिल्म खत्म होते-होते बेहद खुश दिख रही स्वीटी मोगा से विदा हो रहे हीरो से कह रही है- इस प्ले को कस्बों और गांव तक ले जाओ साहिल, ताकि किसी और स्वीटी को जिंदगी मिल सके।
'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' ने भी तो वही कहा, जो स्वीटी फिल्म के आखिर में साहिल को कह रही है। फिल्म यही चाहती है कि स्वीटी को अपनी सहेली के साथ जीने दो क्योंकि वो वहीं खुश है, उसकी दुनिया आप से अलग हो सकती है लेकिन वो 'बीमार' नहीं है। लेकिन जब लड़की के लड़की से प्यार पर दिल्ली के पॉश इलाके में फिल्म देख रहे 'अंग्रेजीदां' लोगों की हंसीं याद आती तो ख्याल आता है, इनके बीच कैसे रहेगी स्वीटी, यहां कहां है स्वीटी की जगह? स्वीटी तो चाहती है उसे रोहतक के गांव में, सीवान के मुहल्ले में, भोपाल, मेरठ और रांची के कस्बों में उसे उसके हिस्से की जगह मिल जाए, वो उसे इंसान समझें लेकिन जब दिल्ली इसके लिए तैयार नहीं तो क्या कहें, यहीं ना कि तुम गलत जगह पैदा हो गई हो स्वीटी।