इंडिया गेट से: राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद की शर्तें पूरी करते हैं क्या?
मधुसूदन मिस्त्री कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव इंचार्ज हैं। उन्होंने खुद ही कांग्रेस चुनाव प्रक्रिया के फर्जीवाड़े की पोल खोल दी है। जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि आनन्द शर्मा ने यह आरोप लगाया है कि वोटरों की सूची ही तैयार नहीं की गई, निचले स्तर पर वोटरों का चुनाव ही नहीं हुआ, तो मधुसूदन मिस्त्री ने कहा कि आनन्द शर्मा खुद भी ऐसे ही एआईसीसी के सदस्य बनते रहे हैं।
गुलाम नबी आज़ाद ने अपनी चिठ्ठी में यह बात लिखी थी कि कांग्रेस संगठन की चुनाव प्रक्रिया तमाशा और दिखावा है। देश में कहीं भी किसी भी स्तर पर संगठनात्मक चुनाव नहीं होता। दिल्ली के 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय में बैठ कर एक लिस्ट बनाई जाती है और प्रदेश अध्यक्षों को उस पर दस्तखत करने को कह दिया जाता है। बूथ, ब्लाक या जिला स्तर पर कहीं भी वोटर लिस्ट प्रकाशित नहीं की जाती। लेकिन उस लिस्ट के आधार पर चुनाव करवाए जाते हैं। कांग्रेस मुख्यालय में बैठी एक मंडली ने उस कांग्रेस को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है, जो कभी राष्ट्रीय आन्दोलन हुआ करती थी। अब कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव इंचार्ज मधुसूदन मिस्त्री ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि कांग्रेस में ऐसे ही होता है।
कांग्रेस
पार्टी
के
संविधान
में
कांग्रेस
अध्यक्ष
का
चुनाव
करने
की
एक
प्रक्रिया
है।
कांग्रेस
में
पहले
एक
साल
तक
सदस्यता
अभियान
चलता
है।
सदस्यता
के
बाद
बूथ
कमेटी
और
ब्लाक
कमेटी
बनती
है।
बूथ
कमेटी
और
ब्लाक
कमेटी
मिल
कर
एक
पीसीसी
सदस्य
चुनते
हैं।
यही
चुने
हुए
पीसीसी
सदस्य
प्रदेश
अध्यक्ष
और
राष्ट्रीय
अध्यक्ष
का
चुनाव
करते
हैं।
कांग्रेस
अध्यक्ष
के
चुनाव
के
बाद
कांग्रेस
कार्यसमिति
का
चुनाव
होता
है।
यह
कार्यसमिति
कांग्रेस
में
बहुत
ज्यादा
महत्वपूर्ण
है,
क्योंकि
कांग्रेस
के
सारे
महत्वपूर्ण
फैसले
यही
समिति
लेती
है।
कांग्रेस
अध्यक्ष
को
भी
कार्यसमिति
कंट्रोल
करती
है।
कार्यसमिति
का
चुनाव
करने
की
अलग
प्रक्रिया
है।
वह
समझना
भी
जरूरी
है।
पीसीसी डेलिगेट यानी प्रदेश कांग्रेस कमेटियों के जो सदस्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव करते हैं, वे हर आठ सदस्यों पर एक एआईसीसी का मेम्बर भी चुनते हैं। मान लीजिए किसी प्रदेश में पीसीसी के 80 सदस्य चुने गए, तो उस राज्य से एआईसीसी के आठ सदस्य चुने जाएंगे। जिन्हें कांग्रेस कार्यसमिति के 12 सदस्यों का चुनाव करने का अधिकार होगा।
इसके अलावा कांग्रेस के अध्यक्ष, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्षों, प्रदेश कांग्रेस कमेटियों के अध्यक्षों, संसद में पार्टी के नेता और संसदीय दल से चुने गए 15 सांसदों, विधानसभाओं और विधान परिषदों में कांग्रेस के नेताओं और विशेष श्रेणियों के मनोनीत सदस्यों को भी वोट डालने का अधिकार होगा। केंद्र शासित चंडीगढ़, अंडमान निकोबार, दादरा नगर हवेली, दमन और दीव और लक्षद्वीप से चार चार सदस्य भेजे जाने का प्रावधान है।
कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद एआईसीसी का अधिवेशन बुलाया जाता है, जहां कार्यसमिति के 12 सदस्यों का चुनाव होता है। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष 12 अन्य सदस्यों को मनोनीत करते हैं। पर आमतौर पर अध्यक्ष को चुनाव से आने वाले कार्यसमिति मेंबर भी मनोनीत करने का अधिकार दे दिया जाता है।
आजादी के 75 सालों में 40 साल नेहरू-गांधी परिवार से कोई न कोई अध्यक्ष रहा तो 35 साल पार्टी की कमान गांधी-परिवार से बाहर रही। पिछले तीन दशक में सिर्फ दो ही मौके ऐसे आए हैं जब चुनाव कराने की जरूरत पड़ी हो।1997 में सीताराम केसरी के खिलाफ शरद पवार और राजेश पायलट ने पर्चा भरा था, सीताराम केसरी को 6224 वोट मिले, शरद पवार को 882 और राजेश पायलट को 354 वोट मिले थे।
1998 में गांधी परिवार के वफादारों ने सीडब्ल्यूसी की बैठक में सीताराम केसरी का तख्ता पलट कर सोनिया गांधी को अध्यक्ष बना दिया था। इसके बाद सन 2000 में दूसरी बार वोटिंग की नौबत आई, तब जब सोनिया गांधी को कांग्रेस के भीतर से दिग्गज नेता जीतेंद्र प्रसाद से चुनौती मिली। सोनिया गांधी को 7448 वोट मिले, वहीं प्रसाद को सिर्फ 94 वोट मिले। लेकिन जब से सोनिया गांधी अध्यक्ष बनी तब से सीडब्ल्यूसी के चुनाव होने बंद हो गए।
सीडब्ल्यूसी के आख़िरी दो चुनाव याद आते हैं। एक नरसिंह राव के कार्यकाल में हुआ और दूसरा सीताराम केसरी के कार्यकाल में। नरसिंह राव के जमाने में तिरूपति में कांग्रेस अधिवेशन हुआ था, जहां सीडब्ल्यूसी के चुनाव में अहमद पटेल, अर्जुन सिंह, ए.के.एंटनी बड़े मार्जिन से जीते थे, जबकि मीरा कुमार, तारिक अनवर और वाई.एस. राजशेखर रेड्डी हारने वालों में प्रमुख थे। इस चुनाव में महिलाओं और पिछड़े वर्गों की हार के कारण नरसिंह राव ने सभी से इस्तीफे ले कर अर्जुन सिंह और शरद पवार को मनोनीत कैटागिरी में डाल दिया था, जिससे पार्टी में भारी असंतोष पैदा हो गया और पार्टी दो फाड़ हो गई थी।
दूसरा उदाहरण 1998 में सीताराम केसरी के कार्यकाल में कोलकाता अधिवेशन का है। जहां एक ऑफिसियल पैनल बना था, और एक अन-ऑफिसियल। ऑफिसियल पैनल से प्रणब मुखर्जी, अहमद पटेल, ए .के. एंटनी, तारिक अनवर, वी.बी.रेड्डी आदि जीते थे, जबकि शरद पवार और गुलाम नबी आज़ाद अन-ऑफिसियल पैनल से जीते थे, राजेश पायलट चुनाव हार गए थे। बाद में इसी सीडब्ल्यूसी ने सीताराम केसरी को अध्यक्ष पद से हटा कर सोनिया गांधी को अध्यक्ष चुन लिया था। सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद पिछले 25 साल से कांग्रेस में संगठनात्मक चुनाव एक छलावा बन कर रह गए हैं।
गुलामनबी आज़ाद और आनन्द शर्मा ने जो बात अब खुल कर कही है, वह कांग्रेस में सचमुच नयी नहीं है। लंबे समय से सब फर्जीवाड़ा हो रहा है, एआईसीसी में बैठ कर ही पीसीसी और एआईसीसी की सूचियाँ बनती हैं, कहीं किसी स्तर पर चुनाव नहीं हो रहा। इसीलिए आनंद शर्मा ने कहा कि सूची में कौन हैं, इस बारे में ब्लॉक, जिला समितियों और पीसीसी को कुछ पता ही नहीं है, जबकि कायदे से पीसीसी मेंबर उन्हें चुनने थे।
अब कांग्रेस अध्यक्ष से जुडी एक और महत्वपूर्ण बात। कांग्रेस का सदस्य वही बन सकता है, जो 9 महत्वपूर्ण शर्तों को पूरा करता हो। और यह बात पार्टी अध्यक्ष पर तो लागू होगी ही। उसकी उम्र न्यूनतम 18 साल हो। दूसरी- वह आदतन प्रमाणिक खादी बुनकर हो, यानि खुद चरखा कातना उस की आदतों में शामिल हो।
तीसरी- वह शराब और नशीले पदार्थों से दूर रहता हो। चौथी- वह छूआछूत में विशवास नहीं रखता हो। पांचवीं- वह जातिवाद और सांप्रदायिकता में विशवास नहीं रखता हो। छटी - पार्टी की तरफ से उसे जो भी काम सौंपा जाए, वह उसे तन मन से काम करने का वचन दे। सातवी- उसके पास सीलिंग कानूनों से ज्यादा संपत्ति नहीं होनी चाहिए। आठवीं- वह धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और लोकतंत्र के सिद्धांतों का पालन करेगा और इन्हें बढावा देगा। पार्टी की नीतियों और सिद्धांतों की किसी भी तरह आलोचना नहीं करेगा। और नौवीं शर्त यह है कि वह एआईसीसी की और से अनुमोदित पत्रिकाओं की सदस्यता लेगा।
अब यह सब जानते हैं कि कांग्रेसी इन शर्तों का कितना पालन करते हैं। हालांकि अभी तय नहीं हुआ है कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद के लिए मानेंगे या नहीं। अगर वह नहीं मानते हैं तो कई लोग मैदान में उतर सकते हैं। यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि उपर से जो तय हो जाएगा, उस के सामने कोई खड़ा नहीं होगा। लेकिन अगर राहुल गांधी पर ही सहमती बनती है, तो आप ऊपर बताए गए नौ सिद्धांतों को सामने रख कर मूल्यांकन करिए कि वह उन पर खरे उतरते हैं या नहीं। खासकर दूसरी, तीसरी और सातवीं शर्त पर गौर जरुर करना। राहुल गांधी ने चरखे के सामने बूथ कर फोटो तो जरुर खिंचवाया है, लेकिन आदतन तो क्या कभी एक बार भी पांच मिनट के लिए चरखा काटने की कोशिश की होगी?
जहां तक शराब सेवन और नशा करने की बात है, तो इस बारे में तो उन्हें ही शपथपूर्वक कुछ कहना होगा। 2013 में सुब्रह्मण्यम स्वामी ने दावा किया था कि राहुल गांधी बोस्टन हवाई अड्डे पर भारी मात्रा में कैश और नशीले पदार्थ के साथ पकड़े गए थे, तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के स्तर पर हस्तक्षेप हुआ था और उन्हें अमरीका में निश्चित सजा से बचाया गया था। इसी तरह 2018 में पांच साल बाद फिर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने राहुल गांधी का डोप टेस्ट करवाने की मांग करते हुए कहा था कि वह कोकीन का नशा करते हैं। इस पर देशभर में बड़ा हंगामा हुआ था, कांग्रेस ने स्वामी के खिलाफ देश भर में 39 एफआईआर दर्ज करवा दी थीं।
इसके अलावा स्वामी ने उन पर दो देशों की नागरिकता का भी आरोप लगाया हुआ है। जहां तक सीलिंग से ज्यादा जमीन नहीं होने का सवाल है, तो किसी को पता ही नहीं है कि गांधी परिवार के प्रत्येक सदस्य के पास उनके नाम पर और बेनामी कितनी जमीन-जायदाद है। अब कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कौन सामने आते हैं और कितनी शर्तों को पूरा करते हैं, वह देखना रोचक होगा।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)