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मोदी के सामने विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के दर्जन भर दावेदार

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मई 2024 में अगला प्रधानमंत्री तय होना है। दिल्ली के सियासी घमासान का नया रोमांचक दौर शुरु होने में पांच सौ दिन से भी कम रह गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारतीय जनता पार्टी से एकमात्र दावेदार होंगे, यह स्पष्ट है।
पटना की एक बैठक में गृहमंत्री अमित शाह ने इसका विधिवत ऐलान कर दिया था, जिसके बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए से छिटककर आरजेडी के पाले में पहुंच गए। वह तो प्रधानमंत्री बनने का ख्बाव सजाकर ही दूर गए हैं लेकिन बिखरे विपक्ष से प्रधानमंत्री का अगला उम्मीदवार कौन होगा, यह तय होना बहुत मुश्किल है।

Oppositions PM claimant in front of Narendra Modi

राजनीति संभावनाओं का खेल जरूर है लेकिन ये संभावना भी तो किसी एक के पक्ष में ही जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी के सामने अपना सर्वमान्य विकल्प रखने में अब तक विपक्ष पूरी तरह से विफल रहा है। विपक्ष का यही बिखराव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सबसे बड़ी ताकत रही है। आज एक नहीं बल्कि दर्जन भर विपक्ष के कद्दावर नेता हैं, जो अंदरुनी तौर पर प्रधानमंत्री होने की दौड़ में शामिल हैं। उनमें से कुछ निरंतर सक्रिय हैं। उनके बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन नए दावेदार बनकर उभरे हैं। वह लगातार दिल्ली के चक्कर काट रहे हैं।

दक्षिण भारत में 90 लोकसभा सीटों का विशद ब्लॉक है। लोकसभा की तमिलनाडु (39), पुड्डुचेरी (1), अंडमान (1), लक्षद्वीप (1), केरल (20), कर्नाटक (28), आंध्र प्रदेश (25) तथा तेलंगाना (17) सीटें हैं। इन सीटों पर कर्नाटक के रास्ते डोर जमाए रखने के अलावा भाजपा के लिए कोई और विकल्प तैयार नहीं हो पाया है। मतलब इन सभी सीटों को किसी एक दल अथवा बड़े नेता के असर से बांधे रखना बड़ी चुनौती है।

दक्षिण से स्टालिन के अलावा तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की रुचि भी दिल्ली की राजनीति में सक्रिय होने की है। दक्षिण भारत के राज्य केरल में जमे कम्युनिस्टों के लिए फिलहाल आगे विस्तार का रास्ता बंद लग रहा हो, लेकिन भविष्य की कौन कहे। उनके लिए विपक्ष की राजनीति में एचडी देवगौड़ा वाला संयोग एक मिसाल है। विपक्ष के कई हौसलामंद नेता मानकर चल रहे हैं कि सत्ता पक्ष को बहुमत नहीं मिला तो कही की ईंट कहीं का रोड़ा जुटाकर किसी को भी नेता मानकर भानुमति का कुनबा बना ही लिया जाएगा।

ऐसे में विपक्ष की हर चाल पर भाजपा की पैनी नजर है। भाजपा में आंतरिक बदलाव का एक चरण पूरा होना बाकी है। लोकसभा चुनाव में उतरने से पहले जगत प्रकाश नड्डा की जगह नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना है। यह हिमाचल प्रदेश औऱ गुजरात चुनाव के बाद होना है। उत्तर प्रदेश के बिखरे संगठन को एकजुट कर करिश्मा कर दिखाने वाले सुनील बंसल को दिल्ली लाने के पीछे की यह एक वजह बतायी जा रही है।

सत्तारुढ भाजपा के सधे कदम से विपक्ष में छटपटाहट नजर आने लगी है। बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव बार बार मुख्यमंत्री नीतीश को प्रधानमंत्री मैटेरियल बता रहे हैं। इससे कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाने साधे जा रहे हैं। लेकिन आईटी, ईडी और सीबीआई लालू परिवार की चाहत के आगे सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है।

पाटलिपुत्र की राजनीति से दूर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल बेवड़ों को खुश करने के चक्कर में शराब घोटाले में जा फंसे हैं। कहते हैं कि एक के साथ एक बोतल फ्री देने की स्कीम से वह शराबखोरों की बड़ी आबादी को फांसने की फिराक में थे, लेकिन एफआईआर, जांच और छापेमारी बता रही है कि इस बार कलंक के छींटे से बचना मुश्किल है। वह हमेशा से खुद को राहुल गांधी से ज्यादा होशियार और साफ सुथरा बताते रहे हैं। लेकिन भ्रष्टाचार में उलझकर मुश्किल में फंस गये हैं। लोकसभा चुनाव आते आते संभव है कि यह मसला आम आदमी पार्टी के लिए बड़ी मुसीबत बन जाए।

कांग्रेस से पंजाब छीनने के बाद आप गुजरात औऱ हिमाचल प्रदेश में भाजपा से सीधे मुकाबले में है। भाजपा पर सबसे ज्यादा भारी पड़ते दिखने के पीछे केजरीवाल का असल मकसद है कि वह विपक्षी नेताओं की भीड़ से खुद को नेता मनवा लें। लेकिन विपक्ष से प्रधानमंत्री का एकमात्र दावेदार बन जाना कितना मुश्किल है, यह उनको पता चलने लगा है।
केजरीवाल की पेशबंदी को कांग्रेस बखूबी समझ रही है। लिहाजा, केजरीवाल के भ्रष्टाचार पर उनके नेता जब तब जमकर बोलने से बाज नहीं आ रहे। इसके अलावा कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव से ऐन पहले राहुल को देशभर की पदयात्रा पर भेजने का कार्यक्रम बना रखा है। उससे विपक्ष के खेमे में भारी हलचल है।

मगर जब तक पदयात्रा कार्यक्रम को व्यवहारिक जामा पहनाया जाता, उससे पहले कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कुछ औऱ तय कर दिया। वह राहुल गांधी व प्रियंका वाड्रा के संग विदेश रवाना हो गई हैं। इलाज का मामला है। कब लौटेंगी किसी को पता नहीं। विदेश रवाना होने से ऐन पहले वह राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू से मुलाकात कर आईं। कांग्रेस के हवाले से कहा गया कि बेटे-बेटी के साथ छुट्टी बिताने के क्रम में कांग्रेस अध्यक्ष अपनी बुजुर्ग मां से मुलाकात करेंगी, वह इन दिनों ज्यादा नासाज हैं। ऐसे में राहुल गांधी के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ हल्ला बोल जैसे कार्यक्रम में शामिल होने का कार्यक्रम मंझधार में फंस गया है।

गांधी परिवार के बाहर जाने की वजह से कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया दुविधा में फंसी है। लोकसभा चुनाव में उतरने से पहले कांग्रेस पार्टी को स्थायी अध्यक्ष तय करना है। राहुल गांधी फिर अध्यक्ष बनने से बार बार इंकार कर रहे हैं। बड़े भाई का इंकार प्रियंका वाड्रा की इच्छा में बाधक बना है। लोकसभा चुनाव से पहले क्या कांग्रेस अपना नया अध्यक्ष और विपक्ष प्रधानमंत्री के लिए किसी एक नाम पर सहमत हो पाएगा, यह फिर से महत्वपूर्ण सवाल बनकर उभरा है।

नीतीश कुमार औऱ अरविन्द केजरीवाल ही नहीं, विपक्ष में प्रधानमंत्री पद के लिए दर्जन भर से ज्यादा उम्मीदवार हैं जो अगले साल भर सियासी रोमांस की वजह बनने वाले हैं। महाराष्ट्र (48), गुजरात (26) और दादर नगर हवेली (1) से कुल 75 लोकसभा सीटें हैं। इन पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार का कुछ न कुछ असर है। बुजुर्ग पवार के मन में बेटी सुप्रिया सुले को जीते जी दिल्ली की राजनीति में ठीक ठाक तरीके से लांच करना है। स्वाभाविक है 2024 में वो अपनी भूमिका कमजोर नहीं होने देंगे और विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री का दावेदार तय करने में अहम भूमिका जरूर निभाएंगे।

पश्चिम भारत से निकलकर जब उत्तर की ओर जाएंगे तो प्रधानमंत्री बनने की चाहत में उम्र गंवा चुके मुलायम सिंह यादव का फिर से उभर आना तो मुश्किल है लेकिन उनके पुत्र अखिलेश यादव विपक्ष से प्रधानमंत्री पद के लिए दमदार चुनौती पेश कर सकते हैं। कांग्रेस पार्टी इसी दावेदारी को लेकर सबसे ज्यादा घबराई हुई है। बहुजन समाज पार्टी की मायावती की राजनीतिक हैसियत इतनी कमजोर हो गयी है कि फिलहाल प्रधानमंत्री की रेस में वो किसी भी दृष्टिकोण से शामिल नहीं लग रहीं हैं।

पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी की दावेदारी इसलिए महत्वपूर्ण है कि भाजपा की नाराजगी की उनको ही सबसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। भतीजे अभिषेक बनर्जी का एक पांव पार्टी दफ्तर में तो दूसरा पांव ईडी के दफ्तर और अदालतों में रहता है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन किस्मत के जबरदस्त धनी हैं। आदिवासी समाज से राष्ट्रपति की तर्ज पर प्रधानमंत्री तय करने की बारी आई, तो हेमंत की दावेदारी कहीं से कमजोर नहीं लगती। लेकिन इन सभी में सबसे अनुभवी व शांत स्वभाव के धनी ओडिशा के लंबे समय से मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इस रेस से खुद को अलग किए हुए हैं।

यह भी पढ़ेंः जेएनयू गैंग के डर से यूपी कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष पद ठुकरा रहे हैं पार्टी नेता

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
Opposition's PM claimant in front of Narendra Modi
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