दुनिया की सबसे बड़ी वीडियो कॉन्फ्रेंस कर क्या मोदी ने गलत किया?
नई दिल्ली। दुनिया की सबसे बड़ी वीडियो कान्फ्रेंस हो गयी। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे संबोधित किया। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इन्हें सुना। इसे दुनिया का सबसे बड़ा संवाद यानी 'महासंवाद' नाम दिया गया। दुनिया में 'मेरा बूथ सबसे मजबूत' भी इसे कहा गया। दुनिया में इतनी आलोचना भी शायद किसी समारोह की नहीं हुई हो। ट्विटर पर दो हैश टैग खूब चले- मेरा बूथ सबसे मजबूत और मेरा जवान सबसे मजबूत। ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से बातचीत कर कोई गुनाह किया है। ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी कार्यकर्ताओं का 2019 के लिए प्रधानमंत्री उम्मीदवार और अपने नेता नरेंद्र मोदी को सुनना गलत है। प्रश्न सिर्फ ये उठा है कि क्या ये वक्त सही है?

देश के सवाल पर राजनीति नहीं हो, देश एकजुट रहे, सेना का मनोबल ऊंचा रहे...इस तरह की बातें बीजेपी की ओर से पुलवामा हमले के बाद से ही कही जा रही थी। विपक्ष ने जब बताया कि पुलवामा हमले के बाद जानकारी होने के बावजूद पीएम मोदी जिम कॉर्बेट पार्क में फोटो खिंचा रहे थे, तब भी यही कहा गया कि यह वक्त नहीं है ऐसी बातें करने का। सीआरपीएफ के जवानों को शहीद का दर्जा देने की बात भी उठी। सवाल और भी उठे, मगर सब पर चुप्पी साधने को कहा गया। राजनीति न हो- वक्त अभी राजनीति का नहीं है।
पुलवामा अटैक के बाद वक्त और संवेदनशील हुआ है। दो मेजर समेत कई जवान शहीद हुए। आतंकी भी मारे गये। 12 दिन बीत जाने पर देश ने एयरस्ट्राइक कर जैश-ए-मोहम्मद को मजा भी चखाया। अगले दिन हमने पाकिस्तान का फाइटर एफ-16 भी उड़ाया। हमने भी खोया मिग 21 और एक पायलट पाकिस्तान के शिकंजे में जा फंसा। पायलट अभिनन्दन की बहादुरी भी दुनिया ने देखी और पूरा देश उसके सकुशल होने की कामना में जुटा है। वह अपनी सीमा की ओर लौट भी चला है। सीमा पर युद्ध की घटा है। अभी युद्ध वाला बादल कहां छटा है। ऐसे में क्या वक्त राजनीति करने का हो चला है?
पुलवामा हमले के बाद प्रियंका गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन का पहला प्रेस कॉन्फ्रेन्स रद्द कर दिया ये कहते हुए कि ये वक्त राजनीतिक बातें करने का नहीं है। दूसरे राजनीतिक दलों ने भी अपने-अपने कार्यक्रम रद्द किए। कांग्रेस के अध्यक्ष ने भी सीडब्ल्यूसी की बैठक और दूसरे कार्यक्रम रद्द किए। मगर, बीजेपी ने ऐसा नहीं किया। प्रश्न बीजेपी का भी नहीं है। देश के गृहमंत्री मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में चुनाव की तैयारी कर रहे हैं, बैठकें कर रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री 'मेरा बूथ सबसे मजबूत' और चुनाव के दौरान कार्यकर्ताओं के साथ महासंवाद कर रहे हैं। ऐसे में 'युद्ध जैसी स्थिति' की गम्भीरता कहां रह जाती है? दुश्मन के कब्जे में मौजूद पायलट के मनोबल का क्या होगा? सेना के मनोबल का क्या होगा?
बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक में ये बता दिया कि किस तरह से पुलवामा हमले और भारत की ओर से एयर स्ट्राइक के बाद बीजेपी को इसका राजनीतिक चुनावी लाभ मिलने वाला है। कर्नाटक में अब बीजेपी 28 में से 22 सीटें जीतने वाली है। येदियुरप्पा का यह वक्तव्य पाकिस्तान में खूब चल रहा है। बताया जा रहा है कि भारत में इस मुद्दे का राजनीतिकरण किया जा रहा है। अब जरा नज़र डालते हैं कि वीडियो कॉन्फ्रेन्स में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकर्ताओं से क्या कहा है-
बरसों से था घना अंधेरा
अब जा के भोर दिखी है
उन्नति की हवा चली है
उम्मीदों की धूप खिली है
बीजेपी के कार्यकर्ता भी सोच रहे होंगे कि ये पंक्तियां तो पांच साल पहले लिखी गयी लगती है। अब क्यों प्रधानमंत्री इसे क्यों गुनगुना रहे हैं? प्रधानमंत्री अपने कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं- "भारत को अस्थिर करने के लिए आतंकी हमले के साथ-साथ दुश्मन का एक मकसद ये भी होता है कि हमारी प्रगति रुक जाए, हमारी गति रुक जाए, हमारा देश थम जाए, उनके इस मकसद के सामने हर भारतीय को दीवार बनकर के खड़ा होना है।"
अगर इसी नीति के तहत बीजेपी और बीजेपी सरकार 2019 के लिए चुनावी अभियान को रुकने नहीं दे रही हैं तो यही आज़ादी विपक्ष को क्यों नहीं दी गयी? यह सवाल बीजेपी के लिए है। मगर, विपक्ष तो कह रहा है कि वह अब भी नहीं मानता कि राजनीति के लिए यह वक्त सही है। राजनीति न करने की बात करने वाले ही राजनीति से खुद को दूर नहीं रख सके। राष्ट्रवादी ही चुनाववादी हो गये। पार्टी से बड़ा देश न हो कर देश से बड़ी पार्टी हो गयी। युद्ध के तेवर की जगह चुनाव के तेवर ने ले ली। क्या शहादत, युद्ध, सेना का सम्मान सब चुनाव के दौरान चर्चा होने वाले अलंकार हैं? कह सकते हैं वास्तव में देश देख रहा है दुनिया की सबसे बड़ी राजनीति।
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