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2019 के लिए कांग्रेस की गठबंधन नीति पर पानी फेर सकती हैं मायावती

By योगेंद्र कुमार
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नई दिल्‍ली। 2019 लोकसभा चुनाव की रणनीति क्‍या हो? कांग्रेस की नई नवेली वर्किंग कमेटी ने राहुल गांधी की अध्‍यक्षता में बीते रविवार को गंभीर चिंतन किया। बैठक में पूर्व वित्‍त मंत्री से लेकर पूर्व पीएम मनमोहन सिंह तक कई बड़े नेता मौजूद रहे। सबकी राय सुनने के बाद यह बात करीब-करीब तय हो गई कि कांग्रेस 2019 में गठबंधन को हथियार बनाकर ब्रैंड मोदी से टक्‍कर लेगी। मतलब जहां कांग्रेस मजबूत है, वहां बीजेपी से सीधे टक्‍कर होगी और जहां नहीं है, वहां गठबंधन का उम्‍मीदवार लड़ेगा। चिदंबरम ने कांग्रेस को 12 राज्‍यों में 150 सीटें जीतने और बाकी 150 सीटें सहयोगियों को जिताने का फार्मूला सुझाया।

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इस प्रकार से आंकड़ा 300 पार पहुंच जाता है। यहां तक तो सब ठीक है, लेकिन राजनीति का गणित इतना सरल नहीं है। 300 सीटों का लक्ष्‍य तो ठीक है, लेकिन सवाल यह है कि क्‍या कांग्रेस ऐसे सहयोगी जुटा पाएगी, जो विजयरथ पर सवार बीजेपी को हराने का माद्दा रखते हों। यूं तो इस देश में सैकड़ों राजनीतिक दल हैं, लेकिन क्‍या कांग्रेस को ऐसे सहयोगी मिल सकेंगे जो मोदी को हराने का माद्दा भी रखते हो, जो चुनाव पूर्व और चुनाव बाद उसका साथ निभाने का इरादा भी रखते हों। गठबंधन की मजबूरियों को इस देश ने बरसों तक देखा है। कहीं ऐसा तो नहीं गठबंधन के आसरे बैठकर कांग्रेस खुद को कमजोर कर रही है?

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 कांग्रेस के पास सिर्फ तीन ताकतवर सहयोगी

कांग्रेस के पास सिर्फ तीन ताकतवर सहयोगी

कांग्रेस के सहयोगियों की बात करें तो इस समय उसके पास तीन मजबूत साथी हैं, जो ब्रैंड मोदी वाली बीजेपी से टक्‍कर ले सकते हैं। बिहार में लालू यादव की आरजेडी, महाराष्‍ट्र में राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कर्नाटक में जनता दल-यूनाइटेड यानी जेडीएस। वही जेडीएस, जिसके नेता कुमारस्‍वामी हैं और कांग्रेस का समर्थन लेकर सीएम बनने के बाद से कैमरों के सामने फूट-फूटकर रो रहे हैं। भूलना नहीं चाहिए कि इसी जेडीएस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव मायावती के साथ लड़ा था। वही मायावती जिनके साथ गठबंधन के लिए मध्‍य प्रदेश कांग्रेस बेकरार है, लेकिन बसपा पत्‍ते खोलने को तैयार नहीं है। जो कुछ इशारों-इशारों में अब तक सामने आया है, उसे देखकर लगता नहीं कि कांग्रेस कम से कम एमपी में तो मायावती का साथ पा सकती है। खबर है कि मायावती एमपी में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ समझौता करना चाहती है। ठीक वैसे ही जैसे कर्नाटक में जेडीएस के साथ किया था। यह बात सच है कि कांग्रेस, बसपा और गोंडवाना पार्टी एक साथ आते हैं तो करीब 70 विधानसभा सीटें बीजेपी के लिए टेढ़ी खीर बन जाएंगी। लेकिन अफसोस बसपा को कांग्रेस मना नहीं पा रही है।

 कांग्रेस गठबंधन करेगी, लेकिन सवाल ये है किससे

कांग्रेस गठबंधन करेगी, लेकिन सवाल ये है किससे

कांग्रेस की मुश्किल सिर्फ मध्‍य प्रदेश तक नहीं है। कभी 'यूपी के लड़के' कैंपेन में राहुल गांधी के साथ फोटो खिंचवाने वाले अखिलेश यादव भी 2019 के लिए कांग्रेस के साथ आने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। राहुल गांधी के मोदी से गले लगने पर अखिलेश ने उन्‍हें फासले से मिलने की सलाह तक दे डाली। मान लो गठबंधन भी हो गया तो यूपी में कांग्रेस की हालत बिहार से भी खराब है। उसे गठबंधन में सीटें ही कितनी मिलेंगी। इस बार तो मायावती और अखिलेश भी साथ आने की तैयारी में है। पश्चिम बंगााल में ममता दीदी का कुछ पता नहीं, लेफ्ट और कांग्रेस के गठबंधन की तो चर्चा तक नहीं है। आंध प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू और वाईएसआर के बीच टक्‍कर है, कांग्रेस का यहां क्‍या होगा पता नहीं। तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीएमके के अलावा किसी और दल का कोई महत्‍व नहीं है। कांग्रेस के सामने एक समस्‍या और है।

 मायावती फेर सकती हैं कांग्रेस के किए-कराए पर पानी

मायावती फेर सकती हैं कांग्रेस के किए-कराए पर पानी

कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में तय किया गया कि राहुल गांधी की गठबंधन के केंद्र में होंगे, तभी गठबंधन होगा। अब मान भी लीजिए कि मायावती मोदी को हराने के नाम पर कांग्रेस से गठबंधन कर भी लेती हैं, लेकिन क्‍या वह राहुल गांधी को पीएम उम्‍मीदवार स्‍वीकार करेंगी। बसपा के कार्यकर्ता तो बहनजी को पीएम बनाने का सपना देख रहे हैं। वैसे भी एक खबर राजनीतिक गलियारों में काफी गरम है और वो है कि मायावती हर राज्‍य में अलग-अलग दलों से समझौते की तैयारी कर रही हैं। ऐसे में कांग्रेस के किए कराए पर आधा पलीता तो मायावती ही लगा देंगी।

 2019 लोकसभा चुनाव में या तो मोदी जीतेंगे या आएगी गठबंधन सरकार

2019 लोकसभा चुनाव में या तो मोदी जीतेंगे या आएगी गठबंधन सरकार

मायावती को पता है कि 2019 लोकसभा चुनाव के दो ही परिणाम होंगे। नंबर- या तो ब्रैंड मोदी के नाम बीजेपी दोबारा सत्‍ता में लौटेगी या गठबंधन की खिचड़ी पकेगी। इस देश ने अब तक जितनी भी गठबंधन सरकारें देखी हैं, उनके अनुभव से कोई भी यह आसानी से बता देगा कि क्षेत्रीय दलों की मोल-भाव करने की क्षमता अपार है। कांग्रेस अगर 200 सीटों के आसपास आती तो तब तो वह गठबंधन के साथियों मैनेज कर लेगी, लेकिन अगर आंकड़ा दोगना होकर 100 या 150 के नीचे रह गया तो उसके नेता पीएम बनना भी खतरे में होगा। ऐसी स्थिति में कोई मायावती या ममता दीदी सरीखा नेता ही पीएम बन सकेगा, कांग्रेस के हाथ कुछ नहीं लगेगा।

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English summary
Congress-BSP alliance in the upcoming election is not easy task,Mayawati clear message to congress that alliance will depend only no seat share.
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