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मोदी, राहुल की तरह अखिलेश और मायावती भी गर्माने आ रही हैं पहाड़ की राजनीति, जानिए क्या है मामला

मोदी, राहुल की तरह अखिलेश और मायावती भी गर्माने आ रही हैं पहाड़ की राजनीति

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देहरादून, 7 दिसंबर। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव में भले ही भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर देखने को मिल रही है। लेकिन पहाड़ों में सर्द मौसम को गर्माने अब पड़ोसी उत्तर प्रदेश की सियासत की धुरंधर राजनीतिक दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी उत्तराखंड की सियासत में अपने बड़े चेहरों को उतारने जा रही है।​ दिसंबर माह में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती उत्तराखंड आ सकते हैं।

अखिलेश और मायावती आएंगे उत्तराखंड

अखिलेश और मायावती आएंगे उत्तराखंड

उत्तराखंड में अभी चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है। लेकिन दिसंबर में सभी राजनीतिक दल सेमीफाइनल करने की कोशिश में जुटे हैं। ​इसकी शुरूआत भाजपा ने 4 दिसंबर को नरेंद्र मोदी को देहरादून लाकर कर दिया है। अब 16 दिसंबर को कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी परेड ग्राउंड में रैली करने जा रहे हैं। इस तरह भाजपा और कांग्रेस अपने बड़े चेहरों के सहारे अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में जुटे हैं। लेकिन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी उत्तराखंड में अपनी सियासी जमीन तलाशना शुरू करने जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी गढ़वाल और कुमाऊं दोनों जगह चुनावी रैली करने जा रही है। पार्टी के अध्यक्ष डॉ. एसएन सचान ने बताया कि पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव इसी महीने पहले देहरादून में रैली करेंगे। इसके बाद वह कुमाऊं में रैली करेंगे। समाजवादी पार्टी के साथ ही
बसपा सुप्रीमो मायावती के भी उत्तराखंड दौरे की तैयारियां शुरू हो गई हैं। पार्टी के पश्चिमी यूपी-उत्तराखंड प्रभारी शम्सुद्दीन राइन ने बताया कि बसपा सुप्रीमो के उत्तराखंड दौरे का कार्यक्रम जल्द जारी होगा।

आप के आने से बिखर सकता है वोटबैंक

आप के आने से बिखर सकता है वोटबैंक

उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी अपनी ताकत दिखा चुके हैं। लेकिन उत्तराखंड में बसपा सिर्फ हरिद्वार सीट पर ही शुरूआती चुनावों में अपना बेहतर प्रदर्शन कर चुकी है। सपा का उत्तराखंड में अब तक कोई खास प्रदर्शन नजर नहीं आया है। दोनों दलों की नजर तराई जिलों में है। जिसमें हरिद्वार और यूएसनगर शामिल हैं। इन जिलों में बसपा और सपा को कुछ सीटों पर अपने बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। हालांकि इस बार आम आदमी पार्टी के चुनाव में उतरने से बसपा और सपा का वोटबैंक तीनों दलों की और झुकने की उम्मीद लगाई जा रही है।

समय के साथ​ गिरता गया बसपा का ग्राफ

समय के साथ​ गिरता गया बसपा का ग्राफ

उत्तराखंड में 2012 के चुनाव तक बसपा मैदानी जिलों के बदौलत अपना असर दिखाने में कामयाब नजर जरुर आई, लेकिन 2017 में बसपा का कोई भी विधायक विधानसभा नहीं पहुंच पाया। समाजवादी पार्टी का कभी उत्तराखंड में खाता नहीं खुला। 2002 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 36, भाजपा के 19 विधायकों के साथ ही बसपा के सात, यूकेडी के चार ओर एनसीपी का एक विधायक निर्वाचित होकर पहुंचा। पहली विधानसभा के लिए तीन निर्दलीय विधायक भी निर्वाचित हुए थे। लेकिन 2007 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा- कांग्रेस के साथ ही यूकेडी और बसपा का भी विधानसभा में प्रतिनिधित्व रहा। इस चुनाव में यूकेडी की सीट घट कर तीन ही रह गई। जबकि बसपा ने पिछले चुनावों के मुकाबले एक सीट अतिरिक्त पाने में कामयाबी हासिल की। 2012 में यूकेडी और बसपा की ताकत स्पष्ट रूप से कमजोर हो गई। क्षेत्रीय दलों की अगुवा रही यूकेडी का एक मात्र विधायक सदन में पहुंच पाया वहीं पहले दो चुनाव में सदन में दस प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली बसपा महज तीन विधायकों पर सिमट गई। हालांकि विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होते होते बसपा की सदस्य संख्या सदन में दो ही रह गई। इस तरह उत्तराखंड में पहले बसपा और यूकेडी का प्रतिनिधित्व नजर आता था, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा का उत्तराखंड में असर कम हो गया है। 2017 में भाजपा, कांग्रेस को छोड़कर 2 निर्दलीय ही जीतकर आए थे।

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English summary
Like Modi, Rahul, Akhilesh and Mayawati are also coming to heat up the politics of the mountain, know what is the matter
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