फ्लैशबैक 2021- 21वें साल में भी आंदोलनों ने बढ़ाई राज्य सरकार की मुश्किलें, जिन आंदोलनों का नहीं हुआ समाधान
उत्तराखंड में आंदोलनों की साल भर रही बाढ, कई मुद्दों पर सरकार ने पाई जीत
देहरादून, 30 दिसंबर। उत्तराखंड संघर्ष और आंदोलन से जन्मा राज्य है। जो कि राज्य आंदोलनकारियों के लंबे संघर्ष के बाद अस्तित्व में आया है। लेकिन 21 साल में भी उत्तराखंड में आंदोलन का दौर जारी है। 21वें साल में भी उत्तराखंड में कई बड़े मुद्दों पर आंदोलन हुए, जिनमें से कुछ आंदोलनकारी अभी भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। इनमें सख्त भू कानून, राज्य आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण और पुलिसकर्मियों के ग्रेड पे का मुद्दा चर्चा में है। हालांकि देवस्थानम बोर्ड, कृषि कानून और राज्य कर्मचारियों की समस्या कई ऐसे मु्द्दे भी रहे, जिनको सरकार ने चुनाव से पहले सुलझा चुकी है। एक नजर में पढ़िए 2021 के बड़े आंदोलन पर।
सख्त
भू
कानून
उत्तराखंड
में
युवाओं
ने
सबसे
पहले
सोशल
मीडिया
के
जरिए
सख्त
भू
कानून
की
मांग
को
लेकर
आंदोलन
छेड़ा।
युवाओं
का
तर्क
है
कि
उत्तराखंड
में
मौजूदा
भू-कानून
राज्य
के
लिए
सही
नहीं
है।
इस
कानून
का
फायदा
उठाकर
गैरउत्तराखंडी
यहां
की
जमीनों
पर
काबिज
हो
रहे
हैं।
सख्त
भू
कानून
की
मांग
को
लेकर
गैर
राजनीतिक
संगठनों
ने
भी
आंदोलन
को
समर्थन
दिया
है।
जिनका
कहना
है
कि
इस
कानून
से
उत्तराखंड
में
न
सिर्फ
कृषि
और
रिहायशी
जमीनों
की
किल्लत
आने
वाली
है,
बल्कि
इससे
यहां
की
संस्कृति
को
भी
खतरा
है।
आंदोलनकारियों
की
मौजूदा
कानून
की
जगह
हिमाचल
प्रदेश
की
तर्ज
पर
सख्त
भू-कानून
लागू
करने
की
मांग
को
लेकर
सबसे
पहले
सोशल
मीडिया
में
अभियान
शुरू
किया।
इसके
बाद
चुनावी
साल
में
प्रदेश
के
सियासी
दलों
ने
भी
इस
मुद्दे
को
सड़क
से
लेकर
सदन
तक
उठाया
है।
कांग्रेस
इस
मुद्दे
को
लेकर
चुनाव
में
भी
जा
रही
है।
भाजपा
सरकार
पर
भी
चुनाव
से
पहले
सख्त
भू
कानून
को
लेकर
निर्णय
लेने
का
दवाब
बना
हुआ
है।
धामी
सरकार
सख्त
भू
कानून
को
लेकर
हाईपावर
कमेटी
बना
चुकी
है।
जो
कि
लोगों
की
आपत्ति
पर
सुनवाई
भी
कर
चुकी
है।
ऐसे
में
कैबिनेट
के
जरिए
सरकार
भू
कानून
को
लेकर
कुछ
फैसला
ले
पाती
है
या
नहीं
ये
भी
अभी
देखना
बाकि
है।
लेकिन
ये
साल
भू
कानून
के
आंदोलन
को
लेकर
जरुर
याद
किया
जाएगा।
राज्य
आंदोलनकारियों
का
आंदोलन
उत्तराखंड
आंदोलन
की
लड़ाई
लड़ने
वाले
राज्य
आंदोलनकारी
21
साल
बाद
भी
अपनी
लड़ाई
लड़
रहे
हैं।
सरकारी
नौकरियों
में
10
प्रतिशत
क्षैतिज
आरक्षण
लागू
करने
संबंधी
कई
मांगों
पर
राज्य
आंदोलनकारी
लंबे
समय
से
संघर्षरत
हैं।
अब
चुनाव
से
पहले
राज्य
आंदोलनकारियों
ने
आर-पार
की
लड़ाई
लड़ने
का
ऐलान
किया
है।
उत्तराखंड
आंदोलनकारी
संघ
ने
राज्य
आंदोलनकारियों
के
लिए
सरकारी
नौकरियों
में
दस
प्रतिशत
क्षैतिज
आरक्षण
लागू
करने
को
लेकर
राज्य
सरकार
को
31
दिसंबर
तक
का
अल्टीमेटम
दिया
है।
मांग
पूरी
न
होने
पर
एक
जनवरी
को
सामूहिक
आत्मदाह
की
चेतावनी
दी
है।
कचहरी
परिसर
स्थित
शहीद
स्मारक
में
धरना
दे
रहे
संगठन
के
सदस्यों
को
समर्थन
राज्य
महिला
आयोग
पूर्व
अध्यक्ष
सुशीला
बलूनी,
राज्य
आंदोलनकारी
ओमी
उनियाल
व
जगमोहन
सिंह
नेगी
ने
भी
समर्थन
दिया।
आंदोलनकारियों
का
कहना
है
कि
तिवारी
की
सरकार
ने
आंदोलनकारियों
का
सम्मान
करते
हुए
एक
व्यवस्था
दी,
जिसके
फलस्वरूप
उनके
तमाम
साथियों
ने
परीक्षा
पास
की,
पास
होने
के
बाद
वह
नौकरी
में
लगे।
पर
उसके
बाद
कुछ
को
निष्कासित
कर
दिया
गया,
कुछ
को
अब
नोटिस
आ
रहे
हैं।
मुख्यमंत्री
बताएं
कि
इनको
बचाने
की
जिम्मेदारी
किसकी
है।
अगर
इस
विषय
पर
मुख्यमंत्री
तुरंत
निर्णय
नहीं
लेते
तो
1994
वाला
इतिहास
दोहराने
में
कोई
कसर
नहीं
छोड़ी
जाएगी।
राज्य
आंदोलनकारियों
ने
कहा
कि
सरकार
उनकी
मांग
को
अनदेखा
कर
रही
है।
पुलिसकर्मियों
के
ग्रेड
पे
का
मुद्दा
2021
में
आंदोलन
के
दौरान
एक
अनोखी
तस्वीर
भी
देखने
को
मिली,
जब
पुलिसकर्मी
अपने
ही
परिजनों
को
आंदोलन
करते
हुए
रोकते
नजर
आए,
जो
पुलिसकर्मियों
के
लिए
ही
सड़कों
पर
उतरे,
यानि
पुलिसकर्मियों
के
सामने
उनके
परिजन
ही
खड़े
नजर
आए।
पुलिसकर्मियों
के
4600
ग्रेड
पे
की
मांग
को
लेकर
पुलिसकर्मियों
के
परिजनों
की
ओर
से
लगातार
विरोध
जारी
है।
21
अक्टूबर
को
पुलिस
स्मृति
दिवस
पर
पुलिस
लाइन
में
आयोजित
राज्य
स्तरीय
कार्यक्रम
में
मुख्यमंत्री
ने
2001
बैच
के
1500
पुलिसकर्मियों
को
4600
ग्रेड
पे
देने
की
घोषणा
की
थी।
लेकिन
दो
माह
बाद
भी
शासनादेश
जारी
न
होने
से
परिजन
नाराज
हैं।
चुनाव
की
आचार
संहिता
नजदीक
देख
परिजनों
ने
आंदोलन
तेज
कर
दिया
है।
इससे
सीएम
पुष्कर
सिंह
धामी
के
दावे
और
वादों
पर
सवाल
खड़े
हो
रहे
हैं,
जिसमें
वे
घोषणाओं
के
तत्काल
शासनादेश
जारी
करने
का
दावा
करते
आ
रहे
हैं।
अब
परिजन
डीजीपी
के
31
दिसंबर
के
आश्वासन
तक
शांत
बैठे
हैं।
नए
साल
में
पुलिसकर्मियों
के
परिजनों
को
सरकार
के
सौगात
का
इंतजार
है।
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