Draupadi ka Danda Avalanche: यहां से स्वर्ग गए थे पांडव, आज भी होती है नाग देवता के ताल की पूजा
Avalanche in Draupadi ka Danda, 4 अक्टूबर: उत्तराखंड के उत्तरकाशी (Uttarkashi) जिले में मंगलवार (4 अक्टूबर) को बड़ा हादसा हुआ, जहां द्रौपदी का डांडा-2 पर्वत चोटी पर भारी हिमस्खलन हो गया, जिसकी चपेट में आने से करीब 29 ट्रैकर्स फंस गए हैं। ये ट्रैकर नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (Nehru Institute Of Mountaineering) के हैं, जो वहां पर ट्रेनिंग के लिए गए थे। द्रौपदी का डांडा को डीकेडी (Mt DKD) के नाम से भी जाना जाता है और ये जगह पृथ्वी का प्राकृतिक स्वर्ग कही जाती है। इसी वजह से निम ने इसको अपने प्रशिक्षण स्थल के रूप में चुना।
बात करें इस जगह के पौराणिक महत्व की, तो इसका जिक्र महाभारत में भी है। कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडव उत्तराखंड आ गए थे। वो द्रौपदी का डांडा नाम के पर्वत पर पहुंचे और यहीं से वो स्वर्ग गए। इस जगह से पूरा हिमालय क्षेत्र दिखता है, ऐसे में इसका नाम 'द्रौपदी का डांडा' रख दिया गया। इसी वजह से स्थानीय लोग आज भी इस पर्वत को पूज्यनीय मानते हैं। इसके अलावा यहां पर खेड़ा ताल स्थित है, जिसे नाग देवता का ताल कहा जाता है। हर साल सावन में इसकी विधि-विधान से पूजा होती है।
18
हजार
फीट
है
ऊंचाई
आपको
बता
दें
कि
द्रौपदी
का
डांडा
की
ऊंचाई
समुद्र
तल
से
18600
फीट
है,
जिस
वजह
से
वहां
इस
मौसम
में
बर्फ
मिल
जाती
है।
ये
जगह
उत्तरकाशी
जिला
मुख्यालय
से
65
किलोमीटर
दूर
है।
ये
जगह
मुख्यालय
से
इतनी
पास
है,
जिसके
चलते
यहां
पर
ट्रैकिंग
और
ट्रेनिंग
दोनों
के
लिए
अच्छी
व्यवस्था
मिल
जाती
है।
क्या
है
निम
का
काम?
निम
भारत
का
एकलौता
ऐसा
संस्थान
है,
जो
इंटरनेशनल
फेडरेशन
फॉर
क्लाइंबिंग
एंड
माउंटेनियरिंग
(UIAA)
द्वारा
सर्टिफाइड
है।
यहां
पर
लोगों
को
माउंटेनियरिंग
के
कोर्स
करवाए
जाते
हैं।
सामान्य
भाषा
में
कहें
तो
यहां
पर
पहाड़
पर
चढ़ने,
आपदा
के
वक्त
बचने
और
वहां
पर
रहने
की
ट्रेनिंग
दी
जाती
है।
यहां
पर
कई
हाईटेक
कोर्स
कराए
जाते
हैं,
जिसमें
14
साल
से
ऊपर
के
लोग
शामिल
हो
सकते
हैं।
ये
संस्थान
उत्तराखंड
में
होने
वाली
प्राकृतिक
आपदाओं
से
जुड़ा
अध्ययन
भी
करता
है।
केदारनाथ
में
जब
जल
प्रलय
आया
था,
तो
इस
संस्थान
ने
लोगों
को
बचाने
में
काफी
अहम
भूमिका
निभाई
थी।
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