हाईकोर्ट से योगी सरकार को झटका, 18 OBC जातियों को SC में शामिल करने की अधिसूचना रद्द
लखनऊ, 31 अगस्त। योगी सरकार की 18 अन्य पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति सूची में शामिल करने की अधिसूचना इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रद्द कर दी है। ये तीसरी बार है जब इस तरह जातियों की सूची में फेरबदल की अधिसूचना हाईकोर्ट ने रद्द करने का आदेश दिया हो।
जून 2014 में जारी हुई थी अधिसूचना
बीजेपी नेतृत्व वाली योगी सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने झटका देते हुए 18 अन्य पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति सूची में शामिल करने की अधिसूचना को रद्द करने का आदेश दे दिया है। जून 2014 में योगी आदित्यानाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने 24 जून, 2019 को एक अधिसूचना जारी थी। जिसमें कुल 18 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किया गया था।
इन
जातियों
के
विषय
में
थी
अधिसूचना
जिसमें
मझवार,
कहार,
कश्यप,
केवट,
मल्लाह,
निषाद,
कुम्हार,
प्रजापति,
धीवर,
बिंद,
भर,
राजभर,
धीमान,
बाथम,
गोडिया,
मांझी
और
मच्छुआ,
तुरहा
समेत
कुल
18
ओबीसी
जातियों
को
अनुसूचित
जाति
में
शामिल
किया
गया
था।
2
बार
ऐसे
प्रयास
विफल
उत्तर
प्रदेश
की
पूर्व
राज्य
सरकारें
दो
बार
इस
तरह
के
प्रयास
कर
चुकी
हैं।
लेकिन
सफलता
हासिल
नहीं
हुई।
इससे
पहले
इसी
तरह
की
अधिसूचना
2005
में
मुलायम
सिंह
यादव
के
नेतृत्व
वाली
समाजवादी
पार्टी
सरकार
ने
जारी
की
थी।
इसके
बाद
2016
में
अखिलेश
यादव
के
नेतृत्व
वाली
सपा
सरकार
द्वारा
भी
जारी
की
गई
थी।
सरकारी अधिसूचना को याचिकाकर्ता हरिशरण गौतम, डॉ भीम राव अंबेडकर ग्रंथालय और जनकल्याण समिति के अध्यक्ष ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी थी। मामले में मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सुनवाई पूरी होन के बाद फैसला सुनाया।
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कोर्ट
ने
क्या
कहा?
उच्च
न्यायालय
ने
कहा
कि
राज्य
सरकार
के
पास
अनुसूचित
जाति
सूची
में
बदलाव
करने
का
अधिकार
नहीं
है।
इसलिए
इस
अधिसूचना
को
रद्द
किया
जाता
है।
हाईकोर्ट
की
बेंच
ने
डॉ
बीआर
अंबेडकर
ग्रंथालय
एवं
जन
कल्याण,
गोरखपुर
और
अन्य
द्वारा
दायर
जनहित
याचिका
पर
सुनाई
के
दौरान
निर्णय
दिया।
इस
पूर्व
ये
दोनों
याचिकाकर्ता
2016
और
2019
में
राज्य
सरकार
की
अधिसूचना
को
चुनौती
दे
चुके
हैं।