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फूलपुर में अब तक हो चुके हैं दो उपचुनाव, तीसरे में जीतेगा कौन?

By Amrish Manish Shukla
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इलाहाबाद। फूलपुर लोकसभा के इतिहास में मौजूदा उपचुनाव से पहले 2 बार उपचुनाव हो चुके हैं। पहला उपचुनाव 1964 में और दूसरा उपचुनाव 1969 में हुआ था। दोनों उपचुनाव कांग्रेस के कारण ही हुये थे। 1964 का उपचुनाव प्रधानमंत्री व फूलपुर के सांसद जवाहर लाल नेहरू के निधन के कारण हुआ जबकि 1969 का उपचुनाव तत्कालीन कांग्रेस की सांसद व जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित के इस्तीफे के कारण हुआ। वहीं, तीसरी बार भाजपा सांसद केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद उपचुनाव हो रहा है। पहली बार जब उपचुनाव हुआ था तो उस उपचुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी जिसमें विजयलक्ष्मी पंडित ने कांग्रेस का परचम लहराया था। दूसरी बार जब उपचुनाव हुआ था तो उस उपचुनाव में कांग्रेस की हार हुई थी और तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री केशव देव मालवीय को संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के जनेश्वर मिश्र ने हराकर जीत हासिल की थी। अब तीसरी बार उपचुनाव में बाजी किसके हाथ लगेगी यह यक्ष प्रश्न है?

दूसरे उपचुनाव में हारी थी कांग्रेस

दूसरे उपचुनाव में हारी थी कांग्रेस

कांग्रेस सांसद विजयलक्ष्मी पंडित ने जब इस्तीफा दिया तो उनकी जगह उपचुनाव लड़ने आये तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री व कद्दावर नेता केशव देव मालवीय सीट नहीं बचा सके थे। इस बार केशव मौर्य ने इस्तीफा दिया और भाजपा की ओर से कौशलेंद्र पटेल उपचुनाव लड़ने आये हैं, ऐसे में क्या वह यह सीट बचा पायेंगे? इतिहास के आंकड़े तो जीत की राह में रोड़ा बनाते ही नजर आ रहे हैं। उन्हीं आंकड़ों के आधार पर आगे बढ़ें तो तत्कालीन संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जनेश्वर मिश्र ने जीत हासिल की थी और इस बार जनेश्वर मिश्र की उसी पार्टी के वैचारिक रूप समाजवादी पार्टी से नागेंद्र पटेल चुनाव लड़ रहे हैं। इतिहास अगर दोहराया जाये तो निश्चित है कि सपा की साइकिल यहां दौड़ सकती है, लेकिन यह तो सर्वविदित है कि जैसे इतिहास खुद को दोहराता है वैसे ही ऐतिहासिक रिकार्ड टूटते भी हैं। यानी भाजपा को किसी भी कीमत पर यहां कमजोर नहीं कहा जा सकता।

इस गणित से भाजपा सबल

इस गणित से भाजपा सबल

चूंकि सत्ता में रहते हुये कांग्रेस ने अपना पहला उपचुनाव इस सीट से जीता था। ऐसे में सत्ता में रहते हुये भाजपा के लिये भी यह इस सीट पर पहला उपचुनाव है और वह जीत की प्रबल दावेदार है। कांग्रेस की तरफ से जब विजयलक्ष्मी पंडित पहली बार सांसद का चुनाव लड़ीं और वह भी उपचुनाव था। तब वह जीत कर सांसद बनने में सफल रही थीं। भाजपा प्रत्याशी कौशलेंद्र का भी यह पहला संसदीय चुनाव हैं और यह भी उपचुनाव लड़ने आये हैं। यानी इतिहास अगर किसी रूप में दोहराया गया तो समीकरण सटीक बैठ जायेंगे।

कांग्रेस सिर्फ नाम के सहारे

कांग्रेस सिर्फ नाम के सहारे

फूलपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव में कांग्रेस के समीकरण सिर्फ उसके नाम पर है। यानी कांग्रेस ने सर्वाधिक बार फूलपुर सीट पर राज किया और पहला उपचुनाव भी कांग्रेस ने ही जीता। केवल यह आधार ही उसे थोड़ी-बहुत राहत दे सकता है अन्यथा फूलपुर में चल रहे जातीय समीकरण और राजनैतिक दल-बदल का खेल कांग्रेस को कहीं पीछे छोड़ रहा है। मौजूदा कांग्रेस प्रत्याशी मनीष मिश्रा के पिता जेएन मिश्रा भी कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन वह जीत हासिल नहीं कर सके थे जबकि जेएन मिश्रा ना सिर्फ फूलपुर बल्कि देश के बड़े कांग्रेस नेता रहे थे और इंदिरा गांधी के नजदीकी होने के कारण उनका कद पार्टी में काफी बड़ा था। कांग्रेस को भी इतिहास को दोहराये जाने का इंतजार है । वह फिर से अपने स्वर्णिम युग में लौटने की बाट जोह रही है और शायद यह चुनाव कुछ रोशनी कांग्रेस के लिये दे जाये, जिसकी उम्मीद कम से कम सियासी गलियारे में नहीं है।

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English summary
Who will won third Lok Sabha by election in Phulpur.
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