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तीन कृषि कानूनों के वापस लेने से बदलेगी यूपी की सियासत ?, जानिए क्या हैं इसके राजनीतिक मायने

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लखनऊ, 19 नवंबर: उत्तर प्रदेश में चुनाव अब महज तीन महीने ही दूर हैं। पश्चिमी यूपी से लेकर किसान आंदोलन का असर धीरे धीरे पूर्वांचल तक फैलने लगा था। भारतीय किसान मोर्चा की तरफ से 22 नवंबर को किसान महापंचायत भी बुलाई गई है। इन सबके बीच लखीमपुर खीरी में पिछले दिनों आंदोलनकारी किसानों की हुई मौत के बाद योगी सरकार और मोदी सरकार की परेशानियां इसलिए बढ़ गईं थी कि विपक्ष पूरे जोर शोर से तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के बहाने सरकार पर हमला बोल रहा था। नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को देश के नाम संबोधन में तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान तो कर दिया लेकिन क्या इस मुद्दे से इतनी जल्दी बीजेपी का पीछा छूटेगा। सरकार चुनाव से पहले पूरी तरह से बैकफुट पर दिख रही है। अब मोदी की इस घोषणा का यूपी की चुनावी सियासत पर कितना असर पड़ेगा यह देखना दिलचस्प होगा।

किसान आंदोलन

सरकार को फैसला लेने में एक साल से अधिक का समय लग गया

सरकार को उन तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने में एक साल से अधिक समय लगा, जिन्होंने बड़े पैमाने पर विरोध को भड़काया। 9 अगस्त, 2020 को पंजाब में शुरू हुआ और हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फैल गया। महीनों में दिल्ली की सीमाओं पर इकट्ठा हुए प्रदर्शनकारियों, पुलिस के साथ हिंसक आमने-सामने हुए। कभी-कभी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर से असंतोष और विपक्ष द्वारा समय-समय पर विरोध और सरकार को एक महत्वपूर्ण निर्णय से पीछे हटने के लिए किसानों की मौत के रूप में चिह्नित किया गया था।

बीजेपी

यूपी की सियासत में सुनाई देगी मोदी के फैसले की गूंज

पीएम मोदी ने यूपी तीन दिवसीय यात्रा पर निकलने से पहले राष्ट्र के नाम संबोधन में बड़ा ऐलान किया। यूपी में अगले साल फरवरी-मार्च में चुनाव होने हैं। पंजाब से ज्यादा यूपी में इसकी हलचल दिखाई देगी क्योंकि भाजपा एक ऐसे राज्य में शासन कर रही है, जिसके पास 80 लोकसभा सीटें और 403 विधानसभा सीटें हैं और इसकी किस्मत न केवल इसे बनाए रखने पर बल्कि विधायिका में होने वाले नुकसान को कम करने पर टिकी है। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 324 सीटें हासिल की थी।

लखीमपुर खीरी कांड ने भी बीजेपी की परेशानी बढ़ाई

अवध के लखीमपुर-खीरी में किसानों की हत्या और एक केंद्रीय मंत्री के बेटे की गिरफ्तारी ने कथित तौर पर अपनी एसयूवी के साथ प्रदर्शनकारियों को कुचलने के लिए कृषि कानूनों के महत्व को और साथ ही पश्चिम यूपी से परे विरोध प्रदर्शनों को बढ़ा दिया था। अवध और पूर्वी यूपी में, किसानों को उन कानूनों से स्पष्ट रूप से सरोकार नहीं था, जिनके बारे में उनका मानना ​​था कि वे बड़े पैमाने पर पश्चिम के "अच्छे" जाट किसानों से संबंधित थे, जो चौधरी चरण सिंह द्वारा किए गए भूमि पुनर्वितरण उपायों के प्रमुख लाभार्थी थे।

तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नीरज राय कहते हैं कि,

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''किसानों के आंदोलन ने बीजेपी और मोदी के अहंकार को चूर करने का काम किया है। क्या मोदी सरकार आंदोलन में किसानों के मरने का इंतजार कर रही थी। यह फैसला तो बहुत पहले होना चाहिए था। मोदी जी कहते हैं कि हम साफ नियत से यह बिल लेकर आए थे लेकिन क्या आंदोलन में मरने वाले उन किसानों के बारे में भी बीजेपी और पीएम मोदी कुछ बोलेंगे। 700 से अधिक किसानों की मौत हो गई लेकिन उसपर तो पीएम नहीं बोले। उनके आंसू भी पोछने चाहिए था। इसका मतलब यह है कि जो आंदोलन किसान चला रहे थे वो बिल्कुल सही था। पांच राज्यों में होने वाले चुनाव से पहले बीजेपी में डर साफ तौर पर देखा जा रहा है।''

बीजेपी

संयुक्त किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष हरनाम सिंह ने कहते हैं कि,

''अभी जानकारी मिली है कि पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी है। पीएम को यह फैसला बहुत पहले ही ले लेना चाहिए था। आज गुरुनानक जयंती है। प्रकाश पर्व पर पीएम मोदी को सद्बुद्धि आई है। लखनऊ में 22 नवंबर को होने वाली किसान महापंचायत की तैयारियां में जुटे हुए हैं। अभी किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत महाराष्ट्र में है। उनके साथ बातचीत के बाद ही आगे का कोई फैसला लिया जाएगा।''

वेस्ट यूपी की जाट बुल्य 70 सीटों पर क्या बदलेगा सियासी समीकरण

वेस्ट यूपी में करीब 70 सीटें हैं। जाट वोटों के दम पर इस बेल्ट में बीजेपी हमेशा मजबूत रही है, लेकिन हाल ही में, समुदाय ने मुखर रूप से पार्टी के साथ अपनी नाराजगी व्यक्त की है और दिवंगत अजीत सिंह द्वारा स्थापित राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) में अपनी दिलचस्पी दिखाई है। चरण सिंह की, और उनके बेटे, चौधरी जयंत सिंह को विरासत में मिली। हालांकि यह अभी भी अटकलों का विषय है कि क्या जाट थोक में रालोद की ओर बढ़ेंगे, यह देखते हुए कि भाजपा के प्रति उनकी निष्ठा भी हिंदुत्व में उनके विश्वास और जाति हिंदू समूह का हिस्सा बनने की इच्छा पर आधारित है, यूपी में हर जगह किसान, चाहे उनकी जाति के, कृषि कानूनों पर सवाल उठाने लगे।

बीजेपी

गावों से नहीं सकारात्मक फीडबैक नहीं मिल रही थी

स्थानीय सांसदों और विधायकों के साथ ही भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ताओं को कृषि मुद्दों पर प्रधानों से बातचीत करने और फीडबैक प्राप्त करने के लिए गांवों में लगाया गया था। लेकिन चुनाव से पहले जो फीडबैक आ रही थी उसका यही मतलब था कि जनता के बीच सरकार के प्रति नाराजगी है। ये मांगें सिर्फ बड़े किसान ही नहीं बल्कि सभी जातियों और आर्थिक वर्ग के किसानों ने उठाई थीं। वास्तव में, एमएसपी की मांग ने उन छोटे और सीमांत किसानों को बुरी तरह से परेशान किया, जिन्होंने भाजपा की रीढ़ बनाई थी।

योगी सरकार ने कई ऐलान किया लेकिन नहीं मिल रहा था फायदा

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सीएम योगी आदित्यनाथ ने किसान सम्मेलन को संबोधित करते हुए विपक्ष पर जमकर निशाना साधा था। साथ ही, किसानों के हित में कई महत्वपूर्ण घोषणाएं भी की थी। प्रदेशभर से आए किसानों को संबंधित करते हुए प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ बहुप्रतीक्षित गन्ना मूल्य बढ़ोत्तरी की घोषणा की। उन्होंने किसानों को संबोधित करते हुए कहा था कि गन्ना के समर्थन मूल्य जो पहले 325 था उसे बढ़ा दिया गया है। अब गन्ने का समर्थन मूल्य 350 रुपए है। विगत तीन साल से अधिक समय से गन्ना मूल्य में बढ़ोत्तरी नहीं हुई थी।

किसानों से डर गई बीजेपी और मोदी
पश्चिम यूपी में गन्ना किसानों के मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष डॉ मसूद अहमद कहते हैं कि,

'' पश्चिमी यूपी का ही नहीं पूरे यूपी का किसान लाठी लेकर बैठा था। किसानों की जो हालत इस सरकार ने की है उसका खामियाजा तो उसे उठाना ही पड़ेगा। लोग आरोप लगा रहे हैं कि पश्चिमी यूपी में रालोद किसानों का फायदा उठा रही है। आप समझ लीजीए कि यह रालोद और किसान की ताकत है जिसकी वजह से सरकार को मजबूर होना पड़ा। इस बार बीजेपी को सत्ता से बाहर करके ही छोड़ेगा। आज केंद्र और राज्य सरकार का अहंकार चूर हो गया है। किसानों का आंदोलन यही रुकने वाला नहीं है। आने वाले समय में भी रालोद किसानों के हितों की आवाज मजबूती से उठाता रहेगा।''

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English summary
What will change the politics of UP by withdrawing three agricultural laws of Madi, know what is its poli
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