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उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा की महिला नीति, बेबी-स्वाति और अदिति

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लखनऊ, 08 दिसंबर। उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा की महिला नीति, बेबी-स्वाति और अदिति। वैसे तो भाजपा में कई महिला चेहरे हैं। लेकिन ये तीन चेहरे महिला राजनीति को नयी धार दे रही हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने महिला मुद्दे को 'कोर फैक्टर' बना दिया है। जाहिर है अगर आधी आबादी ने एकजुटता दिखायी तो कई प्रचलित चुनावी समीकरण छिन्न-भिन्न हो जाएंगे।

uttar pradesh election Baby Rani Maurya, Swati Singh and Aditi Singh are the driving forces of BJP

कांग्रेस के पास प्रियंका गांधी हैं। बसपा की कमान खुद मायावती के हाथ में है। सपा में जया बच्चन और डिंपल यादव हैं। अगर मंजूरी मिली तो अपर्णा यादव भी इस टीम में शामिल हो सकती हैं। चूंकि भाजपा को सत्ता बचाने की लड़ाई लड़नी है इसलिए वह महिला वोटरों को साधने में सबसे अधिक मेहनत कर रही है।

ट्रंप कार्ड हैं बेबी रानी मौर्य !

ट्रंप कार्ड हैं बेबी रानी मौर्य !

उत्तर प्रदेश में भाजपा के पास कई प्रभावशाली महिला नेता हैं। प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष और सांसद गीता शाक्य, प्रयागराज की सांसद रीता बहुगुणा जोशी, पूर्व सांसद और महामंत्री प्रियंका रावत, केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और साध्वी निरंजन ज्योति इनमें प्रमुख हैं। इनकी भी चुनाव में अहम भूमिका रहेगी। लेकिन बेबी रानी मौर्य, स्वाति सिंह और अदिति सिंह भाजपा की उत्प्रेरक शक्तियां हैं। बेबी रानी मौर्य दलित (जाटव) समाज से आती हैं। वे उत्तराखंड की राज्यपाल थीं। लेकिन दो महीना पहले भाजपा ने उन्हें राज्यपाल पद से इस्तीफा दिला कर सक्रिय राजनीति में उतारा है। भाजपा ने इतना बड़ा फैसला इसलिए लिया क्योंकि ये वक्त की मांग थी। 2022 में वापसी के लिए महिला और दलित वोटरों का समर्थन जरूरी हो गया था। फिर मायावती को जवाब देने के लिए उन्हीं समाज का कोई बड़ा नेता भी चाहिए था। बेबी रानी मौर्य ने आते ही मायावती के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है।

मायावती को जवाब

मायावती को जवाब

बेबी रानी मौर्य कहती हैं, "25 साल से दलित मायावती से आस लगाये बैठे थे। जब किसी भूखे को खाना नहीं मिले, बच्चों को अच्छी शिक्षा न मिले, पार्टी में मान सम्मान न मिले तो वह क्या करेगा ? कहीं न कहीं तो जाएगा। कोई न कोई विकल्प तो तलाशेगा। अब ऐसे लोग भाजपा के साथ जुड़ रहे हैं। भाजपा में एक गरीब अपनी योग्यता से कोई भी पद पा सकता है। रामनाथ कोबिंद जी देश के राष्ट्रपति बने। जाटव समाज से आने वाली मेरी जैसी महिला नेता को राज्यपाल बनाया।" उत्तर प्रदेश में दलित समुदाय की आबादी करीब 21 फीसदी है। इनमें 11 फीसदी हिस्सेदारी अकेले जाटव समाज की है। मायावती भी जाटव समाज से ही आती हैं और इस समुदाय के वोट पर अपना दावा करती रही हैं। भाजपा 2017 की कामयाबी (86 रिजर्व सीटों में से 70 पर जीत) दोहराना चाहती है। इसलिए उसने बेबी रानी मौर्य को मोर्चे पर उतारा है।

स्वाति सिंह जिन्होंने बदल दी थी चुनाव की दिशा

स्वाति सिंह जिन्होंने बदल दी थी चुनाव की दिशा

राजनीति में हारी हुई बाजी कैसे जीती जाती है, स्वाति सिंह इसका जीता जागता प्रमाण हैं। 2017 में उन्होंने जो करिश्मा किया था उसकी धमक 2021 तक सुनायी पड़ रही है। नसीमुद्दीन सिद्दीकी 2016 में बसपा के महासचिव थे और रामअचल राजभर प्रदेश अध्यक्ष। उन्होंने स्वाति सिंह और उनकी बेटी के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया था। मामला कोर्ट में था। जनवरी 2021 में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और रामअचल राजभर को इस मामले में जेल जाना पड़ा था। नसीमुद्दीन सिद्दी अब कांग्रेस में हैं। रामअचल राजभर सपा में हैं। स्वाति सिंह नसीमुद्दीन और रामअचल के बहाने कांग्रेस और सपा को औरतों के मुद्दे पर घेर सकती हैं। दो महीना पहले ही उन्होंने इन दोनों नेताओं के खिलाफ कोर्ट में बयान दर्ज कराया है। स्वाति में चुनाव के नैरेटिव को चेंज करने की नैसर्गिक क्षमता है। ये कमाल उन्होंने तब किया था जब वे एक सामान्य गृहिणी थीं। आज तो वे योगी सरकार में मंत्री हैं। मंत्री के रूप में उनके कामकाज की खामियां निकाली जा सकती हैं। लेकिन चुनाव में कई बार भावनात्मक मुद्दे, वास्तविक मुद्दों पर भारी पड़ जाते हैं। जैसा कि 2017 में हुआ था।

यूं पलट गयी बाजी

यूं पलट गयी बाजी

स्वाति सिंह पहले हाउसवाइफ थीं। उनके पति दयाशंकर सिंह भाजपा के नेता हैं। 2016 में उन्होंने बसपा प्रमुख मायवती के खिलाफ एक अशोभनीय टिपण्णी की थी। उसके बाद बसपा ने दयाशंकर सिंह के खिलाफ उग्र आंदोलन छेड़ दिया था। दलित समुदाय में भाजपा के खिलाफ गुस्सा भर गया था। भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर पानी फिरता दिख रहा था। इसी क्रम में नसीमुद्दीन सिद्दिकी, रामअचल राजभर और अन्य बसपा नेताओं ने दयाशंकर सिंह की मां, उनकी पत्नी स्वाति सिंह और बेटी के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया था। स्वाति सिंह की सास ने बसपा नेताओं के खिलाफ कोर्ट में केस कर दिया। स्वाति सिंह ने बेटी, सास और अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए रसोईघर छोड़ कर न्याय की लड़ाई छेड़ दी। बसपा नेताओं के गैरजिम्मेदाराना बयान पर उन्होंने ऐसे-ऐसे मजबूत तर्क दिये कि मामला ही उलट गया। निंदा के बंदूक की जो नली भाजपा की तरफ तनी हुई थी वह एकाएक बसपा की तरफ मुड़ गयी। स्वाति रातों रात एक चर्चित हस्ती बन गयीं। लोग उनके फाइटिंग एप्रोच के मुरीद हो गये। भाजपा ने उन्हें गृहिणी से नेता बना दिया। भावनाओं की लहर पर सवार हो कर वे लखनऊ के सरोजनी नगर सीट से विधायक बन गयीं। जो चुनाव भाजपा हारती दिख रही थी उसे उसने शानदार तरीके से जीत लिया। स्वाति सिंह नारी शक्ति का वास्तविक प्रतिबिंब हैं।

अदिति सिंह की पॉलिटिकल डायनेमिक्स

अदिति सिंह की पॉलिटिकल डायनेमिक्स

34 साल की अदिति सिंह डायनेमिक लीडर हैं। रायबरेली से कांग्रेस की विधायक थीं। अब भाजपा में हैं। कांग्रेस में रहने के बाद भी वे अपने राष्ट्रवादी बयानों के लिए जानी जाती थीं। पिता अखिलेश सिंह के दम पर विधायक बनने वाली अदिति ने अब खुद की जमीन बना ली है। कई लोग मानते हैं भाजपा ने अदिति को प्रियंका गांधी के काट के रूप में खड़ा किया है। उनके भाजपा में आने से कांग्रेस की चिंता बढ़ गयी है। इसबीच एक ऐसी घटना हो गयी है जिससे अदिति के पक्ष में एक माहौल तैयार होने लगा है। दरअसर रायबरेली में एक ऐसा पोस्टर चिपकाया गया है जिसमें अदिति सिंह और उनकी बहन के बारे में अपशब्दों का प्रयोग किया गया है। अदिति सिंह की बहन देवांशी सिंह ने कुछ दिनों पहले अंतर्रजातीय विवाह किया है। पोस्टर में इस बात को लेकर अभद्र टिपण्णी की गयी है। ये पोस्टर अदिति सिंह को राजनीतिक नुकसान पहुंचाने के ख्याल से लगाये गये हैं। लेकिन अब इसका उल्टा असर शुरू हो गया है। बेटियों की इज्जत उछाले जाने से इलाके के लोग बेहद नाराज हो गये हैं। एक विधायक के रूप में किसी को उनके काम से नाराजगी हो सकती है। लेकिन उनकी और उनकी बहन की निजी जिंदगी से किसी को क्या मतलब । जो लोग कल तक विधायक अदिति से नाराज अब वे अपने इलाके की बेटी अदिति के साथ हैं। ये पोस्टर प्रकरण यूपी चुनाव में टर्निंग प्वाइंट बन सकता है।

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English summary
uttar pradesh election Baby Rani Maurya, Swati Singh and Aditi Singh are the driving forces of BJP
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