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यूपी की राजनीति में पूर्वांचल का दबदबा, अब तक आठ मुख्यमंत्री बने

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लखनऊ, 22 फरवरी। उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूर्वांचल का दबदबा रहा है। आजादी के बाद पूर्वांचल ने उत्तर प्रदेश को 8 मुख्यमंत्री दिये हैं। इस लिहाज से पूर्वांचल उत्तर प्रदेश की राजनीति का केन्द्र रहा है। इस क्षेत्र के 23 जिलों की 156 विधानसभा सीटें भी सत्ता प्राप्ति के लिए अहम हैं। 2022 का विधानसभा चुनाव चौथे चरण के बाद (23 फरवरी) पूर्वांचल की तरफ अग्रसर होगा। योगी आदित्यनाथ पूर्वांचल के आठवें मुख्यमंत्री हैं। वे सत्ता में वापसी के लिए खुद गोरखपुर से मैदान में हैं।

up election 8 Chief Ministers become from Purvanchal in Uttar Pradesh

योगी आदित्यनाथ से 32 साल पहले गोरखपुर के ही वीरबहादुर सिंह मुख्यमंत्री बने थे। वीरबहादुर सिंह का जन्म गोरखपुर जिले में हुआ था। वे गोरखपुर जिले के पनियारा विधानभा सीट से विधायक चुने जाते थे। 1989 में गोरखपुर को काट कर महाराजगंज जिला बना था। अब पनियारा महाराजगंज जिले में है। अगर योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से चुनाव जीत कर सत्ता में लौटते हैं तो हैं तो यह उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए नया इतिहास होगा। कोई मुख्यमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद ठीक अगले चुनाव में सत्ता बरकरार नहीं रख पाया है ।2007 में मायावती और 2012 में अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। वे पांच साल तक सीएम रहे। लेकिन मायावती ने 2012 के चुनाव में और अखिलेश यादव ने 2017 के चुनाव में सत्ता गंवा दी।

पूर्वांचल के 8 मुख्यमंत्री

डॉ. सम्पूर्णानंद - 1954, त्रिभुवन नारायण सिंह - 1970

कमलापति त्रिपाठी - 1971, रामनरेश यादव - 1977

विश्वनाथ प्रताप सिंह - 1980, श्रीपति मिश्र - 1982

वीरबहादुर सिंह- 1985, योगी आदित्यनाथ - 2017

पूर्वांचल से पहले मुख्यमंत्री डॉ. सम्पूर्णानंद

पूर्वांचल से पहले मुख्यमंत्री डॉ. सम्पूर्णानंद

1952 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ था। कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला। गोविंदवल्लभ पंत 1946 से ही उत्तर प्रदेश (यूनाइटेड प्रोविंस) के मुख्यमंत्री थे। उनका सीएम पद बरकरार रहा। 1950 में केन्द्रीय गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का निधन हो गया। प्रधानमंत्री नेहरू किसी योग्य गृहमंत्री की तलाश में थे। विधानसभा चुनाव के दो साल बाद ही यानी 1954 में गोविंद वल्लभ पंत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। प्रधानमंत्री नेहरू ने उन्हें गृहमंत्री बनाया। इसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर बनारस के विद्वान नेता डॉ. सम्पूर्णानंद आसीन हुए। भारतीय राजनीति में डॉ. सम्पूर्णानंद की विद्वता अद्वतीय है। उन्होंने साइंस (फिजिक्स) से ग्रेजुएशन किया था। लेकिन वे हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी और दर्शन शास्त्र के भी प्रकांड विद्वान थे। फिजिक्स के ज्ञाता होने के कारण उन्होंने हिंदी साहित्य का पहला साइंस नॉवेल- 'पृथ्वी से सप्तर्षि मंडल' लिखा था। वे एक सफल राजनेता थे। करीब बीस पुस्तकें भी लिखीं। वे बनारस शहर दक्षिण विधानसभा सीट से विधायक चुने जाते थे। वे पूर्वांचल के पहले नेता थे जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे।

पूर्वांचल के रहने वाले दूसरे मुख्यमंत्री

पूर्वांचल के रहने वाले दूसरे मुख्यमंत्री

उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले त्रिभुवन नारायण सिंह भी बनारस के ही थे। कांग्रेस के नेता थे। उन्होंने 1952 में चंदौली से लोकसभा का चुनाव जीता था। 1957 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने महान समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया को हरा कर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया था। वे केन्द्र में मंत्री भी रहे। 1967 के विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में संविद सरकारों का बनना और गिरना एक खेल हो गया था। 1969 में मध्यावधि चुनाव हुआ था। भारतीय क्रांति दल के चरण सिंह और कांग्रेस के चंद्रभानु गुप्त के बीच सत्ता की रस्साकशी चलती रही। इसी उठापटक के बीच कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण सिंह ने अक्टूबर 1970 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वे सीएम तो बन गये लेकिन उस समय वे राज्यसभा सांसद थे। उनका उत्तर प्रदेश विधानमंडल का सदस्य बनना जरूरी था। 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया था। मोरारजी देसाई कांग्रेस (ओ) यानी संगठन कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे। इंदिर गांधी ने कांग्रेस का अलग संगठन बना लिया था। त्रिभुवन नारायण सिंह संगठन कांग्रेस में थे।

मुख्यमंत्री रहते हार गये उपचुनाव

मुख्यमंत्री रहते हार गये उपचुनाव

मार्च (1-10 मार्च तक) 1971 में लोकसभा का चुनाव हुआ। योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ गोरखपुर से सांसद चुने गये। जब वे सांसद चुने गये उस समय वे गोरखपुर जिले की मानीराम विधानसभा सीट से विधायक थे। उनके इस्तीफा देने से मानीराम सीट खाली हो गयी। त्रिभुवन नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बने पांच महीना हो गये थे। वे विधायक या एमएलसी नहीं बन पाये थे। छह महीने के अंदर उन्हें यह शर्त पूरी करनी थी। जब गोरखपुर की मानीराम विधानसभा सीट खाली हुई तो वे उपचुनाव में खड़ा हुए। सीएम त्रिभुवन नारायण सिंह अपनी जीत के लिए पूरी तरह आश्वस्त थे। वे संगठन कांग्रेस के नेता थे। उन्हें जनसंघ, संसोपा और चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल का समर्थन हासिल था। 1971 में शानदार जीत हासिल कर इंदिरा गांधी फिर प्रधानमंत्री बनी थीं। मोरारजी देसाई की संगठन कांग्रेस की जबर्दस्त हार हुई थी। अब संगठन कांग्रेस, इंदिरा गांधी के निशाने पर थी। इसका खामियाजा मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह को भुगतना पड़ा। कांग्रेस (इंदिरा) ने मानीराम उपचुनाव में रामकृष्ण द्विवेदी को खड़ा किया था। त्रिभुवन नारायण सिंह को हराने के लिए इंदिरा खुद प्रचार के लिए मानीराम आयीं। रामकृष्ण द्विवेदी पत्रकार थे। इंदिरा गांधी ने उनके लिए प्रचार किया। इससे पूरा परिदृश्य ही बदल गया। मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह करीब 15 हजार वोटों से चुनाव हार गये। कांग्रेस के रामकृष्ण द्विवेदी को जीत मिली। मुख्यमंत्री का हारना एक अभूतपूर्व घटना थी। जब रिजल्ट आया उस समय उत्तर प्रदेश की विधानसभा चल रही थी। मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह को सदन की कार्यवाही के बीच ही अपने इस्तीफे की घोषणा करनी पड़ी।

भाजपा को योगी आदित्यनाथ पर भरोसा

भाजपा को योगी आदित्यनाथ पर भरोसा

इसके बाद बनारस के ही कमलापति त्रिपाठी मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने 1957 का चुनाव चंदौली से जीता था। 1967 में वे जौनपुर विधानसभा सीट से चुने गये थे। 1977 में मुख्यमंत्री बनने वाले रामनरेश यादव आजमगढ़ के आंधीपुर अंबारी गांव के रहने वाले थे। 1980 में मुख्यमंत्री बनने वाले वीपी सिंह का जन्म प्रयागराज जिले के मांड राजघराने में हुआ था। 1982 में श्रीपति मिश्र सीएम बने थे जो सुलातनपुर जिले के सूरापुर गांव के रहने वाले थे। गोरखपुर जिले के रहने वाले वीरबहादुर सिंह 1985 में मुख्यमंत्री बने थे। फिर 2017 में गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी योगी आदित्यनाथ ही भाजपा का चुनावी चेहरा हैं। भाजपा को भरोसा है कि उनके गोरखपुर से चुनाव लड़ने के कारण पार्टी को पूर्वांचल में (156 सीट) में फायदा मिलेगा।

यह भी पढ़ें: यूपी चुनाव 2022: ट्विटर पर फॉलोअर्स के मामले में CM योगी हैं आगे तो वहीं फेसबुक पर अखिलेश यादव का राज

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English summary
up election 8 Chief Ministers become from Purvanchal in Uttar Pradesh
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