Mulayam Sungh Yadav होना इतना आसान नहीं, जानिए एक शिक्षक से कैसे बने राजनीति के पुरोधा
Samajwadi Party के संरक्षक और पूर्व सीएम अखिलेश यादव के पिता Mulayam Singh Yadav अब नहीं रहे। मुलायम सिंह यादव ने गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली। मुलायम के जाने के साथ ही समाजवाद का एक ऐसा पुरोधा चला गया जिसने यूपी ही नहीं देख की सियासत में राजनीति की एक नई इबारत गढ़ने का काम किया। एक समय ऐसा भी आया जब मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री बनते बनते रह गए थे। यूपी ही नहीं देश की राजनीति में कोई मुलायम सिंह यादव ऐसे ही नहीं बन जाता है। एक शिक्षक से अपनी राजनीति की शुरूआत करने वाले मुलायम ने सपा को नई बुलंदियों पर पहुंचाने का काम किया था।
पीएम बनने के करीब पहुंच गए थे मुलायम
1996 में जब संयुक्त मोर्चा की सरकार बनने वाली थी तब मुलायम का नाम एक वरिष्ठ फ्रंट लीडर ने प्रधानमंत्री पद के लिए सामने आया था। हालांकि, लालू प्रसाद यादव ने इसका विरोध किया और मुलायम सिंह पीएम बनते बनते रह गए। कुछ साल पहले ही लखनऊ में एक रैली में इसके लिए उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के नेता को जिम्मेदार ठहराया था। मुलायम सिंह यादव का करियर पांच दशक तक चला पहली बार वह जो 1967 में 28 साल की उम्र में विधायक चुने गए थे।
अयोध्या में गोली कांड के बाद बनी मुल्ला मुलायम की इमेज
1993 में अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस और पहले और बाद की घटनाओं ने मुलायम के राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह मुख्यमंत्री थे जब उन्होंने 1990 में अयोध्या में कार सेवकों पर पुलिस फायरिंग का आदेश दिया था, जब उन्होंने कहा था, "परिंदा भी पर नहीं मारेगा (अयोध्या में सुरक्षा इतनी होगी कि एक पक्षी भी नहीं कर पाएगा)।" मुलायम पिछड़े और मुसलमानों को सपा के वोट बैंक में बदलने का काम किया था। एक समय था जब उन्हें अक्सर अल्पसंख्यक समुदाय के कारण के चैंपियन होने के लिए 'मुल्ला मुलायम' कहा जाने लगा था।
कुश्ती मैच बना जीवन का टर्निंग प्वाइंट
बताने वाले बताते हैं कि मुलायम के राजनीति में प्रवेश की शुरुआत एक कुश्ती मैच से हुई थी। मुलायम मैनपुरी में एक मैच में भाग ले रहे थे और मैनपुरी के जसवंतनगर के तत्कालीन विधायक नाथू सिंह को अपने कौशल और लचीलेपन से प्रभावित किया। नाथू सिंह ने मुलायम को राजनीति में अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना और उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर अपनी जसवंतनगर विधानसभा सीट पर उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया और खुद दूसरे स्थान पर चले गए।
तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे मुलायम
मुलायम तब से तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। 1989-91, 1993-95 और 2003-2007 में। उन्होंने 1996 से 1998 तक संयुक्त मोर्चा सरकार में रक्षा मंत्री के रूप में भी कार्य किया। मुलायम सात बार जसवंत नगर से विधायक रह चुके हैं और मैनपुरी, संभल, कन्नौज और आजमगढ़ से संसदीय चुनाव जीत चुके हैं। उन्होंने 1996, 2004, 2009 और 2014 में चार बार मैनपुरी, 1998 और 1999 में संभल से दो बार और 1999 में कन्नौज से जीत हासिल की थी।
उनके प्रशंसक अपने आपको मुलायमवादी कहते थे
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक मनीष हिन्दवी कहते हैं, '' राजनीति में मुलायम सिंह होना इतना आसान नहीं है। मुलायम सिंह होने के लिए आपको उस तरह से जीना पड़ेगा। मुलायम एक ऐसे नेता थे जिन्होंने अपने आपको यादव नेता की बजाए ओबीसी नेता के रूप में स्थापित किया था। उनपर कभी यादववाद का ठप्पा नहीं लगा। उनकी शख्सित ही थी कि उनके पार्टी के लोग समाजवादी कहलाने की बजाए अपने आपको मुलायमवादी कहना पंसद करते थे। मुलायम सिंह ने यूपी की सियासत को पूरी तरह से प्रभावित करने का काम किया था चाहे वह मंडल कमंडल की राजनीति हो या फिर अयोध्या में कारसेवकों पर हुआ गोलीकांड।''
कभी यादववाद में नहीं बंधे नेताजी, सबका रखा खयाल
उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह की सबसे बड़ी खासियत यही थी कि वह किसी भी जिले में जाते थे तो वहां के कार्यकर्ताओं को नाम से पुकारते थे। उन्हें हर जिले के जिलाध्यक्ष और सपा के नेता के बारे में पता होता था। वह कभी यादववाद में नहीं बंधे। उन्होंने अपने इर्द गिर्द जो जातियों का गुलदस्ता खड़ा किया था वही उनकी ताकत थी। आज उसी की कमी की वजह से सपा को नुकसान झेलना पड़ रहा है। मुलायम अपने कमिटमेंट के भी पक्के थे। खासतौर से सरकारी कर्मचारियों के बीच उनको लेकर एक पॉजिटिव इमेज होती थी। कर्मचारियों के हितों को लेकर हमेशा उन्होंने काम किया।