सपा संग्राम- आंध्र प्रदेश में जो हुआ वह यूपी में इतिहास दोहरा रहा है
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के भीतर जो हो रहा है वह पहले आंध्र प्रदेश में टीडीपी में हो चुका है, आइए डालते हैं एक नजर उस वक्त टीडीपी में किसने की थी बगावत
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के भीतर चल रहा विवाद आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू और उनके ससुर के बीच की याद दिलाता है। आंध्र प्रदेश में 1995 में मुख्यमंत्री तेलगू देशम पार्टी के संस्थापक एनटी रामा राव थे। उस वक्त दोनों के बीच हुए विवाद के बाद भी पार्टी के चुनाव चिन्ह को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। टीडीपी का भी चुनाव चिन्ह सपा की तरह साइकिल था। लेकिन दोनों ही मामलों में जो एक बात अलग थी वह यह कि एनटीआर उस वक्त आंध्र के मुख्यमंत्री थे और चंद्रबाबू नायडू में विद्रोह किया था जबकि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मोर्चा खोला है।
दामाद ने छीनी थी सत्ता
आंध्र प्रदेश में 22 अगस्त 1995 को सियासी दंगल शुरु हुआ था और वह नौ दिनों तक चला था, यह दंगल वाइजैग में डॉल्फिन होटल में चल रहा था, उस वक्त चंद्रबाबू नायडू में एनटीआर को आंध्र का मुख्यमंत्री और टीडीपी का अध्यक्ष मानने से इनकार कर दिया था। पांच दिन के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी ली और 216 टीडीपी विधायकों में से 198 विधायकों ने उन्हें अपना समर्थन दिया। सिर्फ बचे हुए 18 विधायको ने ही एनटीआर का समर्थन किया, जिस वजह से एनटीआर बुरी तरह से आहत हुए। यही नहीं बचे हुए 18 विधायकों ने भी बाद में नायडू का समर्थन किया।
दूसरी
पत्नी
और
गिरती
सेहत
के
चलते
पार्टी
हाथ
से
गई
एनटीआर
ने
29
मार्च
1982
को
टीडीपी
की
स्थापना
की
थी,
उनकी
अगुवाई
में
पार्टी
ने
तीन
चुनाव
में
अपनी
जीत
दर्ज
की,
जिसमें
आखिरी
बार
1994
भी
था।
इस
चुनाव
में
भी
टीडीपी
ने
294
विधानसभा
सीटों
में
से
216
सीटों
पर
अपनी
जीत
दर्ज
की।
एनटीआर
उस
वक्त
कमजोर
हुए
इसकी
अहम
वजह
थी
उनकी
लगातार
गिर
रही
सेहत,
इसके
साथ
ही
एनटीआर
के
लिए
दूसरी
बड़ी
दिक्कत
उनकी
दूसरी
पत्नी
लक्ष्मी
पार्वती
थी,
जिनसे
एनटीआर
ने
अपनी
पहली
पत्नी
के
निधन
केबाद
विवाह
किया
था।
एनटीआर
के
सत्ता
में
होने
के
बाद
भी
पार्वती
के
पास
उसकी
चाभी
थी,
जिसके
चलते
प्रदेश
के
विधायक,
अधिकारी
नाराज
रहते
थे।
एक
वक्त
ऐसा
भी
आया
था
जब
पार्वती
ने
पार्टी
के
साथ
सरकार
को
चलाया
था।
इस
वक्त
यह
चर्चा
भी
होने
लगी
थी
कि
गिरती
सेहत
के
चलते
पार्वती
पार्टी
के
साथ
सरकार
की
कमान
संभाल
सकती
है
पूरा
परिवार
एनटीआर
के
खिलाफ
था
यही
नहीं
एनटीआर
उस
वक्त
अध्यात्म
की
ओर
बढ़ने
लगे
थे
और
उन्होंने
भगवा
कपड़े
पहनने
शुरु
कर
दिए
थे,
माना
जा
रहा
था
कि
वह
स्वामी
विवेकानंद
के
रास्ते
पर
चलने
की
योजना
बना
रहे
हैं।
पार्वती
की
वजह
से
एनटीआर
का
परिवार
भी
उनसे
दूर
होने
लगा
था।
एनटीआर
का
बेटा
बालकृष्ण
जोकि
काफी
लोकप्रिय
तेलुगु
अभिनेता
थे,
वह
पार्टी
की
कमान
संभाल
सकते
थे,
लेकिन
वह
राजनेता
नहीं
थे
लिहाजा
उन्होंने
भी
चंद्रबाबू
नायडू
का
भी
समर्थन
किया।
ऐसे
में
पूरे
एनटीआर
परिवार
ने
नाडयू
का
साथ
दिया।
लेकिन
एनटीआर
की
बेटी
डी
पुरंदेश्वरी
ने
नायडू
का
समर्थन
नहीं
किया,
जिसके
चलते
उन्हें
मीडिया
का
भी
समर्थन
मिला।
दूसरी
पत्नी
खत्म
कर
देती
पार्टी
वरिष्ठ
टीडीपी
लीडर
का
कहना
है
कि
एनटीआर
की
बेटी
के
लगातार
भारी
विरोध
के
बावजूद
भी
नायडू
को
लोकप्रियता
बढ़ती
गई,
क्योंकि
पार्टी
के
लोगों
को
लगता
था
कि
वह
उनके
हित
में
है।
हमें
ऐसा
लगता
है
कि
अगर
नायडू
ने
पार्टी
की
कमान
नहीं
संभाली
होती
तो
पार्टी
पार्वती
की
छत्रछाया
में
बिखर
गई
होती।
आंध्र
प्रदेश
और
उत्तर
प्रदेश
के
हालात
लगभग
एक
हैं
लेकिन
कहानी
दोनों
जगह
की
अलग
है।