सावन विशेष: इस जगह यमराज ने की थी भगवान शिव की आराधना, दर्शन मात्र से मिल जाता है मोक्ष
वाराणसी। उत्तर प्रदेश के काशी में भगवान महादेव का धर्मेश्वर मंदिर काशी विश्वनाथ परिसर के धर्मकूप पर स्थित है। इस मंदिर के बारें में कई कहानियां शिवपुराण सहित तमाम धार्मिक पुस्तकों में है और इसकी प्रमाणिकता सिद्ध करती है। ऐसी मान्यता है कि धर्मेश्वर महादेव मंदिर पर धर्मराज यमराज ने भी भगवान शिव की चार युग तक तपस्या की थी। तब जाकर भोलेनाथ यह स्वयं प्रकट हुए और यमराज को दर्शन दिया। यमराज की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ही अपने इस शिवलिंग का नामकरण करते हुए इसे धर्मेश्वर महादेव का नाम दिया।
नहीं
होती
आकाल
मृत्यु
इस
मंदिर
के
बारे
में
कहा
जाता
है
कि
एक
बार
दर्शन
करने
से
एक
हाजर
सहस्त्रनाम
गायत्री
पाठ
का
फल
मिलता
है।
यही
नहीं
जिन
लोगों
की
कुंडली
में
अकाल
मौत
का
डर
सताता
है
वो
भी
यहां
आकर
भगवान
शिव
के
धर्मेश्वर
स्वरूप
की
पूजा
भी
करते
हैं।
युद्ध
से
पहले
महाभारत
काल
में
युधिष्ठिर
भी
आये
थे
मंदिर
मंदिर
के
पुजारी
दीपक
उपाध्याय
और
बबलू
गुरु
ने
बताया
कि
यह
शिवलिंग
स्वम्भू
है
जहां
शिव
खुद
यमराज
की
तपस्या
से
प्रकट
हुए
है।
इस
लिए
ये
मंदिर
कितना
पुराना
है
इसका
कही
भी
उल्लेख
नहीं
है।
हा
यहां
के
मंदिर
का
जीर्णोद्धार
करीब
1
हजार
साल
पहले
किया
गया
था।
यहां
दर्शन
करने
वालों
की
अकाल
मौत
नही
होती।
वही
बबलू
गुरु
ने
बताया
कि
यहां
महाभारत
युद्ध
से
पहले
युधिष्ठिर
भी
धर्म
की
रक्षा
करने
के
लिए
शिव
के
धर्मेश्वर
स्वरूप
का
दर्शन
करने
आये
थे।
धर्मकूप
को
लेकर
भी
है
मान्यता
इसी
मंदिर
के
करीब
के
एक
कुआ
है
जिसे
धर्मकूप
के
नाम
से
जाना
जाता
है।
बनारस
से
सम्बंधित
पुस्तक
वाराणसी
वैभव
में
लिखा
गया
है
कि
इस
कूप
का
निर्माण
भी
खुद
धर्मराज
यमराज
ने
किया
था।
इस
कुएं
को
लेकर
मान्यता
है
कि
इस
कुएं
के
पानी
मे
परछाई
देखने
से
इंसान
जीवित
रहता
है
जबकि
यदि
परछाई
ना
दिखे
तो
उसकी
मौत
6
महीने
के
अंदर
हो
जाता
है।
साथ
ही
इस
कूप
के
जल
से
किया
गया
तर्पण
और
श्राद्ध
'गया
लाभ'
के
बराबर
होता
है।
रुद्राभिषेक
और
दूर्वा
की
माला
है
प्रिय
पुजारी
दीपक
उपाध्याय
ने
बताया
कि
वैसे
तो
इस
शिवलिंग
पर
सात्विक
सभी
प्रकार
के
भोग
लगाएं
जाते
है।
जैसे
फल,
मेवा,
मिष्ठान,लेकिन
जो
भी
भक्त
सावन
माह
में
एक
बाद
रुद्राभिषेक
करता
है
और
इनके
श्रंगार
में
दूर्वा
की
माला
का
इस्तेमाल
करता
है
उसे
एक
रुद्राभिषेक
करने
पर
1
हजार
सहस्त्रनाम
रुद्राभिषेक
का
फल
मिलता
है।
इसी
आस्था
के
साथ
भक्त
यहां
पूरे
महीने
सावन
में
अपने
पुरोहितों
से
रुद्राभिषेक
और
शिव
का
पाठ
कराते
है।