पितृपक्ष विशेष: वाराणसी में किन्नरों ने किया पूर्वजों की आत्मशांति के लिए पिंडदान
वाराणसी। काशी के गंगा घाट से लेकर पिशाचमौचन कुंड और बिहार के गया में इस समय लोग अपने पितरों की आत्मशांती के लिए श्राध और अनुष्ठान कर रहे है। वहीं, काशी में किन्नर अखाड़ा के महामण्डलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने अपने को सनातन हिंदू मानते हुए पिशाचमोचन कुंड पर अपने पितरों को स्मरण करते हुए उनकी त्रिपिंडी श्राद्ध किया। साथ ही मां गंगा का पूजन-अर्चन व आराधना कर मोक्ष और समृद्धि की कामना की। इसके लिए किन्नर अखाड़ा से जुड़े देशभर के किन्नर समाज के लोग वाराणसी पहुंचे।
कार्यक्रम किन्नर अखाड़ा परिषद की महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी बताया कि आज उन सभी किन्नरों की आत्मा की शांति के लिए ये पिंडदान पितृपक्ष में किया जा रहा है जो किसी मां के गर्भ से जन्म लेने के बाद जब उन्हें मालूम हुआ कि वो किन्नर है तो घर वालो ने उन्हें घर से निकाल दिया और समाज ने उन्हें तिरस्कृत किया। उनकी मौत भी हुई लेकिन हिन्दू परम्परा का निर्वहन ने होने के कारण वो आज भी अतृप्त है ये पिंडदान करने के पीछे का उद्देश्य ये है कि कभी तो उनके परिवार के लोग भी शामिल हो जिन परिवार में उनका जन्म हुआ था।
ऐसे
किया
जाता
है
किन्नौरा
अंतिम
संस्कार
किन्नर
के
निधन
के
बाद
उसका
अंतिम
संस्कार
बेहद
गुप्त
तरीके
से
किया
जाता
है।
जब
भी
किसी
किन्नर
की
मृत्यु
होती
है
तो
उसे
समुदाय
के
बाहर
किसी
गैर
किन्नर
को
नहीं
दिखाया
जाता।
इसके
पीछे
किन्नरों
की
ऐसी
मान्यता
है
कि
ऐसा
करने
से
मरने
वाला
अगले
जन्म
में
भी
किन्नर
ही
होगा।
किन्नरों
के
समुदाय
में
शव
को
दफनाते
हैं।
किन्नरों
की
शवयात्रा
रात
में
निकाली
जाती
है।
एक
किवदंति
ये
भी
है
कि
शवयात्रा
निकालने
से
पहले
शव
को
पादुकाओं
से
पीटा
जाता
है।
हालांकि
किन्नर
समुदाय
भी
इस
तरह
की
रस्मों
से
इनकार
नहीं
करता
है।