यूपी विधानसभा चुनाव 2017: पढ़िए मेरठ के बीजेपी प्रत्याशियों की पूरी राजनीतिक कुंडली
टिकट के इंतजार में दिल थामकर बैठे भाजपाइयों के लिए सोमवार चुनावी चक्रवात लेकर आया। दिनभर की कयासबाजी के बीच भाजपा ने शाम को प्रत्याशियों की सूची भारी उलटफेर के साथ जारी कर दी।
मेरठ। टिकट के इंतजार में दिल थामकर बैठे भाजपाइयों के लिए सोमवार चुनावी चक्रवात लेकर आया। दिनभर की कयासबाजी के बीच भाजपा ने शाम को प्रत्याशियों की सूची भारी उलटफेर के साथ जारी कर दी। गौरतलब है कि विधायक रवीन्द्र भड़ाना का टिकट काटकर सोमेन्द्र तोमर को दिया गया, जबकि हाईवोल्टेज सीट कैंट को होल्ड कर दिया गया है और यहां से पार्टी ने नए चेहरों पर दांव खेला है। जबकि सत्यवीर त्यागी प्रतिद्वंद्वियों पर भारी पड़े। प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए लंबे समय से तैयारी में जुटी भाजपा ने अंतिम क्षणों में कार्ड खेला। तमाम अनुभवी चेहरों को दरकिनार करते हुए भाजपा ने नए चेहरों पर भरोसा जताया है। ये भी पढ़ें: मेरठ: संगीत सोम ने भरा नामांकन, पलायन के मुद्दे पर विरोधियों को दिखाई आंख
दिनेश खटीक - हस्तिनापुर
हस्तिनापुर से दिनेश खटीक को टिकट मिला है, जिनकी संघ में जड़ तीन पीढ़ियों से जुड़ी है। संगठन में करीब बीस वर्ष का अनुभव रखने वाले दिनेश खटीक ने पिछले चुनावों में भी दावा ठोका था, किंतु पार्टी ने इस बार इनाम दिया। पूर्व विधायक गोपाल काली को मजबूत जनाधार का नेता माना जाता है, किंतु वह पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा के खिलाफ लड़े थे। संघ में भी वे पकड़ नहीं बना पाए। पूर्व विधायक अतुल खटीक की पैरोकारी कमजोर पड़ी।
खूबियां- तीन पीढ़ियों से संघ से संपर्क, कार्यकर्ताओं में पकड़।
खामियां- पहली बार पार्टी ने इन्हें प्रत्याशी बनाया है। यहां के पूर्व विधायक और प्रत्याशी गोपाल काली इनके विरोध में हैं। लगातार इनके खिलाफ माहौल बनाये हुए हैं।
जितेन्द्र सतवाई- सिवालखास
सिवालखास से दावेदारों में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मनिंदरपाल सिंह का नाम रेस में आगे माना जा रहा था। सांसद राजेन्द्र अग्रवाल भी उनकी पैरवी कर रहे थे, किंतु तमाम दावेदार उनके खिलाफ लामबंद हो गए। संगठन ने जितेन्द्र सतवाई पर भरोसा जताया। जितेन्द्र सतवाई को टीकरी आश्रम एवं संघ का भी करीबी माना जाता है। पेशे से शिक्षक जितेन्द्र सतवाई गन्ना परिषद की राजनीति में लंबी पारी खेल चुके हैं। टिकट की रेस में अंतिम समय तक मीनाक्षी भराला भी बनी रही, किंतु गत वर्ष जिला पंचायत चुनावों का विवाद आड़े आ गया। यह सीट मेरठ के सांसद राजेन्द्र अग्रवाल एवं बागपत के सांसद सत्यपाल सिंह के बीच भी प्रतिष्ठा का विषय थी, जहां सत्यपाल सिंह अपने नजदीकी जितेन्द्र सतवाई का टिकट कराने में सफल रहे।
खूबियां- टीकरी आश्रम के नजदीक, स्थानीयता, संघ से संपर्क, शिक्षक छवि व सांसद सत्यपाल सिंह की पैरवी।
खामियां- रालोद से राजनितिक सफर शुरू करने के बाद अब भाजपा से टिकट मिलने के बाद स्थानीय लोगों में इनके प्रति कम विश्वाश है ।
डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी - मेरठ शहर
लक्ष्मीकांत वाजपेयी 1964 में स्वयंसेवक बने। 1967 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में आए। 1977 में युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने। 1980 में जिला महामंत्री बने, जिसमें मेरठ के साथ बागपत भी शामिल था। 1989 में पहली बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और विधायक बने। इसके बाद 1993 एवं 2007 में हारे, जबकि 1996 एवं 2012 में जीत गए। कुल चार बार चुनाव जीते, जबकि दो बार हार मिली। प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। 2013 से 2016 के बीच लक्ष्मीकांत वाजपेयी यूपी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे।
खूबियां- बड़ा कद, ब्राह्मण चेहरा, जुझारू व्यक्तित्व, कोई बड़ा प्रतिद्वंदी न होना। लोकसभा चुनावों में 73 सांसदों को जिताने वाला कार्यकाल।
खामियां- बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए मेरठ के विकास में कोई बड़ा योगदान न देने से स्थानीय लोगो में पकड़ हुई ढीली।
सत्यवीर त्यागी - किठौर
किठौर से 2012 में रालोद के टिकट पर चुनाव लड़ चुके सत्यवीर त्यागी पर भाजपा ने दांव खेला है। हालांकि इस सीट पर प्रदेश उपाध्यक्ष अश्विनी त्यागी भी दावेदारी जता रहे थे, किंतु जमीनी तौर पर सत्यवीर भारी पड़े। राजनाथ सिंह के करीबी माने जाने वाले सत्यवीर त्यागी लंबे समय से चुनावी तैयारियों में जुटे थे। बीच में इस सीट पर अवतार भड़ाना की भी चर्चा हुई, किंतु पार्टी ने गुर्जर के बजाय त्यागी वोटों पर भरोसा जताया।
खूबियां- राजनाथ सिंह के करीबी, वोटरों से सीधा संपर्क, लंबा राजनीतिक अनुभव।
खामियां- दलबदलू हैं। पार्टी के पुराने लोग इनका जमकर विरोध कर रहे है।
सोमेंद्र तोमर - मेरठ दक्षिण सीट
मेरठ दक्षिण सीट से भाजपा ने सोमेंद्र तोमर को टिकट दिया है। विधायक रवीन्द्र भड़ाना का टिकट काटना बड़ा निर्णय माना जा रहा है। 2012 में युवा नेता सोमेंद्र तोमर टिकट पाने में सफल रहे थे, किंतु संघ के हस्तक्षेप से टिकट रवीन्द्र भड़ाना को दे दिया गया। इस बार भी सीटिंग विधायकों का टिकट काटने में पार्टी हिचक रही थी, किंतु सोमेंद्र तोमर के पक्ष में प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल एवं क्षेत्रीय अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह की पैरवी अन्य पर भारी पड़ी। सोमेंद्र लंबे समय से टिकट की रेस में विजयी दौड़ लगाने का हुनर सीख रहे थे। विधायक रवीन्द्र भड़ाना को संघ का करीबी माना जाता है। सांसद राजेन्द्र अग्रवाल ने भी सोमेन्द्र की खुलकर पैरवी की।
खूबियां- युवा चेहरा, सांसद राजेन्द्र अग्रवाल की पैरवी, अनुराग ठाकुर, प्रदेश संगठन मंत्री सुनील बंसल एवं क्षेत्रीय अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह से नजदीकी।
खामियां- मौजूदा विधायक का टिकट काटकर प्रत्याशी बने हैं। मौजूदा विधायक सोमेंद्र के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे है।
संगीत सोम - सरधना सीट
संगीत सोम को भाजपा ने फिर से सरधना सीट से टिकट दिया है। 2012 में वे यहीं से भाजपा के टिकट पर विधायकी का चुनाव जीते थे। 2009 में सपा के टिकट पर मुजफ्फरनगर सीट से लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन हार गए थे।
खूबियां- युवा चेहरा, आक्रामक छवि, तेज तर्रार नेता, ठाकुर वोटों में पकड़, कलराज व उमा भारती समेत बड़े नेताओं से संपर्क।
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