लोकसभा उपचुनाव: जातीय समीकरण में उलझी है आजमगढ़ की सियासत, जानिए कहां किसका पलड़ा है भारी
लखनऊ, 14 जून: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में 23 जून को होने वाले उपचुनाव में उम्मीदवारों को लेकर अब तीनों दलों की स्थिति साफ कर दी है। आजमगढ़ लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव को अपना बनाया है तो वहीं बसपा ने जिले की मुबारकपुर विधानसभा सीट से दो बार विधायक रह चुके गुड्डू जमाली को अपना उम्मीदवार बनाया है। दूसरी ओर बीजेपी ने फिर से अपने पुराने लोकसभा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव को मैदान में उतारा है। चुनाव में उर्फ निरहुआ ही एक ऐसे उम्मीदवार हैं जो 2019 के लोकसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर आए थे और अखिलेश यादव को कड़ी चुनौती दी थी। हालांकि इस बार उपचुनाव में बसपा के आने से यहां के जातीय समीकरण काफी उलझ गए हैं और यही कारण है कि कोई यह नहीं तय कर पा रहा है कि जीत किसकी होगी।
हर हाल में जीतना चाहते हैं अखिलेश यादव
हालांकि, इस बार पूर्व मुख्यमंत्री और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को इस सीट के जाति समीकरण के लिहाज से आजमगढ़ लोकसभा सीट जीतने का पूरा भरोसा है। इसी वजह से उन्होंने किसी अन्य उम्मीदवार पर विश्वास नहीं जताया है। उन्होंने खुद अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा है, जो सैफई परिवार से जुड़े हैं। अखिलेश यादव इस चीज को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते हैं। अखिलेश को पता है कि यहां की जीत का संदेश दूर तलक जाएगा इसलिए वह किसी भी कीमत पर कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं।
आजमगढ़ की 5 सीटों पर सपा सपा ने जीता था चुनाव
आजमगढ़ लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। वहीं सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का मानना है कि आजमगढ़ में उनका किसी से कोई मुकाबला नहीं है। आजमगढ़ लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली 5 विधानसभाओं में गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, आजमगढ़ सदर और मेहनगर के क्षेत्र शामिल हैं। इन सभी विधानसभाओं में सपा ने जीत दर्ज की है। इसलिए सपा को पूरा भरोसा है कि वह जीतेगी। वहीं दूसरी ओर आजमगढ़ लोकसभा सीट के जाति समीकरण के मुताबिक अखिलेश यादव जीत को पक्की मान रहे हैं। आजमगढ़ लोकसभा सीट पर उनकी जीत पक्की है, क्योंकि 19 लाख वोट वाली लोकसभा सीट पर सपा के यादव वोट बैंक का 26 फीसदी और मुस्लिम वोटरों का 24 फीसदी है तो 50 फीसदी वोटरों पर उनकी पकड़ मजबूत है।
बसपा का जाति समीकरण क्या है
बसपा भी दलितों और मुसलमानों के जाति गणित को देखते हुए अपनी जीत का दावा कर रही है। आजमगढ़ लोकसभा सीट में यादवों, मुसलमानों के बाद दलित मतदाताओं की सबसे बड़ी आबादी है। इस लोकसभा सीट पर कुल दलित वोटरों की संख्या 20 फीसदी है। बसपा ने गुड्डू जमाली को अपना उम्मीदवार बनाया है। वह यहां मुस्लिम बहुल मुबारकपुर विधानसभा सीट से दो बार विधायक रहे हैं। यहां के मुस्लिम वोटरों के बीच उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है। वहीं बसपा मुस्लिम और दलित वोटरों के गठबंधन के दम पर अपनी जीत का दावा कर रही है। क्योंकि बसपा 44 फीसदी वोटरों पर अपनी पकड़ बता रही है। इस सीट पर एक लाख से ज्यादा दलित वोटर हैं।
पिछड़े और सवर्ण वोटरों पर बीजेपी की नजर
आजमगढ़ लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में बीजेपी की साख दांव पर है। बीजेपी ने एक बार फिर दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को अपना उम्मीदवार बनाया है। बीजेपी को दिनेश लाल यादव के जरिए पूरा भरोसा है कि वह यादव वोट बैंक में सेंध लगाएंगे। वहीं दूसरी ओर पिछड़े और सवर्ण मतदाताओं के सहयोग से वे अपनी जीत सुनिश्चित करेंगे। बीजेपी आजमगढ़ लोकसभा सीट 2009 में सिर्फ एक बार ही जीत पाई है।
बीजेपी की क्यों देख रही अपनी संभावनाएं
अब तक हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, बसपा और सपा को सबसे ज्यादा जीत मिली है। 2009 में रमाकांत यादव बीजेपी के टिकट पर जीते थे। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में दिनेश लाल यादव को अखिलेश यादव के खिलाफ 3 लाख 61 हजार वोट मिले थे जबकि अखिलेश यादव को 6,21,000 से ज्यादा वोट मिले। इस बार न तो मुलायम सिंह यादव और न ही अखिलेश यादव मैदान में हैं। इसलिए बीजेपी खुद को धर्मेंद्र यादव के खिलाफ मजबूत नहीं मानती है।
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