जानिए कौन थे पूर्व लोकायुक्त एन के मेहरोत्रा, कैसे उड़ाई थी BSP सरकार की नींद
यूपी के पूर्व लोकायुक्त एन के मेहरोत्रा का बुधवार को निधन हो गया। मेहरोत्रा को भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ने वाले लोकायुक्त के तौर पर हमेशा याद किया जाएगा। मायावती सरकार के दर्जनभर मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई कर की थी
former UP Lokayukta NK Mehrotra: उत्तर प्रदेश के पूर्व लोकायुक्त जस्टिस (रिटायर्ड) एनके मेहरोत्रा का बुधवार को निधन हो गया। वह 78 वर्ष के थे। मेहरोत्रा ने अपने तीन मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया। उनका नाम तब चर्चा में आया था जब उन्होंने मायावती के कार्यकाल में उनकी सरकार के 11 मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की थी। मेहरोत्रा ने अपने समय में लोकायुक्त जैसे अहम पद की पहचान दिलाई। मेहरोत्रा ने ये बताया था कि यूपी जैसे राज्य में क्यों लोकायुक्त का पद खासे मायने रखता है और इसकी कितनी अहमियत होती है।
एनके मेहरोत्रा 2006 में बने थे यूपी के लोकायुक्त
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति मेहरोत्रा को 16 मार्च, 2006 को उत्तर प्रदेश लोकायुक्त नियुक्त किया गया था। उन्होंने 30 जनवरी, 2016 तक सबसे लंबे समय तक पद पर कार्य किया। वह मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली तीन सरकारों के तहत लोकायुक्त थे, मायावती और अखिलेश यादव। 15 मार्च 2012 को जब उनका कार्यकाल समाप्त हुआ तो उसी दिन सपा सरकार ने अध्यादेश लाकर लोकायुक्त का कार्यकाल छह साल से बढ़ाकर आठ साल कर दिया।
भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ रखा था अभियान
न्यायमूर्ति मेहरोत्रा ने भ्रष्टाचार के आरोपों में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सरकार (2007-12) में 11 मंत्रियों को दोषी ठहराया। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने मंत्रियों को हटाया। उन्होंने बसपा सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में सीबीआई जांच की भी सिफारिश की। बाद में उन्होंने आय से अधिक संपत्ति मामले में समाजवादी पार्टी (सपा) सरकार में खनन मंत्री गायत्री प्रजापति के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की थी।
स्मारक घोटाले में बढ़ाई बीएसपी सरकार की मुश्किलें
यूपी के स्मारक घोटाले में मंत्रियों, नौकरशाहों, इंजीनियरों, ठेकेदारों, निजी फर्मों के मालिकों सहित 199 लोगों को आरोपित किया था। न्यायमूर्ति मेहरोत्रा ने बसपा शासन के दौरान 21 सरकारी चीनी मिलों की बिक्री में हुए एक घोटाले का भी पर्दाफाश किया था। राज्य सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एनके मेहरोत्रा का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। एन के मेहरोत्रा 16 मार्च, 2006 को उत्तर प्रदेश के पांचवें लोकायुक्त बने थे। मेहरोत्रा ने जनता और आम लोगों की शिकायतों पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच शुरू की। लोकायुक्त जांच के बाद कई शक्तिशाली मंत्रियों को पद छोड़ना पड़ा। वह देश के एकमात्र ऐसे लोकायुक्त हैं जिनकी जांच रिपोर्ट पर तत्कालीन सरकार के कई शक्तिशाली मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई की गई।
मायावती सरकार के 11 मंत्रियों के खिलाफ करवाई जांच
एन के मेहरोत्रा तब सुर्खियों में आए थे, जब उनकी जांच रिपोर्ट के आधार पर मायावती सरकार के कई मंत्रियों के खिलाफ जांच की गई थी। सबसे पहले उन्होंने मायावती सरकार में मंत्री रहे राजेश त्रिपाठी के खिलाफ जांच की। उसके बाद मायावती सरकार में तत्कालीन मंत्री रहे अवध पाल सिंह यादव को भी अपने बेटे को सरकारी पशुधन अस्पतालों के निर्माण का ठेका देने में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का दोषी पाया गया था। लोकायुक्त एन के मेहरोत्रा की रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री मायावती ने इन दोनों मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया था।
मेहरोत्रा के कड़े रुख से बैकफुट पर आईं थी मायावती
मायावती सरकार में लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट को लेकर शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र और श्रम मंत्री बादशाह सिंह निशाने पर आ गए थे। रंगनाथ मिश्र पर भदोही और महोबा में एक ग्राम सभा की जमीन हड़पने का आरोप था। उस समय रंगनाथ मिश्र सरकार में ब्राह्मण समाज का चेहरा थे। बहुजन समाज पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग के तहत उनका निष्कासन एक बड़ा फैसला था। मायावती ने न केवल इन मंत्रियों को हटाया बल्कि यह भी जोर देकर कहा कि वह किसी भी भ्रष्ट व्यक्ति को अपने मंत्रिमंडल में नहीं रखना चाहती हैं।
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