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अगर चुनाव से इतना डरेंगी प्रियंका तो फिर पॉलिटिक्स कैसे करेंगी ?

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लखनऊ, सितंबर 18: इतना डर-डर के राजनीति करेंगी प्रियंका गांधी तो कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में कैसे उबार पाएंगी ? कांग्रेस खुल कर ये क्यों नहीं कह रही कि प्रियंका यूपी चुनाव में सीएम फेस हैं और वे चुनाव लड़ेंगी ? कांग्रेस बच-बचा के सिर्फ ये कह रही है कि प्रियंका गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा। वे खुद चुनाव लड़ेंगी कि नहीं, ये मालूम नहीं। रायबरेली की जनता प्रियंका से चुनाव मैदान में उतरने की मांग कर रही है। लेकिन प्रियंका साफ-साफ कुछ नहीं बोल रहीं। क्या कांग्रेस इस बात से डर रही है कि अगर प्रियंका चुनाव हार गयीं तो 'गांधी’ की ब्रांड वैल्यू मिट्टी में मिल जाएगी ? चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने 2016 में कहा था कि अगर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी को सीएम पद का उम्मीदवार बना कर चुनाव लड़ेगी तो बेहतर नतीजे हो सकते हैं। लेकिन सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने इस सुझाव को नहीं माना था। 2021 में भी कांग्रेस की यह कश्मकश बरकरार है।

क्या हार के डर से चुनाव नही लड़ेंगे ?

क्या हार के डर से चुनाव नही लड़ेंगे ?

उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। पुनर्जीवन के लिए उसे विशेष उपचार की जरूरत है। कांग्रेस के समर्थकों की नजर प्रियंका गांधी पर टिकी हुई है। बहुत से लोग उनमें इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं। उनका मानना है कि अगर प्रियंका गांधी को पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतार दिया जाए तो कांग्रेस की राजनीति बदल सकती है। हार या जीत की चिंता छोड़ कर कांग्रेस को संघर्ष का रास्ता अपनाना चाहिए। नेहरू खानदान में इंदिरा गांधी और राहुल गांधी चुनाव हार चुके हैं। तो क्या उनकी राजनीति खत्म हो गयी ? अगर कोई नेता हारने के डर से चुनाव नहीं लड़ेगा तो फिर वह जनता की कसौटी पर खरा कैसे उतरेगा ? मायावती भी अपना पहला चुनाव हार गयीं थीं। 1984 में वे कैराना सोकसभा सीट पर तीसरे स्थान पर रहीं थीं। इस हार ने ही उन्हें जीतने का हौसला दिया। आज वह उत्तर प्रदेश की एक शक्तिशाली नेता हैं। एक चुनाव हारने से सब कुछ खत्म नहीं हो जाता। राजनीति में साहस और जोखिम भरा फैसला ही किसी नेता को आगे बढ़ाता है। प्रशांत किशोर पांच साल से ये बात समझा रहे हैं। लेकिन कांग्रेस सेफ गेम खेलने में लगी है। प्रियंका गांधी मिशन 2022 की अगुवाई भी करें और चुनाव भी नहीं लड़े।

क्या नये लोगों के आने से कांग्रेस का भला होगा ?

क्या नये लोगों के आने से कांग्रेस का भला होगा ?

अगर प्रशांत किशोर कांग्रेस में आये तो क्या उसका कायाकल्प हो जाएगा ? कांग्रेस में फिलहाल इस पर विचार मंथन चल रहा है। जहां तक प्रशांत किशोर की बात है तो कुछ मुद्दों पर उनकी राय राहुल गांधी से बिल्कुल अलग है। प्रशांत किशोर ने एक बार कहा था कि राहुल गांधी यथास्थितिवादी नेता हैं। वे बदलाव और जोखिम उठाने से डरते हैं। कांग्रेस को एक-दो चुनाव हारने की चिंता छोड़ देनी चाहिए। उसे लॉन्ग टर्म पॉलिसी बना कर आगे बढ़ना चाहिए। जब तक जनता से जुड़ाव नहीं होगा तब तक कांग्रेस मजबूत नहीं होगी। राजनीतिक पंडितों का भी मानना है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व दुविधा में फंसा हुआ है। पार्टी में जो ऊर्जावान नेता हैं उनको आजमाने की बजाय वह वैसे बाहरी लोगों पर भरोसा कर रही है जिनका कभी कांग्रेस की नीतियों से वास्ता ही नहीं रहा। जिन प्रशांत किशोर को कांग्रेस में लाने की बात चल रही है वे एक प्रोफेशनल रहे हैं। कन्हैया कुमार की राजनीति सीपीआइ के सांचे में ढली है। जिग्नेश मेवाणी जातीय आंदोलन की उपज हैं। इनकी खासियत यही है ये तीन लोकप्रिय हैं और युवा हैं। लेकिन क्या इनके आने से ही कांग्रेस का भला हो जाएगा ?

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खुद को साबित करना जरूरी

खुद को साबित करना जरूरी

प्रियंका गांधी को लेकर लोगों में एक उत्सुकता तो है लेकिन अभी तक वे चुनावी राजनीति में अपना सिक्का नहीं जमा पायी हैं। लोकसभा चुनाव के समय उन्हें उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की जिम्मेदारी दी गयी थी। लेकिन वे पार्टी को जीत नहीं दिला सकीं। इस साल उन्होंने असम विधानसभा चुनाव में जोरशोर से चुनावी रैलियां की थीं। वे आम जनता को लुभाने के लिए चाय बागानों में गयीं। उन्होंने सिर पर टोकरी बांध कर चायपत्तियां भी तोड़ीं। लेकिन इतना करने के बाद भी वे कांग्रेस को जीत नहीं दिला सकीं। इसलिए कांग्रेस उहापोह में है कि प्रियंका को यूपी चुनाव में सीएम चेहरा बनाया जाए या नहीं ? उत्तर प्रदेश में अगले साल के शुरू में ही चुनाव होना है। चार पांच महीने का ही वक्त है। फिलहाल कांग्रेस ने यूपी के लिए स्क्रीनिंग कमेटी का एलान किया है। चुनाव प्रभारी प्रियंका गांधी को स्क्रीनिंग कमेटी का पदेन सदस्य बनाया गया है। कहने को तो इस कमेटी में कई सदस्य हैं लेकिन होगा वही जो राहुल और प्रियंका चाहेंगे। स्क्रीनिंग कमेटी ही चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों का चयन करेगी।

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क्या विधानसभा चुनाव लड़ने से हैसियत कम हो जाएगी ?

क्या विधानसभा चुनाव लड़ने से हैसियत कम हो जाएगी ?

प्रियंका गांधी ने हाल ही में रायबरेली का दौरा किया था। रायबरेली सोनिया गांधी की सीट है। जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं से प्रियंका मिलीं तो वहां के लोगों ने उनसे मांग कर दी वे रायबरेली विधानसभा का चुनाव लड़ें। प्रियंका ना बोल कर लोगों को नाराज करना नहीं चाहती थीं इसलिए गेंद पार्टी के पाले में फेंक दी। उन्होंने फिर वही पुरानी बात दोहरायी कि अगर पार्टी कहेगी तो वे जरूर चुनाव लड़ेंगी। ये बात वे 2019 से कह रही है। 2019 में जब प्रियंका गांधी ने प्रयागराज से वाराणसी तक गंगा यात्रा निकाली थी तब उनके बनारस से चुनाव लड़ने की चर्चा चल पड़ी थी। कहा जा रहा था कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं। रायबरेली की जनता 2019 से ही यह मांग कर रही है कि प्रियंका यहां से चुनाव लड़ें। तब प्रियंका ने खुद कहा था कि जब लोकसभा का चुनाव लड़ना ही होगा तो बनारस से क्यों नहीं ? लेकिन अंत में उन्होंने चुनाव लड़ने का इरादा छोड़ दिया। न पार्टी उनसे चुनाव लड़ने के लिए कहती न वे चुनाव लड़ती हैं। क्या विधानसभा का चुनाव लड़ने से उनकी हैसियत कम हो जाएगी ? कांग्रेस की यही सोच प्रियंका गांधी के सामने दीवार बन कर खड़ी है।

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English summary
If priyanka gandhi is so scared of elections then how will she do politics
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