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गलत ‘वक्त' पर सही ‘बात' बोल गए हामिद अंसारी!

By राजीव रंजन तिवारी
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हमेशा विवादों से दूर रहने वाले भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अपने कार्यकाल के आखिरी क्षण में मुसलमानों की सुरक्षा के बाबत सवाल उठाकर एक नई बहस छेड़ दी है। यदि हामिद अंसारी के वक्तव्य के बाद की बात करें तो वह कुछ ज्यादा ही असहज करने वाली हैं। पर, अफसोस कि इस मुद्दे को कहीं से कठघरे में खड़ा नहीं किया जा रहा है। मामला देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का है। कहा जा रहा है कि यूपी की योगी सरकार ने राज्य के सभी मदरसों में स्वतंत्रता दिवस पर होने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार कर ली है और इन कार्यक्रमों की वीडियोग्राफी कराने के निर्देश जारी कर दिए हैं। यह पहला मौका है जब ऐसे निर्देश जारी हुए हैं। इसके पीछे सरकार का फौरी मकसद राष्ट्रीय पर्व को लेकर मदरसों की हकीकत का पता लगाना बताया जा रहा है। हालांकि यूपी मदरसा बोर्ड की तरफ से जारी इस आदेश का विरोध भी शुरू हो गया है।

गलत ‘वक्त' पर सही ‘बात' बोल गए हामिद अंसारी!

मदरसा संगठनों ने कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें शक की नजरों से देखा जा रहा है। दरअसल, मदरसा परिषद बोर्ड की ओर से 3 अगस्त को जिला अल्पसंख्यक अधिकारी को एक पत्र भेजा गया। इसमें निर्देश दिया गया है कि स्वतंत्रता दिवस पर सुबह आठ बजे झंडारोहण एवं राष्ट्रगान होगा। सुबह आठ बजकर 10 मिनट पर अमर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाएगी। इन सभी कार्यक्रमों की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी कराकर जिले के अल्पसंख्यक अधिकारी को सौंपने का भी निर्देश है। इस बीच मदरसा प्रबंधक हाजी सैयद तहव्वर हुसैन ने परिषद द्वारा जारी पत्र की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि जंग-ए-आजादी में मदरसा और यहां के शिक्षकों को बहुमूल्य योगदान रहा हैं। इसके बावजूद मदरसों को शक की निगाह से देखा जाना दुर्भाग्यपूर्ण हैं। आल इण्डिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिसे अरबिया गोरखपुर शाखा के जनरल सेक्रेट्ररी हाफिज नजरे आलम कादरी ने कहा कि यह बात जगजाहिर हैं कि मदरसों में राष्ट्रीय पर्वों पर भव्य प्रोग्राम होते है लेकिन जिस तरह से दिशा निर्देश जारी हुए हैं उससे कहीं न कहीं शासन की मंशा पर सवाल जरूर खड़ा होता है।

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यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मई 2017 में संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संस्था की जेनेवा में हुई एक बैठक में भारत के लिए ये तीसरा मौका था जब सरकार मानवाधिकार मामलों पर अपने ट्रैक रिकॉर्ड पर जवाब देना पड़ा। इसी दौरान लेबनान ने भारत को धार्मिक आज़ादी की रक्षा करने की गारंटी देने को कहा। लातविया ने महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा ख़त्म करने की अपील की वहीं कीनिया ने अल्पसंख्यकों और महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा और भेदभाव के खिलाफ़ कदम उठाने कहा। इटली ने फांसी की सज़ा ख़त्म करने के अलावा धार्मिक हमलों के पीड़ितों को न्याय दिलाने की अपील की। स्विट्ज़रलैंड ने सिविल सोसायटी पर पाबंदियों, अल्पसंख्यकों पर हमले को लेकर चिंता ज़ाहिर की। इसके अलावा अफस्पा की समीक्षा की अपील की। पाकिस्तान ने भारत प्रशासित कश्मीर में पैलेट गन का इस्तेमाल बंद करने की अपील की। अमेरिका ने कहा कि भारत में अभी भी दलितों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ भेदभाव बरकरार है।

गलत ‘वक्त' पर सही ‘बात' बोल गए हामिद अंसारी!

जेनेवा की उक्त बैठक में जिस तरह दलितों व अल्पसंख्यकों के मसले पर भारत को घेरने की कोशिश की गई थी, उससे तो यही स्पष्ट होता है कि यहां जो कुछ भी हो रहा है उसकी चर्चा पूरी दुनिया में है। इस स्थिति में पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी के वक्तव्य पर बहुत ज्यादा सवाल करना अथवा उन्हें इसके लिए कठघरे में खड़ा करना न्यायोचित प्रतीत नहीं हो रहा है। दरअसल, 9 अगस्त को देश में अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों के लिए डर और असुरक्षा के माहौल की बात कहने के बाद हामिद अंसारी ने 10 अगस्त को संसद में सरकार को एक बार फिर इशारों में नसीहत दी। अपने कार्यकाल के आखिरी दिन अंसारी ने राज्यसभा में कहा कि किसी भी लोकतंत्र की पहचान उसमें अल्पसंख्यकों को मिली सुरक्षा से होती है। अंसारी ने कहा कि मैंने 2012 में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के हवाले से कुछ कहा था। आज भी मैं उनके शब्दों को कोट कर रहा हूं। किसी लोकतंत्र की पहचान इससे होती है कि उसमें अल्पसंख्यकों की कितनी सुरक्षा है?

हामिद अंसारी ने अपने भाषण के अंत में कहा- 'आओ कि आज खत्म करें दास्ताने इश्क, अब खत्म आशिकी के फसाने सुनाएं हम।' अंसारी ने उपराष्ट्रपति के तौर पर लगातार 2 कार्यकाल पूरे किए। वह 2007 में उपराष्ट्रपति बने थे। बाद में 2012 में भी वह दोबारा उपराष्ट्रपति चुने गए। अल्पसंख्यकों के बाबत हामिद अंसारी द्वारा दिए गए वक्तव्य के बाद नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने देश में अल्पसंख्यकों के बीच असुरक्षा की भावना होने की बात को महज 'राजनीतिक प्रचार' बताकर खारिज कर दिया। नायडू ने हालांकि किसी का नाम नहीं लिया लेकिन उनकी टिप्पणी को पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के वक्तव्य की प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि देश के मुसलमानों में असहजता और असुरक्षा की भावना है और 'स्वीकार्यता का माहौल' खतरे में है।

गलत ‘वक्त' पर सही ‘बात' बोल गए हामिद अंसारी!

नायडू ने कहा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं। यह एक राजनीतिक प्रचार है। पूरी दुनिया के मुकाबले अल्पसंख्यक भारत में ज्यादा सकुशल और सुरक्षित हैं और उन्हें उनका हक मिलता है।' उन्होंने इस बात से भी इत्तेफाक नहीं जताया कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है और कहा कि भारतीय समाज अपने लोगों और सभ्यता की वजह से दुनिया में सबसे सहिष्णु है। उन्होंने कहा कि यहां सहिष्णुता है और यही वजह है कि लोकतंत्र यहां इतना सफल है। वहीं, बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि अंसारी रिटायरमेंट के बाद 'पॉलिटिकल शेल्टर' की तलाश में हैं। उन्होंने कहा कि उपराष्ट्रपति जैसे पद पर बैठे शख्स से ऐसी टिप्पणी की उम्मीद नहीं थी। मैं अंसारी के बयान की निंदा करता हूं। चूंकि वह रिटायर हो रहे हैं, इसलिए उन्होंने राजनीतिक बयानबाजी की है। ऐसा लगता है कि वह रिटायरमेंट के बाद पॉलिटिकल शेल्टर पाना चाहते हैं।

हामिद अंसारी के इस बयान के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में उनके कार्यकाल की तारीफ़ भी की और चुटकी भी ली। पीएम ने कहा कि हामिद अंसारी और उनके पूर्वजों का सार्वजनिक जीवन में सराहनीय योगदान रहा है और विदेश नीति मामलों में काफ़ी कुछ सीखने का मौका मिला है और राजनयिक के तौर पर भी। बतौर राजनयिक अंसारी ने पश्चिम एशियाई देशों में एक लंबा समय बिताया और उसी दायरे में ज़िन्दगी के बहुत वर्ष आपके गए। उसी माहौल में, उसी सोच में, उसी डिबेट में, ऐसे लोगों के बीच में रहे। वहां से रिटायर होने के बाद ज़्यादातर काम वहीं रहा आपका, माइनॉरिटी कमीशन हो या अलीगढ़ यूनिवर्सिटी हो, दायरा आपका वही रहा। बहरहाल, कहा जा सकता है कि हामिद अंसारी की बातों में विवाद पैदा करने जैसा कोई तथ्य नहीं है। सरकार माने या न माने, पर इधर कुछ वर्षों से बेशक अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना बढ़ी है। मॉब लिंचिंग इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता है।

English summary
Ex vice president hamid ansrai say the right thing at wrong moment
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