करहल में मुलायम को ले जाना अखिलेश की मजबूरी या जीत का अंतर बढ़ाने की जुगत ?
लखनऊ, 18 फरवरी: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के चीफ अखिलेश यादव पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। यूं तो अखिलेश ने अपने लिए सबसे सेफ सीट मैनपुरी जिले की करहल सीट को चुना हैं जहां लगभग डेढ़ लाख यादव मतदाता हैं। इन यादव मतदाताओं पर ही अखिलेश को जिताने का दारोमदार है। इन परिस्थितियों के बीच अखिलेश ने पूर्व मुख्यमंत्री और अपने पिता मुलायम सिंह यादव को अपने प्रचार के लिए करहल लेकर जाना पड़ा। इसे अखिलेश की मजबूरी कहें या फिर जीत का अंतर बढ़ाने की कोशिश जिसके तहत वह विरोधियों में संदेश देना चाहते हैं कि यादवलैंड में उनके सामने कोई भी लड़े चाहे वह केंद्रीय मंत्री ही क्यों न हो उसका हश्र यही होने वाला है। हालांकि स्थानीय जानकारों का कहना है कि इस बार यादवों के बीच भी बंटवारा हो गया है जिससे अखिलेश चिंतित हैं और वह इस खाई को मुलायम सिंह के माध्यम से पाटना चाहते हैं क्योंकि ये हुनर धरतीपुत्र के पास ही है।
मुलायम ने की अखिलेश को वोट देने की अपील
मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट चर्चा में है। ये एक यादव बाहुल्य सीट है। इसके बावजूद सपा का खेमा चिंतित है। राजनीतिक विश्लेषक इसकी वजह भी बताते हैं। राजनीतिज्ञों का मानना है कि करहल में यादव वोटबैंक अच्छी तादाद में है तो जरूर लेकिन यह 'घोषी यादव' और 'कमरिया यादव' के बीच बंटा हुआ है। सपा ने इसका तोड़ निकालने के लिए ही मुलायम को करहल में लेकर आना पड़ा। करहल में आने के बाद ऐसी उम्मीद है कि यह खाई पट जाएगी। गुरुवार को करहल में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को वोट देने की अपील की।
करहल को चुनने के पीछे की वजह
करहल के लोगों से बात करने पर अखिलेश के यहां से लड़ने की वजहें भी सामने आईं। स्थानीय लोग बताते हैं कि तेज प्रताप यादव और मुलायम सिंह यादव का यह संसदीय क्षेत्र है। तेज प्रताप यादव यहां प्रचार कर चुके हैं। अखिलेश के प्रचार की जिम्मेदारी वह खुद संभाल रहे हैं। लोग यादव परिवार से सीधे जुड़े हुए हैं। सभी अपनापन समझते हैं। यहां से नामांकन करने के बाद अखिलेश यादव निश्चिंत होकर पूरे प्रदेश पर फोकस कर रहे हैं। पश्चिमी यूपी और आजमगढ़ मुस्लिम बाहुल्य होने के चलते मजबूत है। मैनपुरी क्षेत्र की विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने से वो अवध में भी असर डालेंगे। इससे पार्टी का प्रचार भी आसानी से हो सकेगा।
यादव और गैर-यादवों का मुद्दा बनाने की कोशिश
करहल में गैर-यादव वोटर हैं जिनका आरोप है कि वहां न तो सड़कें हैं और न ही दूसरी सुविधाएं। ककवाई, उरथान, हरवाई, गमीरा, नगलाबीच जैसे 60 से ज्यादा गांव गैर-यादव वोटर हैं। इन गांवों के लोग कहते हैं कि सपा की सरकार में उनका विकास इसलिए नहीं हुआ क्योंकि यहां यादव वोटर नहीं है। वहीं, जब भाजपा की सरकार आई तो इसलिए काम नहीं कराए गए क्योंकि यह गांव समाजवादी पार्टी के गढ़ कहीं जाने वाली करहल विधानसभा के अंतर्गत आते हैं।
क्या कहते हैं करहल सीट के आंकड़े
करहल में जातीय आंकड़ों की बात करें तो यहा पुर कुल वोटर लगभग 3 लाख 71 हजार के करीब हैं। इसमें यादव 1 लाख 44 हजार, शाक्य 34 हजार, राजपूत 25 हजार, जाटव 33 हजार, पाल 16 हजार, ब्राह्मण 14 हजार, मुस्लिम 14 हजार, लोधी 10 हजार हैं। करहल में यादवों में घोषी और कमरिया गोत्र होते हैं। मुलायम सिंह यादव का परिवार कमरिया गोत्र है। इसी गोत्र के वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। लेकिन घोषी गोत्र वाले यादवों की संख्या इतनी तो है कि चुनाव में सपा को थोड़ा नुकसान पहुंचा सके।
जातियों को सहेजने में जुटी सपा
यादवों के बाद दूसरे नंबर पर 34 हजार शाक्य, फिर 25 हजार राजपूत, 33 हजार जाटव, 16 हजार पाल, 14 हजार ब्राह्मण, 14 हजार मुस्लिम और 10 हजार लोधी वोटर हैं। यादव और गैर-यादव वाले फैक्टर को लेकर शाक्य सपा से नाराज हैं। वहीं, लोधी और ठाकुर वोटरों का झुकाव बीजेपी की तरफ है। ठाकुर के चलते ब्राह्मण अखिलेश को पसंद कर रहे हैं। इन तमाम जातिगत समीकरणों को जीत में बदलने के लिए तेजप्रताप यादव ही लोगों से वोट मांग रहे हैं और वही मुलायम सिंह का संसदीय काम भी देख रहे हैं।
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