हैप्पी बर्थडे राहुल द्रविड़: भारतीय क्रिकेट का वो नायक, जो वास्तव में कभी रिटायर ही नहीं हुआ
नई दिल्ली, 11 जनवरी: राहुल द्रविड़ आज 49 साल के हो गए हैं। द्रविड़ ने भारतीय क्रिकेट के लिए अपने खिलाड़ी दिनों में जो योगदान दिया वह कई बार उनके समय के दूसरे महान खिलाड़ियों की उपलब्धियों तले दब जाता है। द्रविड़ जब खेले तब भारत के पास सचिन तेंदुलकर, गांगुली, लक्ष्मण जैसे खिलाड़ी मौजूद थे। बाद में सहवाग, धोनी, युवराज जैसे खिलाड़ी भी आए। बॉलिंग में कुंबले ने जो आंकड़े पाए वह भी द्रविड़ के समय थे। यह कई महान खिलाड़ियों का दौर था जो केवल टीम इंडिया ही नहीं बल्कि बाकी इंटरनेशनल टीमों में भी खेल रहे थे। इन सबके बीच द्रविड़ बिना जोर-शोर के अपना काम निरंतरता से करते रहे। उनके संन्यास के बाद पता चला कि वह कितने अहम थे।
भारतीय क्रिकेट में योगदान देने का सफर बिना थके जारी-
यह भी सुखद आश्चर्य है कि रिटायरमेंट के दिन बढ़ने के साथ-साथ द्रविड़ की उपलब्धियां बाकी दिग्गजों की तुलना में और ज्यादा निखरती गई। उनके पर्दे के पीछे काम करने की आदत उनकी पर्सनलिटी का सबसे मजबूत पक्ष बनकर उभरी और उन्होंने भारतीय क्रिकेट में एक कोच के तौर पर महान योगदान दिया जो अभी तक जारी है।
भारत का 15 साल तक प्रतिनिधित्व करने के बाद द्रविड़ ने 2012 में क्रिकेट को अलविदा कह दिया था। उन्होंने राजस्थान रॉयल्स के साथ खेलना जारी रखा और बाद में कोच के तौर पर अपनी अगली पारी में छा गए।
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राजस्थान रॉयल्स से कोचिंग करियर शुरू-
कोच द्रविड़ का काम भी उतना ही शानदार है जितना एक बल्लेबाज द्रविड़ का था। यहां फर्क काम की पहचान का है क्योंकि एक बल्लेबाज के तौर पर द्रविड़ को टक्कर देने के लिए उनकी ही टीम में बल्लेबाजों की भरमार थी लेकिन कोच के तौर पर उन्होंने जो किया उसके आसपास भी कोई भारतीय दिग्गज नहीं फटकता।
2014 में राजस्थान रॉयल्स से अपना कोचिंग करियर शुरू करने वाले द्रविड़ ने कई युवाओं को तराशना शुरू कर दिया जिसका फायदा आरआर को मिला। टीम का प्रदर्शन बेहतर होता रहा। लेकिन द्रविड़ अब आईपीएल टीम तक सीमित होकर नहीं रह सकते थे। उन्होंने बड़ा मंच चुना और अंडर-19 भारतीय क्रिकेट टीम को संवारने का बीड़ा उठा लिया। यहां पर ऋषभ पंत, ईशान किशन और वाशिंगटन सुंदर जैसे खिलाड़ियों की टीम 2016 के अंडर-19 वर्ल्ड कप फाइनल में पहुंची थी। भारत कप नहीं जीत सका लेकिन युवाओं ने सुनहरे भविष्य का भरोसा दिखाया।
द्रविड़ ने युवाओं को पहचाना और दुनिया ने एक कोच को-
इस बीच द्रविड़ दिल्ली डेयरडेविल्स के मेंटर के तौर पर जुड़े लेकिन बहुत सफलता टीम को नहीं मिली। कोचिंग और मेंटरशिप में थोड़ा अंतर तो होता ही है। दिल्ली को कोच और मेंटर के तौर पर पोटिंग और गांगुली की जोड़ी बाद में मिली जो दिल्ली कैपिटल्स के लिए बदलाव की शुरूआत कही जा सकती है।
इसी बीच, द्रविड़ 2018 के अंडर 19 वर्ल्ड कप में छा गए। यहां पर उनकी कोचिंग में पृथ्वी शॉ की टीम ने न्यूजीलैंड में ट्रॉफी को उठाने का कारनामा करके दिखाया। यहां पर शुभमन गिल, शिवम मावी और बाकी भरोसेमंद युवा उभरते हुए दिखाई दिए। अब द्रविड़ भारतीय ए टीम को कोच के तौर पर भी काम जारी रख रहे थे।
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नेशनल क्रिकेट अकादमी का कायापलट किया-
यहां पर भारतीय क्रिकेट के कर्ता-धर्ता जान चुके थे कि युवाओं में द्रविड़ की जो पैठ है वह एक खजाने की तरह से है। द्रविड़ कमेंट्री या किसी अन्य चीज की चमकधमक से दूर रहकर भारतीय क्रिकेट की बुनियाद को संभाल रहे थे। ये उनकी युवाओं के बीच बढ़ती लोकप्रियता ही थी जिसने साल 2019 में नेशनल क्रिकेट अकादमी के डायरेक्टर के तौर पर उनका काम और आगे बढ़ाया।
द्रविड़ ने एनसीए में भी शानदार काम किया। इस संस्था का कायापलट हुआ और आज ये भारत में क्रिकेट का टॉप संस्थान है जिसके डायरेक्टर द्रविड़ के समकालीन वीवीएस लक्ष्मण हैं। जबकि द्रविड़ अब अगले स्टेप पर जा चुके हैं जिसको उनके कोचिंग करियर का पीक भी कहा जा सकता है।
आज कोचिंग करियर के चरम पर द्रविड़-
द्रविड़ आज भारतीय क्रिकेट टीम के हेड कोच हैं और वे बीसीसीआई की पसंद हैं। उनको मुश्किल से मनाया गया है। बताया जाता है राहुल इतनी आसानी से रेडी नहीं हुए लेकिन गांगुली की बात को टाल भी नहीं सके। रवि शास्त्री के सफल कार्यकाल के बाद भारत को द्रविड़ से भी काफी उम्मीदें हैं। उन्होंने हेड कोच करियर की शुरुआत धमाकेदार जीतों से की है और अब साउथ अफ्रीका की धरती पर एक नया इतिहास रचने के मुहाने पर खड़े हैं, जहां भारत केपटाउन में टेस्ट जीतकर पहली बार साउथ अफ्रीका में टेस्ट सीरीज जीतने की ओर देख रहा है।