शिमला: पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुखराम लौटे कांग्रेस में, पोते के लिए मंडी का टिकट किया पक्का
शिमला। तेजी से घटे घटनाक्रम के तहत सोमवार को दिल्ली में पूर्व केन्द्रीय मंत्री पंडित सुखराम कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस में शामिल हो गये। इस अवसर पर उनके पोते आश्रय शर्मा ने भी कांग्रेस ज्वॉइन कर ली। कांग्रेस उन्हें मंडी से लोकसभा प्रत्याशी बनाने जा रही है। सुखराम की वापिसी के समय हिमाचल प्रभारी रजनी पाटिल, सह प्रभारी गुरकीरत कोटली व प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर व नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री भी मौजूद रहे। इसके साथ ही तय हो गया है कि मंडी से आश्रय शर्मा ही कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे।
भाजपा से टिकट मांग रहे थे सुखराम
कांग्रेस आज अपने हिमाचल के प्रत्याशियों की घोषणा करने जा रही है, लेकिन इससे पहले सुखराम ने नया पैंतरा चलते हुये कांग्रेस में शामिल होकर सभी को चौंका दिया। दरअसल, दो दिन पहले तक सुखराम भाजपा से अपने पोते के लिये मंडी का टिकट मांग रहे थे, लेकिन भाजपा ने मंडी से एकबार फिर रामस्वरूप शर्मा को मैदान में उतार कर साफ कर दिया कि पार्टी इस बार किसी भी दवाब को सहन नहीं करेगी। भाजपा में दरवाजे बंद होने के बाद सुखराम अब कांग्रेस में जाने की राह चुनी, जो कामयाब भी रही।
बात नहीं बनी तो कांग्रेस प्रेम जागा
सुखराम के बेटे अनिल शर्मा हिमाचल की जयराम सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं व उनके बेटे को भी अपनी राजनैतिक पारी की शुरुआत इसी चुनाव से करनी है। पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान पंडित सुखराम ने भाजपा अपने बेटे सहित ज्वॉइन की, अनिल ने मंडी सदर से चुनाव जीता और मंत्री बने। लेकिन एक साल बाद अब सुखराम अपने पोते के भविष्य को लेकर भी चिंतित हो उठे हैं। पहले उन्होंने टिकट के लिये भाजपा पर दवाब बनाया, लेकिन जब बात नहीं बनी तो अब उनका कांग्रेस प्रेम जाग गया है। इसे वह अपनी घर वापिसी कह रहे हैं, लेकिन शर्त यही है कि उनके पोते आश्रय शर्मा को मंडी से लोकसभा का टिकट मिले। इसके लिये उनकी बाकायदा अहमद पटेल से बात भी हो चुकी है और उसके बाद सुखराम राहुल गांधी से भी मिल चुके हैं, जिससे उनकी वापिसी की अटकलों को बल मिला है। आखिर तमाम अटकलें सही साबित हुई हैं।
क्या है सुखराम का राजनैतिक इतिहास
सुखराम पीवी नरसिंहा राव के शासनकाल के दौर में संचार मंत्री होने के नाते संचार घोटाले में फंसे थे, बाद में उन्हें सजा भी हुई। इस बीच उनका पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के साथ छत्तीस का आंकड़ा रहा। उन्होंने अपना राजनैतिक दल हिमाचल विकास पार्टी के नाम से बनाया और 90 के दशक में हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल को समर्थन देकर भाजपा सरकार बनाने में अहम योगदान दिया। बाद में सुखराम ने भाजपा से नाता तोड़ कांग्रेस में वापसी की और एक बार फिर पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गये। अब फिर सुखराम कांग्रेस में वापिसी के लिये तिकड़म भिड़ा रहे हैं।
कांग्रेस को मिली संजीवनी
दरअसल, पार्टी के एक धड़े का मानना है कि न तो इस बार खुद वीरभद्र सिंह न ही उनके परिवार को कोई सदस्य इस बार चुनाव लड़ने को तैयार हो पा रहा था। न मंडी के दिग्गज कांग्रेस नेता कौल सिंह चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। ऐसे हालात में सुखराम की घर वापिसी से कांग्रेस को संजीवनी मिली है। अब उनके पोते आश्रय शर्मा कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ेंगे, जो भाजपा के लिये सुखद नहीं होगा। मंडी की राजनिति की बात की जाये तो यहां सुखराम व उनके परिवार का अच्छा खासा जनाधार है।