चालक प्रताप ने भारत-पाक युद्ध में बमबारी के बीच भी नहीं रोकी ट्रेन, सेना तक राशन पहुंचाकर ही लिया दम
barmer News, बाड़मेर। बात जब की देश की रक्षा हो। दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देने की हो या भारतीय सेना का साथ देने की। हिन्दुस्तान में हर कोई अदम्य साहस दिखाने से पीछे नहीं रहता। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण भारतीय रेलवे का वो सबसे बहादुर चालक है, जिसने भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान बमबारी के बीच सेना तक राशन पहुंचाकर आया।
हम बात कर रहे हैं भारत-पाक युद्ध 1965 (Indo Pak war 1965) में पराक्रम दिखाने वाले रेलवे चालक प्रतापचंद की। मूलरूप से राजस्थान के बाड़मेर निवासी प्रतापचंद की बहादुरी के चलते उन्हें युद्ध समाप्ति के बाद अशोक चक्र से नवाजा गया था। संभवतया प्रतापचंद रेलवे के वो इकलौते चालक हैं, जिन्हें युद्ध पराक्रम दिखाने पर अशोक चक्र प्राप्त हुआ।
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रेल जंग के मैदान से होकर गुजरनी थी
मीडिया रिपोर्टस के अनुसार हुआ यह था कि वर्ष 1965 में भारत पाकिस्तान की सेना आमने-सामने थी। पाकिस्तान की ओर से भयंकर बमबारी की जा रही थी। इसी दौरान राजस्थान के बाड़मेर रेलवे स्टेशन पर सूचना आई कि भारत-पाक बॉर्डर पर युद्ध लड़ रही भारतीय सेना के पास राशन सामग्री पहुंचानी है। यह सामग्री बाड़मेर से लगभग 125 किलोमीटर दूर बॉर्डर के पास स्थित मुनाबाव रेलवे स्टेशन (munabao railway station) तक ले जाई जानी थी, मगर रेल जंग के मैदान से होकर गुजरनी थी। इसलिए किसी बहादुर चालक की जरूरत थी।
राशन सामग्री से भरी ट्रेन लेकर बॉर्डर की ओर रवाना हो गए
रेलवे के चालक प्रताप चंद ने इस काम के हामी भरी और जान की परवाह किए बिना ही रात को राशन सामग्री से भरी ट्रेन लेकर बॉर्डर की ओर रवाना हो गए। जंग के चलते पटरियां क्षतिग्रस्त हो चुकी थी। इसलिए सूझबूझ से काम लेते हुए ट्रेन के खाली डिब्बे वहीं पर छोड़कर राशन सामग्री से भरे कोच लेकर आगे बढ़े।
प्रताप चंद के 17 साथियों की जान भी चली गई
प्रताप चंद के बेटे मेवाराम ने भारत-पाक युद्ध में पिता की बहादुरी की चर्चा करते हुए बताया कि रात को उनके पिता चालक प्रताप चंद व अन्य साथियों के साथ ट्रेन लेकर बॉर्डर की ओर बढ़ रहे थे तब दोनों से बमबारी हो रही थी। प्रताप चंद के 17 साथियों की जान भी चली गई। उनकी याद में गडरारोड में शहीद स्मारक बना हुआ है, जहां मेला भी लगता है। उस दौरान एक छर्रा चालक प्रताप चंद को भी लगा, जिससे वे जख्मी हो गए, लेकिन बमबारी के बीच भी ट्रेन नहीं रोकी। ना ही ट्रेन की गति कम की और आखिर में सेना तक राशन सामग्री पहुंचाकर ही दम लिया। मेवराम ने बताया कि उनके पिता की बहादुरी पर उन्हें आज भी गर्व है। घर पर पिता को मिला अशोक चक्र देख सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।