कांग्रेस की 5 बड़ी कमजोरियां जिन्होंने दी अशोक गहलोत को ताकत, दिखा रहे हैं आंख
जयपुर, 26 सितंबर। पिछले 10 सालों की बात करें तो एक के बाद एक कांग्रेस कमजोर होती नजर आई है। लगातार दो बार लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद एक के बाद एक बड़े राज्यों में कांग्रेस की हार ने पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दिया है। कांग्रेस पार्टी ने ना सिर्फ चुनाव में हार का मुंह देखा बल्कि कई राज्यों में पार्टी को आंतरिक कलह का भी सामना करना पड़ा। पंजाब जैसे बड़े राज्य में तो पार्टी को आंतरिक कलह के चलते ना सिर्फ हार का मुंह देखना पड़ा बल्कि पार्टी में दो फाड़ भी देखने को मिला। पार्टी के पुराने दिग्गज नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया।
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अशोक गहलोत को भांपने में चूक
अलग-अलग राज्यों में एक के बाद एक हार के बाद राज्यों में पार्टी को एकजुट करने में कांग्रेस आला कमान बुरी तरह से विफल रहा। इसी तरह का ताजा घटनाक्रम राजस्थान में देखने को मिल रहा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जिस तरह से पर्दे के पीछे से सियासी चाल चलनी शुरू की है उसका जवाब फिलहाल कांग्रेस आला कमान के पास नहीं दिख रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को इस बात की जरा भी भनक नहीं थी कि प्रदेश में यह सब हो सकता है।
राजस्थान की जमीनी राजनीति से कटा गांधी परिवार
अगर कांग्रेस के आला कमान को राजस्थान में हुए घटनाक्रम की भनक पहले से नहीं थी तो निसंदेह आला कमान राजस्थान में अपनी जमीन खो चुका है। प्रदेश में किसी भी राजनीतिक जानकार से अगर बात करें तो उसे इस बात की जानकारी थी कि प्रदेश में अशोक गहलोत के समर्थन में बगावत हो सकती है। लिहाजा गांधी परिवार को इसकी भनक नहीं होना उनकी जमीनी हकीकत से दूरी को साफ तौर पर दर्शाता है। यह पूरा घटनाक्रम इसलिए भी पार्टी के नेतृत्व पर सवाल खड़ा करता है अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच टकराव काफी लंबे समय से टकराव चल रहा है, बावजूद इसके पार्टी को इस हालिया घटनाक्रम का कोई अंदेशा नहीं था।
पायलट-गहलोत विवाद को नहीं सुलझा सके
सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच का टकराव हर किसी के सामने है। प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि सचिन पायलट को अशोक गहलोत की जगह मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। माना जा रहा था कि सचिन पायलट को आगे करके पार्टी युवा नेतृत्व में भरोसा करेगी। लेकिन चुनाव बाद सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कमान नहीं मिली और उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद सौंपा गया। लेकिन कुछ समय के बाद उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। पिछले चार साल के कार्यकाल में तकरीबन 2-3 बार सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच टकराव खुलकर सामने आया, लेकिन स्थायी रूप से कांग्रेस आला कमान इसे सुलझा नहीं सका।
कमजोर होता केंद्रीय नेतृत्व
कांग्रेस ने राजस्थान के उदयपुर में जब चिंतन शिविर हुआ था तो उस वक्त यह तय हुआ था कि पार्टी में एक व्यक्ति और एक पद का सिद्धांत लागू होगा। राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया था कि वह कांग्रेस अध्यक्ष का पद नहीं लेना चाहते हैं। ऐसे में माना जा रहा था कि उदयपुर चिंतन शिविर में पास हुए प्रस्ताव का पालन पार्टी के शीर्ष नेता करेंगे। लेकिन कई राज्यों में कांग्रेस की जिस तरह से दुर्दशा हुई, राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी कमजोर हुई उसके चलते आला कमान के हाथ में ताकत निसंदेह बहुत कम दिख रही है। यही वजह है कि स्थानीय नेता लगातार आला कमान को ठेंगा दिखाते नजर आ रहे हैं और गांधी परिवार इनके सामने लाचार नजर आ रहा है।
पूर्व में राज्यों की फूट सुलझाने में विफल
राजस्थान संकट की एक बड़ी वजह यह भी है कि पार्टी किसी भी राज्य में अपनी ताकत का प्रदर्शन नहीं कर सकी। कुछ इसी तरह की बगावत पंजाब में देखने को मिली थी, जब नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच देखने को मिली थी। आलम यह हुआ कि सिद्धू की बगावत के चलते ना सिर्फ पार्टी में फूट हुई, बल्कि कांग्रेस को शर्मनाक हार का मुंह देखना पड़ा। इसी तरह की फूट झारखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा समेत कई राज्यों में देखने को मिल चुकी है और इन तमाम राज्यों में केंद्रीय नेतृत्व अपनी ताकत दिखाने में पूरी तरह से विफल रहा। यही वजह है कि एक बार फिर से राजस्थान में शीर्ष नेतृत्व लाचार होता दिख रहा है।