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बिहार में12 साल बाद सामने आया खाकी का 'दागदार' सच

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पटना। सालों पहले की गलती का दाग अब जाकर खाकी पर लगा है, जिसके बाद से राज्य में हर शख्स पुलिस को तिरछी नजरों से देख रहा है। 12 साल पहले एक फर्जी एनकाउंटर में तीन छात्रों की हत्या करने के आरोप में स्थानीय अदालत ने दो पुलिसकर्मियों को दोषी पाया है। जबकि छह अन्य को हत्या के प्रयास में दोषी माना गया है।

फास्ट ट्रैक कोर्ट-1 के जज रवि शंकर सिन्हा ने यह फैसला सुनाया। घटना के समय दोषी शम्स आलम शास्त्री नगर पुलिस स्टेशन में स्टेशन हाउस अधिकारी था जबकि अरुण कुमार सिंह कांस्टेबल था।

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कोर्ट आगामी 12 जून को सभी आठ दोषियों को सजा सुनाएगी। 28 दिसंबर, 2002 को शास्त्री नगर पुलिस स्टेशन के अंतर्गत पड़ने वाले आशियाना नगर क्षेत्र के बाजार में विकास रंजन, प्रशांत सिंह और हिमांशु शेखर नाम के छात्रों को फर्जी एनकाउंटर में मार दिया गया था।

जिन छह (कमलेश कुमार गौतम, राजू रंजन, सोनी राजक, कुमोद कुमार, राकेश कुमार मिश्रा और अनिल) को हत्या के आरोप का दोषी पाया गया है, वे सम्मेलन मार्केट के दुकानदार थे, जिन्होंने इन तीन छात्रों को बुरी तरह से पीटा था।

एसटीडी बिल को लेकर छात्रों की टेलीफोन बूथ ऑपरेटर से झड़प हो गई थी। घटना के बाद मौके पर सिंह के साथ पहुंचे आलम ने तीनों छात्रों के सिर में गोली मार दी थी और रिपोर्ट में उन्हें डकैत करार दे दिया था।

विकास रंजन के भाई मुकेश रंजन ने फर्जी एनकाउंटर की शिकायत की थी। पहले इस मामले की जांच स्थानीय पुलिस द्वारा की गई और इसके बाद सीआईडी ने इसकी जांच की। बाद में इसे सीबीआई को सौंप दिया गया। फ‍ि‍लहाल सामने आई इस हकीकत से आम जनता ही नहीं कानून महकमा भी हैरत में नजर आ रहा है।

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English summary
Bihar encounter case has been opened up after 12 years
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