तालिबान पर पाकिस्तान का सुर बदला या नई नौटंकी ? इमरान खान ने दी 'गृह युद्ध' की चेतावनी
इस्लामाबाद, 22 सितंबर: पाकिस्तान लगता है कि अफगानिस्तान के मुद्दे पर दुनिया की आंखों में धूल झोंकने के लिए फिर से नई नौटंकी शुरू करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। शुरू से हक्कानी नेटवर्क के जरिए काबुल पर कट्टर इस्लामिक सरकार गठित करने की साजिश रच चुके पाकिस्तान और इमरान खान ने अब वहां समावेशी सरकार की वकालत करनी शुरू कर दी है। पाकिस्तानी पीएम ने एक विदेशी न्यूज एजेंसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो अफगानिस्तान गृह युद्ध की चपेट में आ जाएगा। तालिबान और आतंकवाद को लेकर अब दुनिया के सामने भी पाकिस्तान का रोल संदिग्ध नहीं रहा है, बल्कि वह पूरी तरह से बेनकाब हो चुका है। इसलिए, सवाल उठ रहे हैं कि इमरान को सच में वहां गृह युद्ध की आशंका है या फिर वह इसके जरिए कोई और खौफनाक साजिश रचना चाहते हैं।
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इमरान खान ने दी 'गृह युद्ध' की चेतावनी
अफगानिस्तान की आवाम को हथियारबंद तालिबान के आतंकियों के हवाले करने के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को अब उनकी चिंता सताने लगी है। मंगलवार को बीबीसी नेटवर्क को दिए एक इंटरव्यू में खान ने अफगानिस्तान में 'गृह युद्ध' के खतरे की चेतावनी दे डाली है। अब इमरान को लगता है कि अगर तालिबान समावेशी सरकार बनाने में नाकाम रहा तो ऐसी नौबत कभी भी आ सकती है। इमरान खान के मुताबिक, 'अगर वहां समावेशी सरकार नहीं होगी तो वह धीरे-धीरे गृह युद्ध की ओर बढ़ जाएगा, अगर उन्होंने सभी गुटों को शामिल नहीं किया तो.... थोड़ी जल्दी या थोड़ी देर से... (ऐसा होगा), इससे पाकिस्तान भी प्रभावित होगा।'
क्या 'गृह युद्ध' की धमकी, ब्लैकमेल करने की कोशिश है ?
पाकिस्तानी पीएम के मुताबिक उनके देश की मुख्य चिंता गृह युद्ध के भड़कने की स्थिति में मानवीय और शरणार्थी संकट को लेकर है, इसके साथ ही अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल वे हथियारंबद संगठन कर सकते हैं, जो कि पाकिस्तान सरकार के साथ लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि 'इसका मतलब होगा एक अस्थिर, एक अराजक अफगानिस्तान।' 'आतंकवादियों के लिए (वह एक) आदर्श स्थान होगा, क्योंकि यदि कोई नियंत्रण नहीं होगा या फिर वहां लड़ाई जारी रही। और यही हमारी चिंता है। मतलब अफगानिस्तान की धरती पर आतंकवाद और दूसरा मानवीय संकट या एक गृह युद्ध, हमारे लिए एक शरणार्थी का मुद्दा।' अब सवाल है कि क्या इमरान ऐसा कहकर दुनिया को ब्लैकमेल करना चाह रहे हैं कि अगर उन्होंने जल्द ही उसे मान्यता देने की प्रक्रिया शुरू नहीं की तो वह अनियंत्रित हो जाएगा। क्योंकि, तालिबान के मसले पर उनका शुरू से दोहरा रवैया रहा है और पहला टारगेट भारत ही बना हुआ है।
तालिबान पर पाकिस्तान की नई नौटंकी के मायने?
गौरतलब है कि तालिबान संकट देखने के बाद पाकिस्तान का असली चेहरा पहलीबार दुनिया भी देख रही है, जो भारत दशकों से झेल रहा है। ऐसी रिपोर्ट भी सामने आ चुकी है कि तालिबान सरकार में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की सीधी दखल को लेकर तालिबान भी काबुल और कंधारी गुटों में बंट गया है। क्योंकि, पाकिस्तान हक्कानी नेटवर्क के आतंकियों के सहारे अफगानिस्तान की सत्ता पर परोक्ष कब्जा चाह रहा है, जिसका कंधारी गुट विरोध करता है। कंधारी गुट में वह तालिबानी नेता मुल्ला बरादर भी है, जिसपर समावेशी सरकार की बात उठाने पर हक्कानी आतंकियों की ओर से काबुल पैलेस में लात-घूंसों की बौछार होने की रिपोर्ट सामने आ चुकी है। यही नहीं अफगानिस्तान में पाकिस्तान का कहीं-कहीं खुला विरोध भी शुरू हो गया है, और लगता है कि उसी के चलते वह एकबार फिर से समावेशी सरकार की बात करके दुनिया के सामने खुद को वह बेकसूर साबित करने का कुचक्र रच रहा है। इमरान खान की नई नौटंकी यह भी हो सकती है कि उन्हें यह लग चुका है कि मौजूदा स्थिति में दुनिया के ज्यादातर देश तालिबान सरकार को मान्यता देने के लिए तैयार नहीं होंगे।
दुनिया पर हर तरह से दबाव बनाना चाहता है पाकिस्तान
इमरान खान की अगुवाई वाली पाकिस्तान लगातार विश्व समुदाय के सामने तालिबान की अंतरिम सरकार को साथ लेकर चलने की वकालत कर चुकी है। ऐसा नहीं होने की स्थिति में पहले वहां के सेंट्रल बैंक के पास पैसे नहीं होने के चलते पूरे शासन-व्यवस्था का ढांचा ढहने की बात कहा जा रहा था और अब गृह युद्ध का भय पैदा किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि अफगान सेंट्रल बैंक का अनुमानित 10 अरब डॉलर विदेशी बैंकों, खासकर अमेरिकी फेडरल रिजर्व में पड़ा हुआ है। सोमवार को ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी उस रकम को रिलीज करने के लिए गिड़गिड़ाते नजर आए थे। कुरैशी ने न्यूयॉर्क में कहा था, 'एक तरफ आप किसी संकट से निपटने के लिए नया फंड जुटाते हैं और दूसरी तरफ उनके जो पैसे हैं, वह उसका इस्तेमाल नहीं कर सकते।' उनकी दलील थी कि संपत्ति फ्रीज करने से हालात सुधरने में मदद नहीं मिलेगी। वे संयुक्त राष्ट्र आम सभा के लिए वहां पहुंचे हुए थे।