'पति की लाश घर में पड़ी है, बच्चे रो रहे हैं, हमें घर पहुंचा दीजिए', दिल्ली में फंसी महिला का दर्द
नोएडा। कोरोना वायरस की वजह से देशभर में जारी लॉकडाउन का अगर किसी पर सबसे बुरा असर पड़ा है तो वह हैं मजदूर। शहर-शहर, सड़क-सड़क चिलचिलाती धूप और भूख-प्यास से बेहाल ये मजदूर महामारी से तो बच रहे हैं, लेकिन भूख और हादसों की वजह से रोजाना काल के गाल में समा जा रहे हैं। मजदूरों के पलायन की सबसे बड़ी वजह यह है कि इनके पास रहने को छत नहीं, खाने को खाना नहीं और जेबें खाली हो चुकी हैं। ऐसे में इन्हें मजबूरन घर की ओर रुख करना पड़ रहा है, जहां दो वक्त की रोटी न सही पर अपनों के साथ रहने का सुकुन तो मिलेगा। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान से रोजाना ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं, जो मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देनी वाली हैं। ऐसा ही एक मामला यूपी गेट के पास सामने आया, जहां एक सिर पर झोला लिए एक बेबस महिला को दिल्ली-यूपी बॉर्डर के पास रोक दिया गया। इस महिला का वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गया है।
रोते बिलखते सुनीता ने सुनाया अपना दर्द
जानकारी के मुताबिक, मूलरूप से बिहार की रहने वाली सुनीता के पति का सासाराम में देहांत हो चुका है, जबकि लाश घर पर ही रखी हुई है। घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं। लड़का बुरी तरह रोता है। ऐसे में मजबूरी में उन्हें घर जाना पड़ रहा है, लेकिन यूपी गेट के पास दिल्ली-यूपी बॉर्डर क्रॉस नहीं करने दिया गया। तेज धूप और सिर पर सामान से भरा झोला लादे सुनीता के आंखों में आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। मौके पर मौजूद एक टीवी चैनल के रिपोर्टर ने बात की तो सुनीता ने रोते-बिलखते अपना दुख-दर्द सुनाया।
'हमारा पति मर गया, हमें घर पहुंचा दीजिए'
सुनीता ने रोते हुए कहा, ''हमारा आदमी (पति) मर गए हैं, बच्चे रो रहे हैं.. हमें घर पहुंचा दीजिए।'' बस के इंतजार में शनिवार रात से वहां ठहरीं सुनीता किसी भी तरह गांव जाना चाहती हैं। उन्होंने और उनके साथ एक अन्य महिला ने बताया था कि रात 10 बजे से वहां मौजूद हैं। खाने-पीने को भी कुछ नहीं मिला। हमें किसी भी गाड़ी में बैठा दीजिए। हम चले जाएंगे। हमारा लड़का रो रहा है। हम नई दिल्ली में रहते थे। हम यहां तक पैदल आएं। क्या करें? दुख और आफत की स्थिति में क्या करें? पुलिस-प्रशासन के लोग भी नहीं बता रहे हैं कि हम कैसे लौटें।
बॉर्डर पर रोक दिए गए मजदूर
बता
दें,
कई
प्रवासी
मजदूर
रविवार
को
दिल्ली
के
गाजीपुर
में
भी
निकल
आए।
सभी
यूपी
जाना
चाहते
थे,
लेकिन
पुलिस
ने
उन्हें
बॉर्डर
पर
ही
रोक
दिया,
जिसके
बाद
उन्होंने
ट्रैफिक
रोकने
की
कोशिश
की।
हालांकि
पुलिस
ने
मजदूरों
को
सड़क
से
हटाकर
ट्रैफिक
व्यवस्था
बहाल
कर
दी
थी।
जिसके
बाद
मजदूर
बेबस
होकर
सड़क
के
किनारे
बैठ
गए।
हालांकि,
दिल्ली
सरकार
का
आदेश
है
कि
पैदल
जा
रहे
मजदूरों
को
रोककर
उन्हें
नजदीकी
शेल्टर
होम
में
भेजा
जाए।
जिसके
बाद
सरकार
ने
उनके
जाने
की
व्यवस्था
करेगी
और
इसके
लिए
रेलवे
से
बातचीत
करेगी।
दिल्ली
और
उत्तर
प्रदेश
की
सरकार
ने
ओरैया
में
मजदूरों
के
साथ
हुए
हादसे
के
बाद
पैदल
जाने
वाले
या
किसी
भी
प्रकार
से
अवैध
रूप
से
जाने
वाले
प्रवासी
मजदूरों
पर
रोक
लगा
दी
है।
बीमार बेटे को चारपाई पर लेकर तय की 800 किलोमीटर की दूरी
बीते दिनों कानपुर एनएच-टू हाइवे पर एक परिवार 15 साल के बीमार बेटे को चारपाई पर लेटाकर दो कंधों के सहारे 800 किलोमीटर की दूरी तक करके कानपुर पहुंचा था। यह परिवार बीमार बेटे को लेकर लुधियाना से मध्य प्रदेश के सिंगरौली गांव के लिए निकला था। मध्य प्रदेश के सिंरौली गांव में रहने वाले राजकुमार लुधियाना में परिवार समेत रहते थे। पूरा परिवार मजदूरी करता था। लॉकडाउन के बाद से परिवार के सामने रोटी का संकट खड़ा हो गया। राजकुमार ने परिवार समेत मध्यप्रदेश अपने गांव लौटने का फैसला किया, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि उनका 15 वर्षीय बेटा गर्दन में चोट के कारण चलने में असमर्थ था। उसे पैदल लेकर कैसे चला जाए, इतनी लंबी दूरी बिमार बेटे को लेकर किस तरह से पूरी की जाएगी।
पुलिसकर्मियों ने की मदद
राजकुमार ने फैसला किया कि बेटे को चारपाई पर लिटाकर गांव तक ले जाएंगे। उन्होंने चारपाई के चारों कोनों पर रस्सी बांधी और उसे एक बांस के जोड़ दिया, जिससे कि दो कंधों के सहारे चारपाई को उठाया जा सके। राजकुमार के इस साहस को देखर के उनके ही गांव के रहने वाले अन्य लोग भी वापस लौटने के लिए तैयार हो गए। राजकुमार के परिवार समेत कुल 18 लोग पैदल ही निकल पड़े। रामादेवी नेशनल हाइवे पर एक मजदूरों का जत्था जाते हुए दिखा, जिसमें एक बच्चे को चारपाई पर लिटाकर उसे दो कंधों के सहारे लेकर जा रहे थे। वहां मौजूद पुलिसकर्मियों और अन्य लोगों ने उन्हें रोका। उनको पानी पीने को दिया और लंच पैकेट खाने को दिया।