दिल्ली की जंग सिमटी अन्ना के दो चेलों के बीच
नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। भाजपा ने दिल्ली के लिए अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव करते हुए नरेन्द्र मोदी के स्थान पर चुनाव को केजरीवाल बनाम बेदी करने का फैसला किया है। यानी कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी कैंपेन तो करेंगे पर वो उस तरह से एक्टिव नहीं रहेंगे जैसा कि कहा जा रहा था।
अरविन्द केजरीवाल और किरन बेदी दोनों एनजीओ से वास्ता रखने के कारण एक ही मैदान के खिलाड़ी है। अन्ना अभियान में साथ रहे। इस तरह दिल्ली का चुनाव अन्ना अभियान के दो झंडाबरदारों के बीच सिमट गया है।
बेदी को पार्टी का साथ
किरण बेदी पार्टी में कुछ दिन पहले आईं और संसदीय बोर्ड ने उन्हें मुख्यमंत्री का उम्मीदवाद घोषित कर दिया। पार्टी में शामिल होने के बाद वे जिस अधिकार के साथ अपना विजन बता रहीं थीं उसी से लगा था कि केन्द्रीय नेतृत्व से उन्हें आश्वस्त कर दिया गया है।
शालीनता से किया अलग
ये तो साफ हैकि दिल्ली विधानसभा का चुनावी चेहरा बनने से मोदी ने अपने आप को शालीनता से अलग कर लिया है। उधर, बाहरी नेताओं को अतिथि देवो भवः के तहत सम्मान और पद दोनों मिल रहे हैं। तपे-तपाये भाजपा नेताओं को और तपने के लिए छोड़ दिया गया है ताकि वो कुंदन बन सकें।नीति, सिद्धांत से कोई मतलब नहीं रह गया लगता है।
मतों में होगी बढ़ोत्तरी
किरण बेदी को लेकर कुछ लोगों का मानना है उससे भाजपा के मतों में बढ़ोत्तरी होगी। लेकिन क्यों होगी इसका ठोस कारण कोई नहीं बताता।
भाजपा के ट्रंप कार्ड
जानकारों का कहना है कि हालांकिनरेन्द्र मोदी अब भी भाजपा के ट्रम्प कार्ड हैं, पर भाजपा सिर्फ उनके नाम पर दिल्ली में वोट नहीं पाना चाहती। पार्टी का जो भी तर्क हो, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इसे जोरशोर से उठाएगी। वह कहेगी कि मोदी का जादू चूक रहा है। हालांकि संभव है बेदी के नाम पर मध्यमवर्ग और युवा वर्ग खासकर लड़कियां का समर्थन कुछ मिले, पर मोदी के नाम पर नहीं मिलता यह कहना मुश्किल है।
खीझ देखिए
किरण बेदी को पार्टी में लाने और इतना महत्व देने को लेकर भाजपा के अंदर आम नेताओं एवं कार्यकर्ताओं में खीझ साफ देखी जा सकती है। वैसे भी किरन का पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं से संपर्क नहीं था। यह पहली बार हुआ जब कोई नेता पार्टी में आये और अपने घर पर दिल्ली के सातों सांसदों को बात करने के लिए चाय पर बुलाये। यह एक अधिकारी का तरीका है। काम करने के इस तरीके से आगे कठिनाई हो सकती है। खैर, देखते ही देखते यह चुनाव अन्ना हजारे के दो चेलों में सिमट गया है।