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सरकार ने क्यों लगाई पूर्व सैन्य अधिकारी की पुस्तक पर पाबंदी?

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ब्रिगेडियर शर्मा की किताब

भारतीय सेना में सेवा दे चुके दिवंगत ब्रिगेडियर सुशील कुमार शर्मा की लिखी एक किताब "द कॉम्प्लेक्सिटी कॉल्ड मणिपुर: रूट्स, परसेप्शन एंड रियलिटी" पर हाल के महीनों में उठे विवाद के चलते मणिपुर सरकार ने बैन लगा दिया है. सरकार का कहना है कि इस पुस्तक की विषयवस्तु बेहद संवेदनशील है जिसका राज्य के सांप्रदायिक सद्भाव पर बुरा असर पड़ सकता है. सरकार ने बीते दिनों इतिहास, संस्कृति, परंपरा और भूगोल पर सभी पुस्तकों के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति की पूर्व स्वीकृति लेना अनिवार्य कर दिया था.

विलय के इतिहास को लेकर चिंता

ब्रिगेडियर शर्मा की किताब में लिखा है कि विलय के समय मणिपुर राज्य के पास घाटी में महज सात सौ वर्ग मील जमीन थी. इसका मतलब यह निकाला गया कि नागा, कूकी और दूसरी जनजातियों वाला पर्वतीय इलाका इसका हिस्सा नहीं था. अपने लंबे कार्यकाल के दौरान ब्रिगेडियर शर्मा ने मणिपुर पर कई लेख और पुस्तकें लिखीं थीं.

यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि राज्य के घाटी और पर्वतीय इलाकों में रहने वाली जनजातियों के बीच अक्सर तनाव रहा है और कई बार हिंसा भी हो चुकी है.

भारत में विलय का मुद्दा मणिपुर के स्थानीय लोगों के लिए बेहद संवेदनशील रहा है. राज्य में तमाम उग्रवादी संगठन इसी मुद्दे को भुना कर अपनी जड़ें मजबूत करते रहे हैं. राज्य के ज्यादातर लोगों का मानना है कि देश की आजादी के समय स्वतंत्र राज्य रहे मणिपुर को दो साल बाद जबरन भारत में विलय पर मजबूर किया गया था.

लंबे अरसे तक मणिपुर में उग्रवाद-विरोधी अभियान की कमान संभालने वाले सीआरपीएफ के पूर्व डीआईजी (अब स्वर्गीय) शर्मा ने अपनी पीएचडी की थीसिस के तहत लिखी इस पुस्तक पर पाबंदी के आदेश में राज्य के गृह विभाग ने दलील दी है कि मणिपुर के विलय समझौते से संबंधित इतिहास राज्य के लोगों के लिए बेहद संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दा है. उसका कहना है कि इसमें लिखी बातों से राज्य में विभिन्न तबकों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव नष्ट होने और शांति भंग होने का खतरा है. इससे राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता भी खतरे में पड़ने की आशंका भी जताई गयी है.

कहां से उठी पाबंदी की मांग

सरकार का कहना है कि इस पुस्तक में जिन तथ्यों का जिक्र किया गया है वह वर्ष 1950 में राज्य मंत्रालय (जो अब गृह मंत्रालय कहा जाता है) की ओर से भारतीय राज्यों पर श्वेत पत्र शीर्षक गजट का विरोधाभासी है. 15 अक्टूबर, 1949 को हुए विलय के समय मणिपुर का क्षेत्रफल 8,620 वर्ग मील और आबादी 5.12 लाख थी.

राज्य के विभिन्न सामाजिक संगठन बीते कुछ महीनों से इस पुस्तक और इसकी विषयवस्तु का विरोध करते हुए इस पर पाबंदी लगाने की मांग रहे थे. उन्होंने लेखक और उनके शोध गाइड से माफी की मांग भी उठाई थी. पीएचडी के उनके शोध गाइडों में मणिपुर विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर भी शामिल हैं. इससे सरकार के लिए मुश्किल हालात पैदा हो गए थे. अब सरकार ने उस पुस्तक की तमाम प्रतियों को जब्त करने का भी आदेश दिया है. सरकार ने कहा कि इस पुस्तक के प्रचार-प्रसार से राज्य के घाटी और पर्वतीय इलाकों में रहने वाली जनजातियों के बीच गलतफहमी और तनाव पैदा होने का अंदेशा है और हिंसा भड़क सकती है.

पूर्व स्वीकृति अनिवार्य

इससे पहले सरकार ने एक आदेश जारी कर राज्य के इतिहास, संस्कृति, परंपरा और भूगोल पर सभी पुस्तकों की पूर्व-स्वीकृति को अनिवार्य कर दिया था. इसमें कहा गया था कि राज्य से संबंधित उक्त चारों विषयों पर सभी पांडुलिपियों को 15 सदस्यीय समिति से मंजूरी लेनी होगी. उसके बिना इन विषयों पर कोई किताब नहीं लिखी-छापी जा सकती. सरकार की ओर से गठित समिति में विश्वविद्यालय के कुलपति और कॉलेज के कई पूर्व और वर्तमान शिक्षक शामिल होंगे. सरकार ने चेतावनी दी थी कि इस आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ संबंधित कानून के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

राज्य के तमाम लेखकों और बुद्धिजीवियों ने सरकार के उस फैसले का विरोध किया था. लेकिन उत्पीड़न के डर से कोई मुखर होकर इसके खिलाफ सामने नहीं आया. राजधानी इंफाल के एक कॉलेज में भूगोल पढ़ाने वाले पूर्व शिक्षक डा. सी. नाओबा कहते हैं कि सरकार का यह फैसला अभिव्यक्ति की आजादी पर एक कड़ा आघात है. डीडब्ल्यू से बातचीत में नाओबा ने कहा, "ऐसे फैसलों से सच को नहीं दबाया जा सकता. कोई भी लेखक पूरी तरह खोज-बीन और शोध के बाद ही कोई पुस्तक लिखता है. अब उच्च-स्तरीय समिति से मंजूरी लेना एक तरह की सेंसरशिप है."

Source: DW

English summary
manipur government bans book on merger with india
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