Indian Railways:कैसे 'किसान रेल' ने सिर्फ 7 महीनों में अन्नदाताओं को कराई मोटी कमाई, जानिए
मुंबई: भारतीय रेलवे ने पिछले साल 7 अगस्त को देश में किसानों के लिए एक्सक्लूसिव 'किसान रेल' की शुरुआत की थी। बीते मार्च तक का आंकड़ा देखें तो इतने कम समय में देश में 'किसान रेल' ने 400 से ज्यादा खेप लगाया है, जिसमें 1.30 लाख टन सब्जियों, फलों समेत जल्द खराब होने वाली ऊपज को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचाया गया है। कई किसानों की मानें तो जल्द से जल्द उनके कृषि उत्पादों के सही बाजार तक पहुंच जाने की वजह से अब उनकी कमाई काफी बढ़ गई है। अभी तक रेलवे की इस पहल का सबसे ज्यादा फायदा महाराष्ट्र के किसानों को मिल पाया है और धीरे-धीरे दूसरे राज्यों के किसान भी इसका लाभ उठाने लगे हैं।
'किसान रेल' से किसानों की आमदनी में भारी इजाफा
'किसान रेल' की शुरुआत से खासकर छोटे और मंझोले किसानों की जिंदगी बदलनी शुरू हो गई है। मसलन, महाराष्ट्र के ओस्मानाबाद और लातूर जिलों के किसान अपने गांवों में ग्रीन हाऊस फार्मिंग के जरिए जो फूल उगाते हैं, वह बहुत जल्द अब राजधानी दिल्ली के फूल बाजारों तक पहुंच जा रहे हैं। इससे उनका माल भी खराब नहीं होता और माल भाड़े की भी भारी बचत होती है। सेंट्रल रेलवे के एक अधिकारी के मुताबिक 'पिछले साल अगस्त में लॉन्च की गई 'किसान रेल' ने महाराष्ट्र के फूल उगाने वाले छोटे ग्रीन हाऊस किसानों की कमाई में भारी इजाफा कर दिया है। तेज ट्रांसपोर्टेशन की बदौलत उन्हें अपने उत्पादों को जल्द से जल्द सुरक्षित तरीके से बहुत ही कम बर्बादी के साथ और कम खर्चे में बड़े बाजारों तक पहुंचाने में मदद मिल रही है। महाराष्ट्र के किसानों ने अभी तक 226 'किसान रेल' में 71 टन खराब होने वाले कृषि उत्पाद राज्य से बाहर भेजे हैं।
जल्द खराब होने वाले कृष उत्पादों की किस्मत बदली
सिर्फ रेलवे के अधिकारी ही नहीं खुद किसान भी मान रहे हैं कि इस ट्रेन से उनकी जिंदगी का कायाकल्प हो गया है। जैसे ओस्मानाबाद के दुमाला के एक किसान श्रीधर भीमराव काले अपने फूलों को फौरन दिल्ली तक पहुंचाने की मिली सुविधा से बहुत ही उत्साहित हैं। वो कहते हैं- 'फूलों को अब जल्दी से बाजारों तक पहुंचा दिया जाता है और इसपर खर्च भी कम आता है और इसके बदले मोटे दाम मिलते हैं।' इसी तरह लातूर के मुरुड गांव के निवासी बिभीसन नाडे कहते हैं, 'किसान रेल ने मुझे दिल्ली के बड़े बाजार तक पहुंचाया है और इसकी वजह से कम भाड़े में हमें हमारे फूलों के लिए ऊंची कीमतें मिल रही हैं।' यह बदलाव सिर्फ फूलों के साथ ही नहीं हुआ है- फलों और सब्जियों जैसे कि अमरूद, अनार, पपीता, अंगूर, केले, नींबू, तरबूज, मौसमी संतरे, हरी सब्जियां, शिमला मिर्च, कैबेज, अदरख, ड्रमस्टिक, लहसून और प्याज भी इसी ट्रेन से भेजे जा रहे हैं।
एक किसान ने की 4 लाख रुपये की ज्यादा कमाई
सोलापुर में अमरूद उगाने वाले विजय लाबाडे नाम के किसान का कहना है 'किसान रेल से हमें सिर्फ बड़ा बाजार ही नहीं मिलता है, इससे हमारा नुकसान भी कम हुआ है, क्योंकि इससे माल जल्द पहुंचता है और वह भी कम माल भाड़े में।.......इस सुविधा की वजह से मेरी आमदनी इस साल 25 फीसदी बढ़ गई है।' लबाडे के पास सिर्फ 5 एकड़ की जमीन है, जिसमें वह अमरूद उगाते हैं। उन्होंने कहा है कि इस साल 'किसान रेल' के चलते उन्होंने पिछले वर्ष के मुकाबले 4 लाख रुपये ज्यादा कमाए हैं। उनके मुताबिक, 'पहले, मुझे लाचारी में अपने उत्पादों को लोकल बाजार में ही बेचना पड़ता था और दाम में कई कारणों से बहुत अंतर आ जाता था। किसान रेल का भला हो, जिसके चलते इस साल मुझे अमरूद से 25 फीसदी अधिक आमदनी हुई है। मैं इसलिए भी खुश हूं कि अब हमारी पहुंच बड़े बाजारों तक हो गई है।'
माल ढूलाई पर खर्च घटकर आधार रह गया
जल्द खराब होने वाली सब्जियों, फूलों और फलों के मामले में अब किसानों के उत्पादों को जल्द बड़े बाजारों तक पहुंचाने में मदद तो मिल ही रही है, इसकी ढूलाई पर खर्चा भी आधा रह गया है। मसलन लाबाडे का कहना है, 'औसतन सोलापुर से दिल्ली तक सीजन में सड़क मार्ग से माल भेजने पर प्रति किलो 5 रुपये का खर्च बैठता है, लेकिन किसान रेल की वजह से उसपर करीब 2.5 रुपये किलो का भाड़ा लगता है।' दुनिया में भारत ताजे फलों और सब्जियों का एक बड़ा उत्पादक है, लेकिन सप्लाई चेन की किल्लत के चलते बहुत अधिक मात्रा में ऐसे कृषि उत्पाद खराब हो जाते हैं। फल उद्योग में 1966 से काम करने वाली एक कंपनी एमकेसी ऐग्रो फ्रेश लिमिटेड के डायरेक्टर सोनू खान ने इस तरह की और ट्रेनों की मांग की है। उनके मुताबिक, 'फलों या सब्जियों को उनकी जगह पर जल्द पहुंचाने से और सबसे बड़ी बात कि ताजा पहुंचाने से किसानों को उनके उत्पादों के बदले ज्यादा कमाई होगी और बर्बादी भी लगभग बंद हो जाएगी।'
किसान रेल से बदलने लगी है अन्नदाताओं की जिंदगी
किसान रेल चलने से महाराष्ट्र के सोलापुर, अहमदनगर, कलबुर्गी, लातूर, ओस्मानाबाद, नाशिक, जलगांव और अमवारवती जिलों के किसानों की सीधे देश के उत्तरी और पूर्वी हिस्सों जैसे कि दिल्ली-एनसीआर, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और उत्तर-पूर्वी राज्यों तक पहुंच हो गई है। अमरावती में संतरा किसान और श्रमजीवी संतरा प्रोड्यूसर कंपनी के सीईओ रमेश जिचकर का कहना है, 'भारतीय रेलवे की ओर से शुरू की गई किसान रेल धीरे-धीरे महाराष्ट्र के किसानों की जिंदगी में बदलाव ला रहा है....इससे खराब होने वाली चीजों की बेरोक-टोक सप्लाई चेन उपलब्ध होने से उनकी आमदनी में इजाफा हो रहा है। ' एक रेलवे अधिकारियों के मुताबिक सबसे बड़ी बात तो ये है कि 'कोई भी किसान किसी भी ठहराव वाले स्टेशन से किसी भी ठहराव वाले स्टेशन तक 50 से 100 किलो तक का भी माल बुक करा सकते हैं, इसके लिए कोई न्यूनतम मात्रा निर्धारित नहीं की गई है।'(कुछ तस्वीरें सौजन्य: रेल मंत्रालय के ट्विटर से)