महाराष्ट्र के सियासी संकट की 3 बड़ी वजह, क्या ले डूबेगी उद्धव ठाकरे की ये चूक
मुंबई, 23 जून। महाराष्ट्र में पिछल कुछ दिनों से जो रहा है उसे देखकर कहा जा सकता है कि जो सामने नजर आ रहा है उसके पीछे की पटकथा जरूर कुछ और है। प्रदेश में चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई थी। शिवसेना और भाजपा ने यहां मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन चुनाव के बाद दोनों दलों के बीच मतभेद के चलते शिवसेना ने भाजपा से अलग होकर एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली। जिस वक्त महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी उसके बाद से ही यह कहा जा रहा था कि यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी और ऐसा ही हुआ भी, सरकार पर संकट मंडरा रहा है, उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री आवास छोड़ चुके हैं।
मुख्यमंत्री की कुर्सी का विवाद
शिवसेना और भाजपा ने 2019 में एक साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था, भाजपा ने 106 सीटों पर जीत दर्ज की और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, वहीं शिवसेना सिर्फ 56 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी। दोनों दलों को पूर्ण बहुमत मिला था और आसानी से 288 विधानसभा वाली महाराष्ट्र में सरकार का गठन कर सकते थे। लेकिन शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद की मांग कर दी और कहा कि ढाई-ढाई साल का कार्यकाल दोनों दलों के पास मुख्यमंत्री का रहना चाहिए। लेकिन भाजपा इसके लिए तैयार नहीं थी। कई महीने तक प्रदेश में सियासी हंगामा चला और उसके बाद ठाकरे ने यह गठबंधन खत्म करके महाविकास अघाड़ी की सरकार का गठन किया
दशकों पुराना साथ टूटा
शिवसेना भारतीय जनता पार्टी की सबसे भरोसेमंद सहयोगी थी और कई दशक तक दोनों दलों के बीच गठबंधन रहा। दोनों ही दल हिंदुत्व की विचारधारा को मानने वाले थे, बाबरी मस्जिद के विध्वंस के समय बाल ठाकरे ने गर्व से शिव सैनिकों की तारीफ की थी। भाजपा शिवसेना ने मिलकर 193-1998 तक प्रदेश में सरकार चलाई। शिवसेना उस वक्त बड़े दल की भूमिका में थी जबकि भाजपा छोटे दल की भूमिका में। लेकिन बाल ठाकरे के निधन के बाद गणित बदलने लगा और भाजपा शिवसेना से अधिक सीटें जीतने लगी यही वजह है कि भाजपा को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली। लेकिन उद्धव ठाकरे के लिए इस सच को स्वीकार कर पाना आसान नहीं था। देवेंद्र फड़णवीस की कार्यप्रणाली ने उद्धव ठाकरे के जख्मों पर और नमक छिड़कने का काम किया।
उद्धव ठाकरे की गलतफहमी
शिवसेना को इस बात का एहसास हो गया था कि पीएम मोदी और अमित शाह की अगुवाई वाली भाजपा पहले वाली अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी वाली भाजपा नहीं है। आज नहीं तो कल भाजपा शिवसेना को किनारे लगा ही देगी। जिस तेजी से भाजपा महाराष्ट्र में बढ़ रही थी उसे देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति भी नहीं है। जनता के बीच उद्धव ठाकरे की लोकप्रियता उस स्तर की भी नहीं है कि वह पार्टी को अकेले दम पर सत्ता में ला सके, यही वजह है कि शिवसेना ने फैसला लिया कि कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार का गठन करें। और यही वजह भाजपा के लिए मजबूत कड़ी साबित हुई और पार्टी एकनाथ शिंदे के साथ अपने पुराने रिश्तों का भरपूर इस्तेमाल शिवसेना को पीछे ढकेलने में कर रही है।
एकनाथ शिंदे तुरुप का इक्का
गणेश नाइक, छगन भुजबल, नारायण राणे, राज ठाकरे जैसे बड़े नेताओं ने शिवसेना से किनारा कर लिया है, लेकिन बड़ी बात यह है कि इसमे से कोई भी नेता एकनाथ शिंदे के कद जितना बड़ा नहीं था, जो पार्टी को दो फाड़ में बांट सके। एकनाथ शिंदे दावा कर रहे हैं कि उनके पास शिवसेना के 57 में से 40 विधायकों का समर्थन है, ऐसे में अगर ठाकरे सरकार बच भी जाती है तो भी उद्धव ठाकरे के लिए यह बड़ा राजनीतिक झटका है। पार्टी के भीतर एकजुटता बना पाना उद्धव ठाकरे परिवार के लिए आसान नहीं होगा।
शरद पवार ने खींचे हाथ
साल 2019 में जब महाविकास अघाड़ी की सरकार का गठन हुआ था तो इसका पूरा श्रेय शरद पवार को गया था। ऐसा माना जा रहा था कि जबतक वह इस सरकार के साथ हैं, गठबंधन बरकरार रहेगा। लेकिन जब सरकार के भीतर संकट खड़ा हुआ तो शरद पवार ने इस पूरे संकट को शिवसेना का अंदरूनी मामला करार दे दिया। उन्होंने इस पूरे राजनीतिक संकट से पल्ला झाड़ लिया, ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या सच में शरद पवार इस स्थिति का समानाधान करने में विफल रहे हैं।
उद्धव ठाकरे की कार्यशैली
महाविकास अघाड़ी की सरकार में माना जा रहा था कि कांग्रेस के विधायकों को तोड़ना आसान होगा, लेकिन हुआ उल्टा और शिवसेना के विधायकों में सेंधमारी हो गई। महाविकास अघाड़ी सरकार के भीतर संकट की सबसे बड़ी वजह उद्धव ठाकरे का काम करने का तरीका माना जा रहा है। ठाकरे के आलोचक कहते हैं कि वह एक प्रशासनिक के तौर पर काम करते हैं, वह अपने ही मंत्रियों के लिए उपलब्ध नहीं रहते, या फिर जो दूसरे दल के नेता हैं उनके लिए भी उपलब्ध नहीं रहते। ठाकरे भूल गए कि वह किसी दल को नहीं बल्कि सरकार को चला रहे हैं।
केंद्र से टकराव
शिवसेना का जिस तरह से मोदी सरकार से टकराव चल रहा था उसने भी इस संकट को खड़ा करने में भूमिका निभाई। विश्लेषकों का मानना है कि ठाकरे को पीएम मोदी के साथ अपने संबंध बहतर करने चाहिए थे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और केंद्र ने महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए। सरकार के मंत्री अनिल देशमुख, नवाब मलिक को जेल तक जाना पड़ा, अनिल परब से ईडी ने पूछताछ की है और माना जा रहा है कि वह भी जेल जा सकते हैं।
सरकार का इकबाल सवालों में
इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार में संकट की एक बड़ी वजह उद्धव ठाकरे द्वारा प्रशानिक अधिकारियों को रोक नहीं पाना माना जा रहा है। प्रशासनिक अधिकारियों के पास से अहम जानकारियां लीक होकर देवेंद्र फड़णवीस तक पहुंचने लगी। कई मौकों पर तो उद्धव ठाकरे से पहले यह जानकारी फड़णवीस तक पहुंच गई। मुंबई के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के खिलाफ जांच ने सरकार, प्रशासन पर सवाल खड़े कर दिए और विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ गई।