मध्य प्रदेश: मालवा की वजह से 15 सालों से सत्ता में काबिज है भाजपा, इस बार जीत आसान नहीं
मालवा/निमाड़। मध्य प्रदेश के मालवा और निमाड़ को मध्यप्रदेश की सत्ता का इंट्री गेट माना जाता है। जिस पार्टी ने इंदौर और उज्जैन संभाग की 67 विधानसभा सीट पर कब्जा कर लिया उसका सत्ता में आना तय माना जाता है। पिछले 15 सालों से मालवा निमाड़ के आशीर्वाद की वजह से ही भाजपा सत्ता में काबिज है। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मालवा और निमाड़ की 67 सीट में से महज 6 सीट ही जीत पाई थी। इस बार भी मालवा निमाड़ ही तय करेगा कि कौन सी पार्टी सत्ता में आएगी। इस वक्त के ज्वलंत मुद्दे मालवा निमाड़ की विधानसभा में छाए हुए हैं। लेकिन 2018 में मालवा और निमाड़ की चुनावी समर भाजपा के लिए इतना आसान नहीं होगा। क्योंकि मालवा निमाड़ में किसान,आदीवासी और सवर्ण समाज के लोग मुश्किल खड़ी कर रहे है। दरअसल, मालवा, निमाड़ की भौगालिक स्थिती को देखे तो बुरहानपुर से लेकर नीमच और अलिराजपुर से लेकर शाजापुर तक हर इलाके के अलग अलग मुद्दे हैं।
जरूरत की हर चीज से हैं वंचित
पूर्व और पश्चिमी निमाड़ क्षेत्र की बात की जाए तो यहां सबसे बड़ा मुद्दा किसानों, रेल, विस्थापन और रोजगार का है। दरअसल, बड़वानी और धार जिले में सरदार सरोवर बांध की ऊचाई बढ़ाने के बाद विस्थापित किए प्रभावितों का आज तक आदर्श पुनर्वास नहीं हो पाया है। वहीं, किसान आज भी अपनी फसल की लागत के दाम के लिए परेशान है। इसके अलावा आजादी के समय से खरगौन, बड़वानी, धार जिले में रेल की मांग की जा रही है। लेकिन आज तक ट्रैन की कनेक्टिवी से ये इलाका अछूता है। खरगौन जिला सबसे उन्नत जिला माना जाता है। लेकिन यहां शिक्षा और स्वास्थ्य का बूरा हाल है। उच्च शिक्षा के लिए यहां के छात्रों को इंदौर का रूख करना पड़ता है। साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सभी की निर्भरता इंदौर पर ही है। दूसरी ओर पश्चिमी निमाड़ खंडवा और बुरहानपुर में भी किसानों और रोजगार की बड़ी समस्या है। नर्मदा नदी के इतने नजदीक होने के बाद भी खंडवा तक नर्मदा का पानी पहुंच नहीं पाया है। तो वहीं, बुरहानपुर में केला किसानों को उनका हक नहीं रहा है, लूम उद्योग भी ठप्प पड़ा है। नेपानगर कागज कारखाने के लिए केन्द्र सरकार ने नए पैकेज की घोषणा की है लेकिन वो भी नाकाफी है। इसके अलावा बुरहानपुर नें मंत्री अर्चना चिटनीस और सांसद नंदकुमार चौहान की आपसी गुटबाजी यहां की राजनीति पर हावी है।
सरकारी वादें अब तक खोखले
निमाड़ के बाद मालवा के जिलों बात की जाए तो इंदौर, देवास और उज्जैन जिले की विधानसभा सीट पर किसान और जातिगत समीकरण बड़ा मुद्दा है। इंदौर शहर की 6 विधानसभा सीट पर वैसे तो बुनियादी सुविधा की कमी नहीं है, लेकिन पेय जल, महिला सुरक्षा, और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट,अवैध कॉलोनी अमूमन सभी विधानसाभा सीट का मुद्दा है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत तोड़े गए मकानों का मुआवजा आज तक नहीं मिला है। अवैध कॉलोनियों को वैध करने की मांग भी लगातार की जा रही है। हालाकि, इस पर काम शुरू किया गया है। लेकिन आज तक पूरा नहीं हो पाया है। इसी तरह देवास जिले की बात की जाए तो यहां शहर के विधानसभा सीट पर भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है। साथ ही जिले की ग्रामीण सीट हाटपिप्लिया में यहां के विधायक और मंत्री दीपक जोशी से लोगों की नारजागी है। यहां सड़कों को लेकर कोई काम नहीं किया गया जिस कारण इससे किसान नाराज हैं। इसी तरह का हाल खातेगांव कन्नौद विधानसभा सीट, बागली और सोनकच्छ सीट पर किसानों का मुद्दा होने के साथ यहां जातीगत समीकरण हावी है। वहीं, उज्जैन की शहरी विधानसभा सीट को छोड़ दिया जाए तो अमूमन सभी सीट पर स्थानीय विधायक से नाराजगी के साथ ही किसान सबसे ज्यादा परेशान है। उज्जैन के शहरी इलाके में दो विधानसभा सीट है। यहां दक्षिण विधानसभा सीट में विधायक की गैर मौजूदगी को मुद्दा बनाया जा रहा है। क्योंकि यहां विधायक मोहन यादव ने कभी जनता के बीच नहीं गए साथ ही जो भी उज्जैन में विकास कार्य हुए वो केवल सिहस्थ की वजह से हुए है। दूसरी और आगर मालवा और शाजापुर की बात की जाए तो यहां जातिगत समीकरण,रेल और किसान सबसे बड़ा मुद्दा है।
गोलीकांड में मारे गए किसानों के परिवार को नहीं मिली सरकारी मदद
अब बात की जाए अलिराजपुर और झाबुआ आदिवासी अंचल की तो यहां आदिवासी लगातार अपने हक के लिए मांग उठा रहे है। उनके विकास के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। लिहाजा, यहां जय आदिवासी संगठन जयस उठ खड़ा हुआ है। जिसके साथ झाबुआ,अलिराजपुर,बड़वानी और धार के आदिवास बहुल इलाके के लोग सबसे ज्यादा जुड़ रहे हैं। चूंकि ये इलाका राजस्थान और गुजरात से सटा होने की वजह से यहां अवैध शराब की तस्कारी भी बड़ा मुद्दा है। वहीं, रतलाम शहर में बुनियादी सुविधा,स्वास्थ्य,सड़क और पेय जल बड़ी समस्या और मुद्दा है। ग्रामीण इलाके में एक्ट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ सर्वण लगातार आवाज उठा रहे है। हालांकि, ये फैक्टर फिलहाल, मालवा-निमाड़ की सभी सीट को प्रभावित कर रहा है। मालवा निमाड़ की इन सब सीटों के बीच सबसे ज्यादा मंदसौर और नीमच जिले की विधानसभा सीट पर सबकी नजर टिकी हुई है। क्योंकि यहीं पर किसान आंदोलन का सबसे बड़ा असर देखा गया था। गोलीकांड में मारे गए किसानों के परिजन न्याय की मांग कर रहे हैं। यहां भाजपा ने कई पैकेज की घोषणा की लेकिन किसानों की नाराजगी बरकरार है। यहां कि मुख्य दिक्कत डोडा चूरा के नष्टीकरण का मुद्दा है। क्योंकि सरकार ने डोडा चूरा खरीदना बंद कर दिया है और किसान बिना अनुमती के डोडा चूरा नष्ट नहीं कर सकते हैं। इस वजह से यहां के किसान परेशान है। इसके अलावा नाबालिग बच्ची के साथ हुए गैंग रेप की घटना के बाद यहां महिला सुरक्षा को लेकर भी बड़ा मुद्दा उभकर सामने आया है।