द्रौपदी मुर्मू के नामांकन पत्र में पहले समर्थक बने CM शिवराज, नामांकन में भी हुए शामिल
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने जनजातीय गौरव द्रौपदी मुर्मू को भारत के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद के लिये प्रत्याशी घोषित कर सभी वर्गों का सम्मान किया है।
भोपाल, 24 जून। NDA राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू के नामांकन पत्र में फर्स्ट सेकंडर (प्रथम समर्थक) के ग्रुप में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हस्ताक्षर किए। इस मौके पर उन्होंने कहा कि यह मेरा परम सौभाग्य है कि भारत की जनजातीय समाज की पहली और देश की द्वितीय महिला राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार आदरणीय श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के नामांकन पत्र में फर्स्ट सेकंडर (प्रथम समर्थक) के रूप में हस्ताक्षर करने का अवसर प्राप्त हुआ। वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राष्ट्रपति के नामांकन में भी आज शामिल हुए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मुझे विश्वास है कि द्रौपदी मुर्मू न केवल जनजातीय और कमजोर वर्ग की सशक्त आवाज सिद्ध होंगी, अपितु राष्ट्र की प्रगति एवं उन्नति को नई गति भी प्राप्त होगी। बता दे राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के नामांकन पत्र पर नई दिल्ली में प्रहलाद जोशी के आवास पर सीएम शिवराज ने हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, भूपेंद्र सिंह यादव और अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता उनके साथ उपस्थित रहे।
'सामाजिक
परिवर्तन
की
संवाहक
होंगी
द्रौपदी
मुर्मू'
मुख्यमंत्री
शिवराज
सिंह
चौहान
ने
कहा
कि
भाजपा
नीत
राष्ट्रीय
जनतांत्रिक
गठबंधन
ने
जनजातीय
गौरव
द्रौपदी
मुर्मू
को
भारत
के
सर्वोच्च
राष्ट्रपति
पद
के
लिये
प्रत्याशी
घोषित
कर
न
केवल
समाज
के
सभी
वर्गों
के
प्रति
सम्मान
के
भाव
को
पुनः
सिद्द
किया
है
अपितु
कांग्रेस
शासन
के
उस
अंधे
युग
के
अंत
की
भी
घोषणा
भी
कर
दी
है,
जिसमें
सम्मान
और
पद
अपने-अपने
लोगों
को
पहचान
कर
बांटे
जाते
थे।
भारतीय
लोकतंत्र
में
यह
पहली
बार
होगा
जब
कोई
आदिवासी
और
वह
भी
महिला
इस
सर्वोच्च
पद
को
सुशोभित
करेंगी।
भारतीय
जनता
पार्टी
की
सोच
हमेशा
से
ही
भेदभाव
रहित,
समरस
व
समानतामूलक
समाज
की
स्थापना
की
रही
है।
भाजपा
को
अपने
शासन
काल
में
तीन
अवसर
प्राप्त
हुए
और
तीनों
अवसरों
पर
उसने
समाज
के
तीन
अलग-अलग
समुदायों
से
राष्ट्रपति
का
चयन
किया।
सर्वप्रथम अल्पसंख्यक वर्ग से महान वैज्ञानिक और कर्मयोगी डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, फिर दलित समुदाय के माननीय श्री रामनाथ कोविंद जी और अब जनजातीय समुदाय से माननीया श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी। हमें यह कहते हुए प्रसन्नता है कि अभी हाल ही में संपन्न हुए राज्यसभा के लिए चुनाव में मध्य प्रदेश से हमने दो बहनों को राज्यासभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित किया है , जिसमें वाल्मीकि समाज की बहन सुमित्रा वाल्मीकि भी हैं। भारतीय जनता पार्टी अद्वैत दर्शन के एकात्म मानववाद को मानती है, जिसमें कहा गया है - 'तत्वतमसि' अर्थात् 'तू भी वही है'। पं. दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन भी अद्वैत पर ही आधारित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का 'सबका साथ, सबका विकास' का संकल्प भी एकात्म मानववाद की भावना से ही निकला हुआ है। मोदी जी के निर्णयों में उनकी दूरदृष्टि और संवेदनशीलता हर भारतीय को स्पष्ट दिखती है।
मुख्यमंत्री शिवराज यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा कि मुझे याद है कि द्रौपदी मुर्मू को उड़ीसा विधानसभा में सर्वश्रेष्ठ विधायक के सम्मान से सम्मानित किया था और इस सम्मान का नाम था - नीलकंठ सम्मान। द्रौपदी मुर्मू समाज में सेवा का अमृत बांटती रही हैं। उड़ीसा के बैदापैसी आदिवासी गांव में जन्मीं द्रौपदी मुर्मू जी ने अपने जीवन में कठोरतम परीक्षायें दी हैं। उनके विवाह के कुछ वर्ष बाद ही पति का देहान्त हुआ और फिर दो पुत्र भी स्वर्गवासी हो गए। उन्होंने विपरीत आर्थिक परिस्थितियों में संघर्ष का मार्ग चुना और अपनी एक मात्र पुत्री के पालन पोषण के लिये शिक्षक और लिपिक जैसी नौकरियां कीं। उन्होंने कड़ी मेहनत से पुत्री को योग्य बनाया।
जनसेवा की भावना से ओतप्रोत द्रौपदी जी ने रायरंगपुर नगर पंचायत में पार्षद का चुनाव जीत कर सक्रिय राजनीति की शुरूआत की। वे भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा से जुड़ी रहीं और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी रहीं। उड़ीसा में बीजू जनता दल एवं भाजपा की सरकार में मंत्री रहीं और 2015 में झारखण्ड की पहली महिला राज्यपाल बनीं। आदिवासी हितों की रक्षा के लिये वे इतनी प्रतिबद्ध रहीं कि तत्कालीन रघुवरदास सरकार के आदिवासियों की भूमि से संबंधित अध्यादेश पर इसलिए हस्ताक्षर नहीं किए क्योंकि उन्हें संदेह था कि इससे आदिवासियों का अहित हो सकता है।
हालांकि,
इसके
बावजूद
भी
वे
किसी
भी
दबाव
के
आगे
नहीं
झुकीं।
यही
कारण
है
कि
उड़ीसा
में
लोग
उन्हें
आत्मबल,
संघर्ष,
न्याय
व
मूल्यों
के
प्रति
समर्पित
ऐसी
सशक्त
महिला
के
रूप
में
देखते
हैं,
जिनसे
समाज
के
लोग
प्रेरणा
लेते
हैं।
भारतीय
जनता
पार्टी,
प्राचीन
भारत
में
महिलाओं,
दलितों
और
आदिवासियों
को
जो
गौरव
और
सम्मानन
प्राप्त
था
उसे
पुन:
स्थापित
करना
चाहती
है।
विदेशी
आक्रान्ता्ओं
और
स्वुतंत्रता
के
पश्चा्त
स्वापर्थी
राजनीतिक
दलों
ने
इन
वर्गों
को
सेवक
या
वोट
बैंक
बना
दिया
था,
भाजपा
उन्हें
पुन:
सामाजिक
सम्माीन
और
आत्म
गौरव
प्रदान
करना
चाहती
है।
हम चाहते हैं कि भारत में फिर अपाला, घोषा, लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्रेयी जैसी महिलाओं के ऋषित्वी की पूजा हो। मनुष्य का जन्म से नहीं, कर्म से मूल्यांकन हो, जैसे वाल्मीनकि, कबीर या रैदास का होता रहा है। सामाजिक सोच और व्यंवहार में महिलाओं, आदिवासी और दलितों को पर्याप्तम सम्माीन प्राप्त हो। इसी लक्ष्यम को सामने रख कर श्री रामनाथ कोविंद या श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जैसे इन वर्गों के नेताओं को शीर्ष सम्मान देना भारतीय जनता पार्टी का उद्देश्यद रहा है।
भारतीय जनता पार्टी सत्ता में केवल शासन करने के लिये नहीं है। हमारा उद्देश्य है कि भ्रमित हो चुकी सामाजिक सोच को सही दिशा दी जाये। हम भारतीय आदर्श जीवन मूल्यों को फिर स्थापित करने के लिए सत्ता में हैं। हम ऋग्वेद के इस मंत्र कि "ज्योतिस्मोत: पथोरक्ष धिया कृतान्" अर्थात् जिन ज्योतिर्मय (ज्ञान अथवा प्रकाश) मार्गों से हम श्रेष्ठ करने में समर्थ हों सकते हैं, उनकी रक्षा की जाये। हम सम भाव को शिरोधार्य करते हैं और ज्योतिर्मय मार्गों की रक्षा के लिये वचनबद्ध हैं। हम राजनीतिक आडम्बर के माध्यम से भोली और भावुक जनता को भ्रमित करने वाले लोगों से जनता को बचाने और उसे अंधेरे से निकालने और गिरने वालों को रोकने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
हम जनता को वहां से बचाना चाहते हैं, जहां परिवारवाद का अजगर कुण्डली मार कर उनका शोषण करने को जीभ लपलपा रहा है। जहां लोकतंत्र का सामन्तीकरण हो गया है और ठेके पर राजनीतिक जागीरें दी जा रही थीं। अब वह समय चला गया जब चापलूसी करने वालों को सम्मानों और पुरस्कारों से अलंकृत किया जाता था। स्वाअमी विवेकानन्द का राष्ट्रोत्थालन का आह्वान "उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरन्निबोधत'' हमारे प्राणों में गूंजता है। हम इसे जन-जन की रक्तु वाहिनियों में प्रवाहित होने वाले रक्त की ऊष्मा बना देना चाहते हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने न केवल दलित, आदिवासी और महिलाओं को शीर्ष पद पर पहुंचा कर इन वर्गों का सम्मान किया है अपितु राष्ट्र के सर्वोच्च पद्द्म सम्मानों को भी ऐसे लोगो के बीच पहुचाया जो उनके सच्चे हकदार थे। मोदी जी ने अपनी दूरदृष्टि से वास्तोविक लोगों को पहचाना। अब पद्म पुरस्कार राष्ट्र की संस्कृति, परंपरा और प्रगति के लिये महान कार्य करने वाले वास्तविक व्यक्तियों, तपस्वियों, साहित्यकारों, कलाकारों और वैज्ञानिकों को दिये जा रहे हैं।
पिछले पद्म सम्मान समारोह में, 30 हज़ार से अधिक पौधे लगाने और जड़ी बूटियों के पारंपरिक ज्ञान को बांटने वाली कर्नाटक की 72 वर्षीय आदिवासी बहन तुलसी गौड़ा को दिया गया। उन्हें नंगे पांव पद्म पुरस्कार लेते देखकर किसका मन भावुक नहीं हुआ होगा? किसका मस्तक गर्व से ऊंचा नहीं हुआ होगा? हजारों लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले अयोध्या के भाई मोहम्मद शरीफ हों या फल बेच कर 150 रुपये प्रतिदिन कमा कर भी अपनी छोटी सी कमाई से एक प्रायमरी स्कूल बना देने वाले मंगलोर के भाई हरिकेला हजब्बा हों, क्या ये पहले कभी पद्म पुरस्कार पा सकते थे। ॉ
आदिवासी किसान भाई महादेव कोली, जिन्होंने अपना पूरा जीवन देशी बीजों के संरक्षण एवं वितरण में लगा दिया, उन्होंने कभी पद्म पुरस्कार की कल्पना भी की होगी क्या ? जनजातीय परंपराओं को अपनी चित्रकारी में उकेरने वाली हमारे मध्य प्रदेश की बहन भूरी बाई हों या मधुबनी पेंटिंग कला को जीवित रखने वाली बिहार की बहन दुलारी देवी या कलारी पयट्टू नामक प्राचीन मार्शल आर्ट्स को देश में जीवित रखने वाले केरल के भाई शंकर नारायण मेनन या गांवों और झुग्गील बस्तियों में घूम-घूम कर सफाई का संदेश देने और सफाई करवाने वाले तमिलनाडु के भाई एस. दामोदरन, मध्य प्रदेश के बुन्देदलखण्डक के श्रीराम सहाय पाण्डेा इनमें से किसी के बारे में पहले हम लोग सोच भी नहीं सकते थे, कि उन्हें पद्म सम्मारन मिलेगा, किन्तु इन सभी भाई-बहनो को पद्म पुरस्कार मिले, क्योंकि यह भाजपा सरकार राष्ट्रवाद की जड़ों को सींचने वालों की पहचान करना और उन्हें सम्मानित करना अपना कर्तव्य समझती है। अब सम्मान मांगे नहीं जाते हैं अब सम्मान स्वयं योग्यन लोगों तक पहुंचते हैं, ऐसे लोग जो उसे पाने के अधिकारी हैं, फिर चाहे वे कितने ही सुदूर क्षेत्र में गुमनाम जीवन ही क्यों न बिता रहे हों।
राष्ट्रपति का चुनाव हो या पद्म पुरस्कारों का वितरण, मोदी जी की दूरदृष्टि, संवेदनशीलता उन्हें राजनीतिक समझौतों या स्वार्थों से बाहर निकालकर पवित्रता प्रदान करती है। भाजपा दलित, आदिवासी या महिलाओं को सम्मान देकर उन्हें उनके वास्तविक हकदारों तक पहुंचाकर समाज को जागृत करने और एक वैचारिक सामाजिक क्रांति करने का प्रयत्न कर रही है। जागृत जनता ही श्रेष्ठ राष्ट्रि का, श्रेष्ठी भारत का निर्माण कर सकती है। ऐतरेय ब्राह्मण में सदियों पूर्व लिख दिया गया था- राष्ट्रतवाणि वैविश: अर्थात् जनता ही राष्ट्र को बनाती है।
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना भाजपा द्वारा समस्त आदिवासी और महिला समाज के भाल पर गौरव तिलक लगाने की तरह है। हमें अब उपेक्षित और शोषित रहे वर्ग को समर्थ व सशक्त बनाना है। एक आदिवासी महिला का राष्ट्रपति बनना सामाजिक सोच को अंधकार से निकालकर प्रकाश में प्रवेश कराना है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की संरक्षक और आदिवासी उत्थान की प्रणेता बनेंगी।