कानपुर के निजी नर्सिंग होम के डॉक्टर मरे हुए मरीज का करते रहे इलाज, परिजनों से लेते रहे लाखों
आप में से कुछ ने अक्षय कुमार की फिल्म 'गब्बर' तो जरूर देखी ही होगी। किस प्रकार उसमे एक अस्पताल में मरे हुए मरीज को एडमिट कर लेते हैं और फिर लाखों रुपए परिजनों से इलाज के नाम पर ऐंठ लेते हैं, जबकि वो मरीज पहले ही मर चूका होता है। बस कुछ इसी तरह का एक मामला कानपुर से सामने आया है। जिसमे एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती मरीज की मौत हो गयी। लेकिन डॉक्टर उसको ज़िंदा बताकर इलाज करते रहे। इस दौरान नर्सिंग होम वालो में पांच लाख रुपया जमा भी करवा लिए। परिजनों को जब शक हुआ तो उन्होंने हंगामा करना शुरू कर दिया। जिसके बाद नर्सिंग होम का पूरा स्टाफ वंहा से भाग गया, सूचना पर एसीपी समेत क्षेत्रीय थाने की फोर्स मौके पर पहुंची और बड़ी मशक्कत के बाद परिजनों को शांत कराया गया।
डॉक्टर ने कहा था कि मामूली सी बात है
दरअसल
पूरा
मामला
उत्तरप्रदेश
के
कानपूर
जिले
का
है।
परिजन
अनुसार
कानपूर
के
तिलक
नगर
स्थित
कनिष्क
हॉस्पिटल
में
48
वर्षीय
रंजीत
कौर
को
भर्ती
कराया
था।
जिनका
गाल
ब्लैडर
का
ऑपरेशन
होना
था
।
डॉक्टर
ने
स्पष्ट
कहा
था
कि
मामूली
सी
बात
है
और
ऑपरेशन
करके
ठीक
कर
लिया
जाएगा
।
उन्होंने
ये
भी
आश्वासन
दिया
था
कि
केवल
5
दिन
के
अंदर
छुट्टी
करके
घर
भेज
दिया
जाएगा।
इसी
बीच
3
दिनों
के
अंदर
ही
उन्होंने
5
लाख
रुपए
तक
इलाज
के
नाम
पर
जमा
कर
लिए।
फिर
अचानक
देर
रात
लगभग
१२
बजे
बुलाकर
कहते
हैं
कि
इनकी
हालत
ज्यादा
खराब
है
और
अपने
परिजनों
को
सूचित
कर
दीजिए।
उसके
बाद
अस्पताल
प्रशासन
के
सभी
लोग
मौके
से
फरार
हो
गए।
वहीं
एसीपी
ने
बताया
है
कि
रंजीत
कौर
नाम
की
महिला
27
तारीख
को
कनिष्ठ
हॉस्पिटल
में
भर्ती
कराई
गई
थी,
जिनकी
देर
रात
मौत
हो
गई
है।
हंगामे
की
सूचना
पर
पुलिस
मौके
पर
पहुंची
है।
पुलिस
के
द्वारा
वैधानिक
कार्यवाही
की
जा
रही
है।
''उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986''
लापरवाही को टोर्ट और अपराध दोनों माना गया है। टोर्ट के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति के लिए सिविलन्यायालय में मुकदमें दायर किए जा सकते हैं और अपराध के रूप में फौजदारी न्यायालयों में ''उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986'' के अंतर्गत भी इस तरह के मामलों की शिकायत दर्ज करा कर क्षतिपूर्ति की मांग की जा सकती है। यहां इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है, कि चिकित्सा में हुई लापरवाही के मामले में शिकायतकर्ता को यह साबित करना होगा कि विपक्षी पार्टी (चिकित्सक) की सतर्क रहने की ड्यूटी थी और उसने इस ड्यूटी का उल्लंधन किया जिसके परिणामस्वरूप शिकायतकर्ता या उसके परिजन को क्षति पहुंची है।
धारा 304 (क) के अन्तर्गत
अस्पताल
के
उत्तरदायित्व
को
स्पष्ट
करते
हुए
न्यायालय
ने
कहा
है,
कि
''जब
कभी
किसी
अस्पताल
में
किसी
मरीज
को
इलाज
के
लिए
लिया
जाता
है
तो
उस
मरीज
के
प्रति
सतर्कता
बरतना
उसका
कर्तव्य
हो
जाता
है।
मरीज
के
इलाज
के
संबंध
में
कई
काम
ऐसे
होते
हैं
जिसे
अस्पताल
के
सहायकों
द्वारा
किया
जाता
है,
सहायकों
द्वारा
की
गयी
लापरवाही
के
लिए
संबंधित
व्यक्ति
के
साथ-साथ
अस्पताल
प्रशासन
पूर्णतया
जिम्मेदार
होता
है।''
डॉक्टर
पर
लगने
वाले
लापरवाही
के
आरोप
समाप्त
हो
सकते
हैं
यदि
उसने
जो
कार्य
किया
है
वह
अनुमोदित
पद्धति
से
किया
गया
है।
डॉक्टर
द्वारा
लापरवाही
करने
पर
आपराधिक
और
सिविल
दोनों
प्रकार
की
कार्रवाई
की
जा
सकती
है।
भारतीय
दण्ड
संहिता
की
धारा
304
(क)
के
अन्तर्गत,
आपराधिक
लापरवाही
के
लिए
किसी
डॉक्टर
को
सजा
दी
जा
सकती
है।
इसके
अन्तर्गत
जो
कोई
भी
व्यक्ति
आपराधिक
मानव-वध
की
श्रेणी
में
आने
वाला
उतावलेपन
या
लापरवाही
का
कोई
काम
करके
किसी
व्यक्ति
की
हत्या
करता
है,
उसे
दो
साल
तक
के
कारावास
या
जुर्माने
या
दोनों
की
सजा
हो
सकती
है।