Dussehra 2021 : जोधपुर में है रावण का ससुराल, यहां दशहरा पर मनाते हैं शोक, नहीं देखते दहन
जोधपुर, 15 अक्टूबर। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा 2021 देशभर में मनाया जा रहा है। शाम को जगह-जगह रावण के पुतलों का दहन किया जाएगा। दशहरे का विजयादशमी के रूप में जाना जाता है। दशहरे के मौके पर आइए आपको बताते हैं कि रावण के ससुराल के बारे में जहां लोग दहशरे पर रावण के पुतलों का दहन देखते तक नहीं। ये लोग इस दिन असत्य पर सत्य का जश्न नहीं बल्कि रावण की मौत पर शोक मनाते हैं।
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जोधपुर में रावण के वंशज
दरअसल, राजस्थान के जोधपुर में श्रीमाली ब्राह्मण समाज खुद को रावण का वंशज मानता है। यहां पर रावण मंदिर भी बना हुआ है, जिसमें ये लोग पूजा करते हैं। दशहरे पर जोधपुर में शोक मनाने के पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है।
रावण के साथ बारात में आए ब्राह्मण यहीं बस गए
कहा जाता है कि रावण का ससुराल जोधपुर में है। रावण की पत्नी मंदोदरी जोधपुर के मंडोर की रहने वाली है। लंका से रावण बारात लेकर जोधपुर के मंडोर आए थे तब उनके साथ बारात में गोधा गोत्र के श्रीमाली ब्राह्मण भी आए थे। शादी के बाद रावण तो मंदोदरी के साथ वापस लंका लौट गए और ये श्रीमाली ब्राह्मण जोधपुर में ही रह गए।
रावण दहन के बाद यज्ञोपवीत रस्म निभाते हैं
जोधपुर के श्रीमाली ब्राह्मण खुद को रावण का वंशज मानते हैं। ये रावण का दहन नहीं देखते, बल्कि दशहरे को शोक मनाते हैं। यहां तक कि श्राद्ध पक्ष में दशमी पर रावण का श्राद्ध, तर्पण आदि भी करते हैं। जैसे अपनों के देहांत के बाद स्नान कर यज्ञोपवीत बदला जाता है, उसी प्रकार रावण के वंशज दहन के बाद शोक के रूप में लोकाचार स्नान कर कपड़े बदलते हैं।
गोधा गोत्र के डेढ़ सौ से ज्यादा परिवार
मीडिया से बातचीत में श्रीमाली कमलेश दवे कहते हैं कि जोधपुर में श्रीमाली ब्राह्मण में गोधा गोत्र के करीब सौ से अधिक और फलौदी में साठ से ज्यादा परिवार रह रहे हैं। इस गोत्र में विवाह के बाद त्रिजटा पूजा की जाती है। विवाहिता त्रिजटा, जिसे अपभृंश त्रिज्जा कहने लगे हैं। इस पूजा में अन्य महिलाओं के माथे पर सिंदूर की बिंदी लगाती है। इसके बाद ही भोजन होता है। यह पूजा इतनी अनिवार्य होती है, अगर कोई महिला किसी कारणवश नहीं कर पाती और उसकी मृत्यु हो जाती है तो उसके नाम से यह पूजा की जाती है।
मेहरानगढ़ की तलहटी में रावण का मंदिर
बता दें कि जोधपुर में मेहरानगढ़ पहाड़ी है, जिस पर विशाल दुर्ग भी बना हुआ है। मेहरानगढ़ पहाड़ी की तलहटी में साल 2008 में रावण के मंदिर का निर्माण करवाया गया था। दशहरे को रावण दहन के बाद श्रीमाली ब्राह्मण में गोधा गोत्र समाज के लोग स्नान कर यज्ञोपवीत बदलते हैं। रावण के मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। रावण के मंदिर के सामने ही मंदोदरी का भी मंदिर है।
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