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अंतरधार्मिक बहु-विवाह और आदिवासी महिलाओं का शोषण

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रांची, 05 जुलाई। रांची राजमार्ग से तीन किलोमीटर अंदर की तरफ जाने पर इटकी प्रखंड आता है। मुख्य सड़क से अंदर जाने का रास्ता कच्चा पक्का है। जब आप इटकी में दाखिल होते हैं, बायीं तरफ लड़कियों का एक मदरसा है। इस मदरसे को देखकर कोई भी यह सहज ही अनुमान लगा सकता है कि यह प्रखंड स्त्रियों के अधिकार को लेकर जागरूक प्रखंड होगा।

jharkhand ranchi story of Inter-religious polygamy and exploitation of tribal women

परवेज ने तीन बार की शादी

इसी प्रखंड में एक घर है परवेज का। परवेज शादीशुदा पुरुष हैं लेकिन शादी इन्होंने एक बार नहीं तीन बार की है। इनके घर में पत्नी के तौर पर तीन औरतें रहती हैं। पहली शकीना और बाकि दो औरतें आदिवासी हैं। दूसरी रंजना टोप्पो और तीसरी मीनाक्षी लाकड़ा। (पहचान छुपाने के लिए कुछ नाम बदल दिए गए हैं) इटकी के आस-पास के लोगों से बातचीत करते हुए यह अनुमान लगाना आसान था कि परवेज का मामला अकेला नहीं है।

एक से ज्यादा शादियां करते हैं लोग

इटकी प्रखंड में इस तरह के कई दर्जन मामले हैं, जिसमें एक से अधिक शादी हुई है और मुसलमान पुरुष की एक से अधिक शादी में कम से कम एक पत्नी आदिवासी है। कुछ साल पहले इंडिया फाउंडेशन फॉर रूरल डेवलमेन्ट स्टडीज के लिए 'अंतरधार्मिक विवाह' पर किए गए एक अध्ययन में पाया कि दूसरी और तीसरी आदिवासी पत्नी चुनते हुए गैर आदिवासी पुरुष ने इस बात को प्राथमिकता दी है कि आदिवासी लड़की कामकाजी होनी चाहिए। जो आदिवासी युवती नर्स या शिक्षिका थी, वह वह गैर आदिवासी पुरुषों की पहली पसंद रही। झारखंड की सामाजिक कार्यकर्ता वासवी कीरो जो लम्बे समय से आदिवासी मुद्दों पर काम कर रहीं हैं, उन्होंने बताया कि इस तरह की कामकाजी आदिवासी लड़कियों के लिए मुस्लिम युवकों के बीच एक शब्द इस्तेमाल होता है, बियरर चेक। कामकाजी आदिवासी महिलाओं के लिए बियरर चेक शब्द का इस्तेमाल इसलिए भी होता है क्योंकि वह आमतौर पर मुस्लिम परिवार में दूसरी या तीसरी पत्नी बनकर रहती हैं। वह पुरुष के साथ रहकर उसके शरीर की भूख मिटाती है और अपनी मेहनत की कमाई से पेट की भी।

अंतरधार्मिक शादियों पर बीस साल पहले किया था अध्ययन

वासवी ने कामकाजी आदिवासी लड़कियों के साथ शोषण केन्द्रित अंतरधार्मिक शादियों पर बीस साल पहले एक अध्ययन किया था। जिसके हवाले से उन्होंने बताया कि 20 साल पहले का अध्ययन अब भी प्रासंगिक है। जिन परिवारों में दूसरी, तीसरी पत्नी बनकर आदिवासी लड़की थी, हमने पाया कि उन परिवारों में लड़की को वह महत्व नहीं मिल पा रहा है, जो मुस्लिम पत्नी को हासिल था। वासवी के अनुसार सीमडेगा, लोहरदगा और गुमला में बड़ी संख्या में इस तरह के मामले उन्हें देखने को मिले थे। इस तरह की घटनाओं को सुनकर झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता नहीं चौंकते क्योंकि समाज के बीच में काम करते हुए उनका सामना प्रतिदिन ऐसे मामलों से होता है, जिसमें एक से अधिक शादियां हों और गैर आदिवासी परिवार में एक से अधिक शादियों में कम से कम एक आदिवासी लड़की हो।

आम तौर पर इन आदिवासी लड़कियों की स्थिति परिवार में दोयम दर्जे की होती है। नफीस से मेरी मुलाकात इटकी प्रखंड में हुई थी। नफीस मानते हैं कि इटकी में इस तरह की शादियां बड़ी संख्या में हुई है। नफीस इस तरह की शादियों को सही नहीं ठहराते। नफीस के मित्र हैं, अभय पांडेय। पांडेय के अनुसार - मुसलमान युवकों द्वारा आदिवासी लड़कियों को दूसरी अथवा तीसरी पत्नी बनाने की घटनाएं बड़ी संख्या में है। लेकिन यह बताना भी वे नहीं भूलते कि इस मामले में इटकी में कोई बात करने को तैयार नहीं होगा।

एक से अधिक विवाह की वजह

जब उनसे पूछा कि ऐसा क्यों है? कोई बात करने को क्यों तैयार नहीं होगा? तो पांडेय इशारों-इशारों में बताते हैं कि जहां हमारी बातचीत हो रही है, वह मुस्लिम मोहल्ला है। यहां इस तरह की संवेदनशील बातचीत से खतरा हो सकता है। एक से अधिक विवाह के संबंध में अपने अध्ययन के दौरान इंडिया फाउंडेशन फॉर रूरल डेवलपमेन्ट स्टडीज ने पाया कि रांची के आसपास के जिलों को मिलाकर ऐसे एक हजार से अधिक मामले इस क्षेत्र में मौजूद हैं। इस स्टोरी पर काम करते हुए ऐसे रिश्तों की जानकारी मिली जिसमें आदिवासी लड़की को दूसरी या तीसरी पत्नी बनाकर घर में रखा गया है। परिवार में साथ रहने के बावजूद स्त्री को पत्नी का दर्जा हासिल नहीं है। समाज इन्हें पत्नी के तौर पर जानता है लेकिन उन्हें पत्नी का कानूनी अधिकार हासिल नहीं है।

एक वजह झारखंड में राजनीतिक शक्ति हासिल करना भी

झारखंड के आदिवासी समाज में अशोक भगत लंबे समय से काम कर रहे हैं। उनकी संस्था विकास भारती आदिवासियों के बीच एक जाना पहचाना नाम है। अशोक भगत शोषण की बात स्वीकार करते हुए कहते हैं- "मुस्लिम समाज के लोगों को एक से अधिक पत्नी रखने की इजाजत है। उन लोगों ने अपने मजहब का लाभ उठाकर एक-एक पुरुष ने झारखंड में कई-कई शादियां की हैं।

वे बाहर से आए हैं और आदिवासी लड़कियों को दूसरी, तीसरी पत्नी बनाने के पीछे इनका मकसद झारखंड के संसाधनों पर कब्जा और इनके माध्यम से झारखंड में राजनीतिक शक्ति हासिल करना भी है। पंचायत से लेकर जिला परिषद तक के चुनावों में आरक्षित सीटों पर इस तरह वे आदिवासी लड़कियों को आगे करके अपने मोहरे सेट करते हैं। वास्तव में आदिवासी समाज की लड़कियों का इस तरह शोषण आदिवासी समाज के खिलाफ अन्याय है।" अशोक भगत बताते हैं-"रांची के मांडर से लेकर लोहरदग्गा तक और बांग्लादेशी घुसपैठियों ने पाकुड़ और साहेबगंज में बड़ी संख्या में इस तरह की शादियां की हैं।"

आदिवासी लड़कियों का शोषण

श्री भगत इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि जब इतनी बड़ी संख्या में क्रिश्चियन बन चुके परिवारों की आदिवासी लड़कियां दूसरी और तीसरी पत्नी बनकर गैर आदिवासियों के पास गई हैं लेकिन कभी चर्च ने या फिर कॉर्डिनल ने इस तरह की नाजायज शादी के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला। श्री भगत उम्मीद जताते हुए कहते हैं- "आदिवासी समाज बेगम-जमात की चालाकियों को समझ रहा है। मुझे यकीन है कि आदिवासी समाज इन मुद्दों पर जागेगा।" झारखंड में एक दर्जन से अधिक सामाजिक संगठनों ने माना कि इस तरह की घटनाएं झारखंड में हैं, जिसमें एक से अधिक शादियां हुई हैं और इस तरह की शादियों में शोषण आदिवासी लड़कियों का ही होता है।

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English summary
jharkhand ranchi story of Inter-religious polygamy and exploitation of tribal women
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