जगदलपुर न्यूज़ के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
Oneindia App Download

बस्तर की मुर्गा लड़ाई का रोमांच तो देखिए, प्रशासन भी प्रतिबंध लगाने मे हुआ विफल

Google Oneindia News

जगदलपुर, 13 जनवरी। छत्तीसगढ़ का बस्तर अपनी खूबसूरती और संस्कृति के लिए खास पहचान रखता है। यहां के आदिवासियों की अनूठी परम्पराएं सदियों से आकर्षण का केंद्र रही है। जिसे स्थानीय आदिवासी किसी भी शर्त पर छोड़ना नहीं चाहते हैं। पूरे देश में कोरोना तेजी से पैर पसार रहा है। छत्तीसगढ़ मे भी रायपुर से लेकर बस्तर तक रोजाना कोरोना के मामलों मे इजाफा देखा जा रहा है। इन सब के बावजूद भी बस्तर के पारंपरिक बाजारों मे स्थानीय ग्रामीण मुर्गा लड़ाई मे हिस्सा ले रहे हैं।

मौत के साथ खत्म होता है खेल

मौत के साथ खत्म होता है खेल

बस्तर मे आदिवासियों के मनोरंजन के परंपरागत साधनों मे मुर्गा लड़ाई का हमेशा से महत्त्व रहा है। बस्तर के ग्रामीण इलाकों मे साप्ताहिक हाट बाजार लगते हैं। जहां होने वाली मुर्गों की लड़ाई देखने बड़ी संख्या मे लोग इकट्ठे होते हैं।लड़ाई के दौरान मुर्गे के पंजो मे हथियार बांधकर आपस में लड़ाया जाता है। यह लड़ाई तभी खत्म होती है जब दो मुर्गों से एक की मौत हो जाती है। बस्तर के साप्ताहिक बाजारों में इस लड़ाई को देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है, जो मुर्गों पर लाखों रूपये का दांव लगाते हैं। एक दिन में लगभग 60 मुर्गा लड़ाई हो जाती है।

लगती है 10 रुपये से लेकर लाखों की बोली

लगती है 10 रुपये से लेकर लाखों की बोली

मुर्गा के अखाड़े मे दांव आजमाने वाले लोगों के अपने नियम होते हैं। जो मुर्गों के संघर्ष मे अधिक दांव लगाता है, उसे मुर्गा अखाड़ा मैदान मे ही विशेष जगह दी जाती है। जबकि कम पैसे लगाने वाले लोगों को अखाड़ा मैदान मे लगाये तार के घेरे के बाहर खड़े होना पड़ता है। मुर्गों की अनूठी लड़ाई मे ग्रामीण 10 रुपये से लेकर लाखों रुपये की बोली लगाते हैं। एक दिन के बाजार मे करोड़ों की बोली लग जाती है।

मुर्गों को बनाया जाता है लड़ाकू

मुर्गों को बनाया जाता है लड़ाकू

मुर्गा लड़ाई से पहले मुर्गों के मालिक उन्हें खिला पिलाकर मजबूत बनाते हैं। मुर्गों को भीड़ के बीच रहने की आदत लग सके, इसलिए पहले उन्हें बाजार मे कई बार लाया जाता है। मुर्गों को मैदान मे उतारने से पहले उनको बिना हथियार बांधे आपस मे लड़कर लड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है। इससे मुर्गे लड़ाई के दौरान घायल हो जाने पर भी अंतिम सांस तक लड़ते रहते हैं।

कोरोना भी नही डरा सका ग्रामीणों को

कोरोना भी नही डरा सका ग्रामीणों को

बस्तर संभाग के लगभग सभी जिलों मे कोरोना के बढ़ते मामलों के बाद धारा 144 लगाई गई है। किसी भी प्रकार की सभा और रैली भी प्रतिबन्धित है। लेकिन प्रशासन आदिवासी ग्रामीणों को समझाने में विफल रहा है। पारंपरिक मुर्गा बाजार मे लोगों का जुटना जारी है। मिली जानकारी के मुताबिक इसे संस्कृति का अहम हिस्सा मानते हुए पंचायतों की तरफ से इसकी अनुमति दी जा रही है। पुलिस प्रशासन भी बेबस नजर आ रहा है।

यह भी पढ़ें एक हजार रुपये किलो बिकता है यह मुर्गा, फायदे इतने की जानकर रह जायेंगे दंग

Comments
English summary
See the thrill of the cock fight of Bastar, the administration failed to ban
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X