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'छत टूट गई है, बारिश में कैसे रहेंगे' बालिका की बात पर पसीजा जज का दिल, आदेश पर एक दिन में बना

14 वर्षीय मनीषा पंवार के घर की छत बारिश में टूट गई थी। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली मनीषा के घर वालों के पास इतने रुपए भी नहीं थे कि वह घर की नई छत बनवा सकें। पिता मजदूरी करते है और गुजरात गए हुए है।

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बड़वानी, 30 जून: जिस दौर में इंसाफ पाने के लिए अदालतों के चक्कर लगाते-लगाते पीड़ितों की चप्पले घिस जाती है, उस दौर में मप्र के बड़वानी के एक मामले ने मिसाल कायम की है। यहाँ बारिश में घर की छत टूटने की गुहार लेकर अदालत पहुंची 14 साल की एक किशोरी को 24 घंटे के भीतर न सिर्फ इंसाफ मिला, बल्कि समाज के अंदर यह संदेश भी दिया कि कानून अभी जिंदा है।

यह है मामला है

यह है मामला है

शहर की कालबेलिया बस्ती में रहने वाली 14 वर्षीय मनीषा पंवार के घर की छत बारिश में टूट गई थी। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली मनीषा के घर वालों के पास इतने रुपए भी नहीं थे कि वह घर की नई छत बनवा सकें। पिता मजदूरी करते है और गुजरात गए हुए है। इस किशोरी से घर-वालों की परेशानी और उनकी चिंता नहीं देखी गई। कम उम्र होते हुए भी अपनी समझ से मनीषा ने इंसाफ की राह ढूँढना शुरू किया तो समाज सेवी और चाइल्ड लाइन पहुंची। जहाँ उसने अपनी पीड़ा का इजहार किया। बच्ची की इच्छा शक्ति और हौसला को देख चाइल्ड लाइन के लोगों ने उसे प्रधान जिला न्यायाधीश, अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण आनंद कुमार तिवारी के पास पहुँचाया। उसकी गुहार और समस्या सुनकर प्रधान जिला न्यायाधीश ने फ़ौरन नगर पालिका के अधिकारियों को घर की छत बनाने का आदेश जारी किया।

24 घंटे के अंदर मुआयना और बन गई नई छत

24 घंटे के अंदर मुआयना और बन गई नई छत

जिला अदालत के न्यायधीश का आदेश मिलते ही नगर पालिका के अफसर सारे काम छोड़ पीड़िता के घर पहुंचे। घर की टूटी हुई छत का मुआयना किया फिर अगले ही दिन टीन शेड की छत बनवा दी गई। किशोरी की दृढ़ इच्छा शक्ति को देखकर नगर पालिका के कर्मचारी अधिकारी भी हैरान रह गए। मनीषा की मां को भी उम्मीद नही थी कि उसके घर की टूटी छत इतने जल्दी बन पाएगी। क्योकि परिवार का खर्च पति की मजदूरी की आय से ही चलता है। यह काम कई महीनों की मेहनत की कमाई जोड़कर ही संभव था। लेकिन महज 24 घंटे के अंदर घर की छत बनने से अब मनीषा और उसकी माँ की ख़ुशी का ठिकाना नही।

चौथी क्लास तक पढ़ी है मनीषा

चौथी क्लास तक पढ़ी है मनीषा

बताया गया कि अपने माता-पिता की पीढ़ा समझकर बेझिझक अदालत तक पहुंची मनीषा सिर्फ चौथी क्लास तक पढ़ी है। उसकी आगे भी पढ़ने की तमन्ना थी लेकिन पारिवारिक मजबूरियों ने उसकी पढ़ाई के क़दमों को रोक दिया। जिले की चाइल्ड लाइन समन्वयक ललिता गुर्जर को जब यह पता लगा तो अब मनीषा की आगे की पढ़ाई की व्यवस्था भी की जा रही है।

अब दूसरे लोग भी लगा रहे गुहार

अब दूसरे लोग भी लगा रहे गुहार

मनीषा को 24 घंटे के अंदर मिले न्याय के बाद बस्ती के अन्य लोगों में भी जागरूकता आई है। जिला न्यायधीश के पास कई लोगों ने अपनी समस्याओं के आवेदन किए। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने वहां शिविर भी लगाया ताकि मूलभूत समस्यओं से जुड़े आवेदकों को त्वरित या जल्दी न्याय मिल सकें। इस मामले से समाज में भी संदेश गया कि न्याय का मंदिर सभी के लिए है, न कोई छोटा है और न कोई बड़ा। इंसाफ पर सिर्फ अमीरों का ही नही मेहनत मजदूरी करने वाले आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का भी पूरा बराबरी का हक़ हैं।

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English summary
Example: 14 year old teenager got the broken roof of the house built in 24 hours
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