बिकते बच्चे...मरती मांएं...बेबस आंखें...बुझती सांसें...ओह तालिबान! तुमने अफगानिस्तान का क्या कर डाला
विश्व के सबसे बड़े मानवीय संकट में अफगानिस्तान फंस गया है, जहां भूख की वजह से बच्चों की मौत होने लगी है।
काबुल, अक्टूबर 27: अफगानिस्तान में एक मां की आंखों के आगे उसके भूखे बच्चे तड़प रहे थे और फिर मां एक फैसला करती है। मां 500 डॉलर यानि करीब 37 हजार रुपये में अपनी एक बेटी को एक शख्स के हाथ बेच देती है। खरीदार पैसे लेकर चला जाता है और मां रोती आंखों से बेबस देखती रहती है। उसके पास अपने बाकी बच्चों को बचाने के लिए अब बस एक ही सहारा बचा था। अब इन पैसों से वो कुछ दिनों तक अपने बाकी बच्चों को जिंदा रख सकेगी। बीबीसी में एक मां के हवाले से जब ये रिपोर्ट छापी, तो उसे पढ़ने के बाद हर मां-बाप के दिल में नश्तर चुभा....लेकिन कोई क्या कर सकता है।
देश की अर्थव्यवस्था की दुर्दशा
संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान दुनिया का सबसे खराब मानवीय संकट से गुजरने वाले देश की कगार पर खड़ा है। पिछले एक हफ्ते में भूख से तड़पकर आठ बच्चों की मौत हो चुकी है और ये वो रिपोर्ट हैं, जो दर्ज किए गये हैं। कई ऐसे बच्चे भी होंगे, जो मरकर मिट्टी में मिल चुके होंगे, लेकिन उनका कोई रिकॉर्ड किसी कागज पर दर्ज नहीं होगा। भूख से तड़पकर मरने वाले बच्चों की उम्र 10 साल से कम थी और ये सभी राजधानी काबुल में मृत पाए गए। इन बच्चों की माता-पिता की मौत पहले ही हो चुकी है और अब इन्होंने भी दम तोड़ दिया है।
बच्चों का मरना होगा सामान्य
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य निकाय के ताजा आकलन के आधार पर जो रिपोर्ट तैयार किया है, उसमें कहा गया है कि अफगानिस्तान में भूख से बच्चों के मरने की बातें काफी सामान्य बात होने वाली है, क्योंकि अफगानिस्तान की आधी से ज्यादा आबादी के पास अब भोजन की कमी है, और अफगानिस्तान में अब तबाही का आलम जल्द ही यमन और सीरिया में फैले संकटों के समान ही होगा। सूखे, युद्ध और गरीबी के कारण लंबे समय से चल रहे संकट को अगस्त में तालिबान द्वारा देश पर कब्जे के बाद और ज्यादा बढ़ा दिया है। दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक अफगानिस्तान को तालिबानी आतंकियों ने इस्लामिक अमीरात घोषित कर दिया, लेकिन उसके पास अफगानियों को खिलाने के लिए रोटी का एक टुकड़ा नहीं है, हां, किसी की जान लेने के लिए भले ही असलहों का भंडार हो।
भूख की भयावह स्थिति
विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) का अनुमान है कि, अफगानिस्तान की 3 करोड़ 90 लाख की आबादी में अब करीब 2 करोड़ 30 लाख लोगों को पर्याप्त मात्रा में खाना नहीं मिल पा रहा है और तालिबान के देश पर कब्जा करने के बाद एक करोड़ 40 लाख लोगों की संख्या इस लिस्ट में बढ़ी है। डब्ल्यूएफपी के कार्यकारी निदेशक डेविड बेस्ली ने कहा कि, "बच्चे मरने वाले हैं। लोग भूख से मरने वाले हैं। चीजें बहुत खराब होने वाली हैं।" उन्होंने कहा कि, "मुझे नहीं पता कि आप कैसे लाखों लोगों का पेट भरने वाले हैं, खासकर लाखों बच्चों का, आपकी अर्थव्यवस्था तबाह होने के कगार पर पर और आपको कहीं से कोई मदद नहीं मिल रही है''।
खतरे में एक करोड़ 40 लाख बच्चे
रिपोर्ट में कहा गया है कि, अफगानिस्तान में कम से कम एक करोड़ 40 लाख बच्चे खतरे में है और अब बच्चों के मरने का सिलसिला शुरू हो चुका है। मोहम्मद अली बामियानी नाम के एक मौलवी ने स्थानीय मीडिया को बताया कि, उन बच्चों की मां हृदय रोग से पीड़ित थी और उनकी मौत होने के बाद बच्चे पूरी तरह से अनाथ हो गये थे और फिर तड़पकर उनकी मौत हो गई। सेव द चिल्ड्रन, यूके सहायता चैरिटी ने कहा कि, परिवार ने अपने घर की सारी चीजें बेच दी थी, ताकि पेट भरा जा सके, लेकिन फिर उनके पास बेचने के लिए भी कुछ नहीं बचा था। अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था काफी हद तक दूसरे देशों से मिलने वाली मदद पर पर निर्भर करती है और अशरफ गनी की सरकार गिरने के बाद से सरकारी कर्मचारियों को भुगतान नहीं किया गया है। तेल, गेहूं और चावल जैसे खाद्य पदार्थों की कीमत पिछले एक साल में 55 फीसदी तक बढ़ गई है।
सबसे खराब मानवीय संकट
चैरिटी के वरिष्ठ संघर्ष और मानवीय वकालत सलाहकार ओर्लिथ मिनोग ने कहा कि, "ऐसा लगता है कि अफगान बच्चों की पीड़ा का कोई अंत नहीं है। दशकों के युद्ध और पीड़ा के बाद वे अब अपने देश के इतिहास में सबसे खराब भूख संकट का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि, ''स्थिति पहले से ही निराशाजनक है। हम अपने क्लीनिकों में हर दिन छोटे बच्चों को देखते हैं जो गंभीर कुपोषण से बर्बाद हो रहे हैं। उनके पास खाने के लिए रोटी के अलावा कुछ नहीं होता है। जब सर्दी शुरू होगी तो हम देखेंगे कि पहले से कहीं अधिक बच्चे भूखे मर रहे हैं।"
सर्दी में हालत और होगी खराब
वहीं, डब्ल्यूएफपी के कार्यकारी निदेशक डेविड बेस्ली ने कहा कि, "अफगानिस्तान अब दुनिया के सबसे खराब मानवीय संकट से जूझने वाला देश बन चुका है। खाद्य सुरक्षा पूरी तरह चरमरा गई है। इस सर्दी में लाखों अफगानों के सामने या तो पलायन करने या फिर भूख से मरने के बीच एक ऑप्शन का चयन करना पड़ेगा।'' उन्होंने कहा कि, जब तक देश की अर्थव्यवस्था को सही नहीं किया जा सकेगा, तब तक देश में जीवन रक्षा करना संभव नहीं हो सकेगा। उन्होंने कहा कि, "हम तबाही की उलटी गिनती पर हैं और अगर हम अभी एक्शन नहीं लेते हैं, तो हमारे हाथों में फिर आपदा ही बचेगी।"
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