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तालिबान के आने से क्यों डर रहे हैं तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान

अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी इलाकों में जैसे-जैसे तालिबान का दख़ल बढ़ रहा है, मध्य एशियाई देशों की सरकारें अपनी दक्षिणी सीमाओं पर चौकसी बढ़ाने के लिए तेज़ी से क़दम उठाने लगी हैं.

By BBC News हिन्दी
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अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी इलाकों में जैसे-जैसे तालिबान का दखल बढ़ रहा है, मध्य एशियाई देशों की सरकारें अपनी दक्षिणी सीमाओं पर चौकसी बढ़ाने को लेकर तेज़ी से कदम उठाने लगी हैं.

ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं जब सैकड़ों की संख्या में अफ़ग़ानिस्तान हुकूमत के सैनिकों ने तालिबान के हमलों से जान बचाने के लिए ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान की तरफ़ जाकर पनाह ली है.

पर्यवेक्षक इस बात की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं कि तालिबान अफ़ग़ानिस्तान की बागडोर एक बार फिर से संभालने वाला है. चिंताएं इस बात को लेकर भी हैं कि अन्य चरमपंथी गुट मध्य एशिया में नया ठिकाना बना सकते हैं.

कई विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले साल अमेरिका-तालिबान के बीच हुए समझौते के बावजूद अफ़ग़ानिस्तान के भीतर शांति प्रक्रिया के वापस पटरी पर लौटने की संभावना कमज़ोर दिखाई देती है. उनका कहना है कि अमेरिका-तालिबान समझौता केवल अफ़ग़ानिस्तान से विदेशी सैनिकों के आसानी से निकल जाने का रास्ता मुहैया कराता है.

मध्य एशिया के तीन मुल्कों की सरहदें अफ़ग़ानिस्तान से लगती हैं. ऐसा लगता है कि इनमें तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान ने तालिबान से सीधा संपर्क स्थापित करने के लिए कूटनीतिक कोशिशें शुरू की हैं.

तीसरा देश ताजिकिस्तान है जिसकी अफ़ग़ानिस्तान के साथ सबसे लंबी 1344 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है. और इस इलाके में ताजिकिस्तान की स्थिति सबसे ज़्यादा जोखिम भरी है. कहा जा रहा है कि ताजिक बॉर्डर के एक तरफ़ अफ़ग़ानिस्तान का तकरीबन पूरा इलाका अब तालिबान के नियंत्रण में आ गया है.

सीमाओं पर चौकसी बढ़ी

ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान ने पांच जुलाई को अपने रक्षा मंत्रालय को ये आदेश दिया कि 20 हज़ार रिज़र्व सुरक्षा बलों को अफ़ग़ानिस्तान बॉर्डर पर तैनात किया जाए.

न्यूज़ वेबसाइट 'पेयोमडॉटनेट' की रिपोर्ट के मुताबिक़ रूस ताजिक-अफ़ग़ान बॉर्डर पर सुरक्षा व्यवस्था मज़बूत करने के लिए 7000 सैनिकों की टुकड़ी और 100 टैंक सैनिक सहायता के रूप में भेज सकता है.

रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा है कि ताजिकिस्तान में मौजूद रूस के सैनिक अड्डे की क्षमता का भी इस मक़सद से इस्तेमाल किया जा सकता है. ताजिकिस्तान को और मदद पहुंचाने के लिए रूस अपने क्षेत्रीय सहयोगी देशों के साथ भी बातचीत कर रहा है.

तुर्कमेनिस्तान की सरकार भी अफ़ग़ानिस्तान बॉर्डर पर सैनिकों की तैनाती बढ़ाने के विकल्प पर विचार कर रही है. ऐसी रिपोर्टें हैं कि तुर्कमेनिस्तान अपने बॉर्डर पर रॉकेट लॉन्चर और लड़ाकू विमानों की तैनाती कर सकता है.

सैनिक 'शरणार्थी'

ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान में हाल के हफ़्तों में ऐसी दर्जनों घटनाएं हो चुकी हैं जब अफ़ग़ानिस्तान सरकार के सैनिकों ने तालिबान के डर से जान बचाने के लिए बॉर्डर के दूसरी तरफ़ जाकर पनाह ली है.

ताजिकिस्तान का कहना है कि उसने अच्छे पड़ोसी होने के नाते और इंसानियत के आधार पर हर बार अफ़ग़ान सैनिकों को अपने यहां आने की इजाज़त दी है.

इसके ठीक उलट उज़्बेकिस्तान ने कहा है कि अफ़ग़ान सैनिकों ने जब भी बॉर्डर पार कर उनकी तरफ़ पनाह लेने की कोशिश की, उन्हें हर बार बिना देरी किए वापस अफ़ग़ानिस्तान भेज दिया गया और वे भविष्य में भी ऐसा करते रहेंगे.

28 जून को उज़्बेकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि उनका देश पड़ोसी देश के आंतरिक मामलों में दख़ल न देने और अपनी तटस्थता की नीति पर कायम है.

इस बीच विशेषज्ञों ने अफ़ग़ानिस्तान से आने वाले शरणार्थियों के सैलाब को लेकर चेतावनी दी है. इनमें कुछ लोग हथियारों के साथ होंगे और कुछ निहत्थे. मध्य एशिया के देशों की पहले से खस्ताहाल अर्थव्यवस्थाओं के लिए ये एक बड़ी चुनौती साबित होने वाली है.

अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी इलाकों में लाखों ताजिक और उज़्बेक लोग रहते हैं. पत्रकार एलेक्ज़ेंडर ख्रोलेंको ने न्यूज़ वेबसाइट 'स्पुतनिक उज़्बेकिस्तान' के लिए लिखा है कि अगर इतने लोगों का दसवां हिस्सा भी लड़ाई से परेशान होकर बॉर्डर के दूसरी तरफ़ शरण लेने की कोशिश करता है तो क्षेत्रीय असंतुलन की स्थिति पैदा हो सकती है.

न्यूज़ एजेंसी 'एशिया प्लस' के ताजिकिस्तान मामलों के जानकार रहमतुल्लो अब्दुल्लोयेव का कहना है कि अफ़ग़ान लोग अमूमन देश के भीतर ही शरण लेने के लिए एक जगह से दूसरे जगह जाते रहे हैं और बहुत कम लोग सीमा पार कर बॉर्डर के दूसरी तरफ़ पनाह लेने की कोशिश करते हैं.

'कोई सीधा ख़तरा नहीं'

कई विश्लेषकों की ये राय है कि तालिबान की नज़र काबुल की सत्ता पर है और मध्य एशिया के देशों को उससे कोई सीधा ख़तरा नहीं है. लेकिन न्यूज़ वेबसाइट 'कारवां डॉट केज़ेड' पर उज़्बेक विशेषज्ञ राफेल सत्तोरोव ने लिखा है कि ये तालिबान के ख़तरे को कम करके आंकने जैसी मूर्खता होगी.

'ज़ोनाक्ज़ डॉट नेट' ने कज़ाख़ विशेषज्ञ ज़ामिर काराझानोव के हवाले से लिखा है कि तालिबान के नियंत्रण में अफ़ग़ानिस्तान अन्य देशों के लिए चरमपंथी हमलों का स्रोत बन सकता है.

विशेषज्ञ झुमाबेक साराबेकोव ने न्यूज़ वेबसाइट 'टेंगरीन्यूज़ डॉट केज़ेड' पर लिखा है कि "नशीले पदार्थों की तस्करी के अलावा हथियारों की तस्करी की समस्या गंभीर रूप से बनी हुई है और ये बढ़ सकती है."

दूसरी तरफ़, कुछ विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि तालिबान की बढ़त पर देर-सवेर लगाम लगा दी जाएगी और उसे अफ़ग़ान हुकूमत के साथ शांति वार्ता शुरू करनी होगी.

क्षेत्रीय विशेषज्ञ अलेक्ज़ेंडर क्न्याज़ेव ने न्यूज़ वेबसाइट 'नुक़्ता डॉट टीजे' पर लिखा है कि "अगर तालिबान के नियंत्रण में ज़्यादा बड़े इलाके रहे तो बातचीत में उसकी स्थिति मज़बूत रहेगी."

पर्यवेक्षकों की चिंता इस बात को लेकर भी है कि मध्य एशियाई मूल के लोगों के चरमपंथी गुट क्षेत्र में अपना असर बढ़ाने के लिए हिंसा तेज़ कर सकते हैं.

तालिबान के साथ कूटनीतिक कोशिशें

उज़्बेकिस्तान का हमेशा से ये स्टैंड रहा है कि तालिबान को अफ़ग़ान शांति वार्ता का हिस्सा होना चाहिए और शौकत मिर्ज़ियोयेव के नेतृत्व में ताशकंद ने हाल के सालों में अंतरराष्ट्रीय शांति कोशिशों में सक्रिय रूप से भागीदारी निभाई है.

उज़्बेकिस्तान तालिबान के क़तर कार्यालय के प्रतिनिधिमंडल की अगस्त, 2018 में मेज़बानी कर चुका है. उज़्बेकिस्तान के विदेश मंत्री अब्दुलअज़ीज़ कोमिलोव इस मुलाकात के बाद दोहा में कई बार तालिबान के लोगों से मिल चुके हैं.

फरवरी में जब अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर दस्तखत हुए थे तो उज़्बेकिस्तान ने इसका श्रेय लेने की कोशिश की थी. अब्दुलअज़ीज़ कोमिलोव ने तब ये ट्वीट किया था, "राष्ट्रपति शौकत मिर्ज़ियोयेव की राजनीतिक इच्छाशक्ति और व्यावहारिक नज़रिए से शुरू की गई अफ़ग़ान शांति वार्ता के कारण दोहा में ऐतिहासिक समझौता हुआ."

हाल ही में अब्दुलअज़ीज़ कोमिलोव ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उज़्बेकिस्तान पहला देश है जिसने तालिबान के नेताओं के साथ सीधा संपर्क स्थापित किया था.

तुर्कमेनिस्तान भी तालिबान के संपर्क में है. इसी साल फरवरी में तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल ने फरवरी में एश्गाबात का दौरा किया था. तालिबान का प्रतिनिधिमंडल 10 जुलाई को भी तुर्कमेनिस्तान की राजधानी में मौजूद था.

रेडियो लिबर्टी तुर्कमेन ने क़तर में तालिबान के प्रवक्ता के हवाले से बताया कि तालिबान प्रतिनिधिमंडल की तुर्कमेनिस्तान हुकूमत के साथ द्विपक्षीय आर्थिक और राजनीतिक संबंधों के अलावा सीमा सुरक्षा के मुद्दे पर बातचीत हुई.

ताजिकिस्तान ने तालिबान पर पाबंदी लगा रखी है और उसने कभी तालिबान को एक राजनीतिक ताक़त के रूप में स्वीकार नहीं किया है.

एशिया प्लस न्यूज़ सर्विस के लिए विशेषज्ञ सादी युसुफ़ी ने लिखा है कि "इस बार भी संभावना कम ही है कि ताजिकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामी हुकूमत को मान्यता देगा और तालिबान के साथ संबंध स्थापित करेगा."

आर्थिक संभावनाएं

मध्य एशिया के देशों में प्रचूर मात्रा में प्राकृतिक गैस, तेल और कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं. इसके अलावा पनबिजली के क्षेत्र में भी अपार संभावनाएं हैं. वे दक्षिण एशिया को एक संभावित बाज़ार के तौर पर देखते हैं और अफ़ग़ानिस्तान में शांति की स्थापना से उनके लिए बड़े आर्थिक अवसरों के दरवाज़े खोलता है.

उज़्बेकिस्तान का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान को मध्य एशिया में बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं का हिस्सा बनना चाहिए.

फरवरी, 2021 में उज़्बेकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान की सरकार ने मज़ार-ए-शरीफ़-काबुल-पेशावर रेलवे लाइन के निर्माण के लिए समझौते पर दस्तख़त किए थे. ये परियोजना अफ़ग़ानिस्तान को समंदर तक पहुंचने का रास्ता मुहैया कराती है.

किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान की दिलचस्पी 1.6 अरब डॉलर की उसकी बिजली परियोजना में है जो इन दोनों देशों को हाई वोल्टेज ट्रांसमिशन सिस्टम से अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान को जोड़ती है.

तुर्कमेनिस्तान तापी गैस पाइप लाइन परियोजना को पूरा करना चाहता है, जिसके सहारे उसकी योजना हर साल 33 बिलियन क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और भारत को बेचने की है.

हालांकि इन सभी परियोजनाओं की सुरक्षा को लेकर वाजिब किस्म की चिंताएं हैं. उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान की सरकारों का कहना है कि तालिबान के प्रतिनिधियों ने उन्हें पूरे समर्थन का भरोसा दिलाया है.

दूसरी तरफ़ विश्लेषक इस बात को लेकर भी आगाह करते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में लड़ाई बढ़ी तो इन परियोजनाओं पर काम रुक भी सकता है.

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English summary
why Turkmenistan Uzbekistan and Tajikistan afraid on arrival of the taliban in afghanistan
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