अमीर, खुशहाल और उदार स्वीडन क्यों बदल रहा है?
तो क्या स्वीडन की उदार, प्रगतिशील और खुशनुमा देश की पहचान ख़तरे में है. इस सवाल पर प्रोफेसर सरकार कहती हैं, "एक चीज आपको देखनी चाहिए कि वहां पर बहुत मजबूत सिविल सोसाइटी है. कई एनजीओ हैं जो काम करते हैं. स्वीडन के साथ नॉर्वे में भी है. जो काफी मदद करते हैं प्रवासियों की. स्वीडन की एक पहचान रही है, वो पहचान बनी रहेगी."
स्वीडन भी अपनी उस पहचान को बचाना चाहता है, जिसके जरिए मिली बहुआयामी कामयाबी
यूरोप के देश स्वीडन का जिक्र हो तो आपके ज़हन में क्या कुछ आता है?
अल्फ्रेड नोबेले, नोबेल पुरस्कार, डायनामाइट, बोफोर्स, कंप्यूटर माउस, फुटबॉल टीम या फिर म्यूजिकल बैंड एबा ?
आपके दिमाग में इस देश की चाहे जो पहचान दर्ज़ हो, वहां के लोग तो अर्से से अपने समाज के खुलेपन, लैंगिक समानता और राजनीति के उदार चरित्र पर इतराते रहे हैं.
जहां सरकारें लोगों की ज़िंदगी में झांकती नहीं बल्कि समाज कल्याण, स्वास्थ्य सुविधाओं और पारदर्शिता तय करने में जुटी दिखती हैं.
हथियार निर्यात करने के मामले में आला देशों की कतार में होने के बाद भी स्वीडन ने साल 1814 के बाद कोई जंग नहीं लड़ी है.
पटरी से उतरती व्यवस्था?
नई खोज और नई तकनीक को बढ़ावा देने का हामी ये देश अति विकसित पश्चिमी देशों के लिए भी दशकों तक मॉडल रहा है.
साल 1963 की एक टीवी डोक्यूमेंट्री में स्वीडन का बखान कुछ इस तरह किया गया था.
" यहां लोग दुनिया में सबसे अमीर हैं. उनके रहन सहन का स्तर ऊंचा है. सरकार समाज कल्याण पर ध्यान देती है. इसने गरीबी को ख़त्म कर दिया है. यहां हड़तालें नहीं होतीं हैं. यहां हर चीज और हर कोई काम करता है. ये दुनिया का इकलौता देश है, जहां सात साल के बच्चे को सेक्स का सबक दिया जाता है."
पैमाना खुशी का हो या संपन्नता का. स्वीडन की गिनती बरसों से टॉप दस देशों में होती है. युवा हों या बुजुर्ग रहने के लिहाज से हर उम्र के लोगों के लिए इसे अव्वल मुल्क माना जाता रहा है.
लेकिन स्वीडन की ये पहचान अब बदल रही है. दक्षिणी शहर मोल्मो में रहने वाली एक महिला कहती हैं, "हम बहुत खुशकिस्मत थे. लेकिन हम अब समाज में दिक्कतें देख रहे हैं. जरूरी नहीं है कि इसका संबंध प्रवासियों से हो. अब लोगों को लगता है कि मेरे बच्चे का स्कूल ठीक नहीं चल रहा है. मेरे बुजुर्ग माता-पिता की ठीक से देखभाल नहीं हो रही है. बसें और ट्रेनें हमेशा देर से चल रही हैं. तो लोगों को लगता है कि वो सबकुछ ठीक कर रहे हैं लेकिन उन्हें वो सुविधाएं नहीं मिल रही हैं, जो पहले मिलती थीं."
कैशलेस अर्थव्यवस्था की राह पर कैसे बढ़ा स्वीडन?
सोशल डेमोक्रेट का दबदबा घटा
स्वीडन की राजनीतिक तस्वीर भी बदल रही है. इस देश को उदारवादी पहचान देने वाली सोशल डेमोक्रेट पार्टी का दबदबा लगातार घट रहा है. करीब सात दशकों यानी साल 2006 तक इस पार्टी की जड़ें मजबूती से जमी रहीं.
हाल में हुए आम चुनाव में ये पार्टी जिस गठबंधन में है, वो मुक़ाबले के दूसरे गठबंधन से कुछ ज़्यादा वोट हासिल करने में कामयाब रहा लेकिन बहुमत हासिल नहीं कर सका.
स्वीडन गठबंधन सरकारों का अभ्यस्त होने लगा है लेकिन इस बार बड़ा अंतर प्रवासियों का मुखर विरोध करने वाली पार्टी स्वीडन डेमोक्रेट्स को मिले वोट हैं.
दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर भाष्मति सरकार कहती हैं कि स्वीडन डेमोक्रेट्स पार्टी के 18 फ़ीसदी वोट हासिल करने को चौंकाने वाला नतीजा नहीं कहा जा सकता.
वो कहती हैं, "पिछले साल एक सर्वे हुआ था. तभी ये अंदाज़ा था कि इनके वोटों में इजाफा होगा. जब 2015 का प्रवासी संकट हुआ था, उसके तहत वहां बहुत समस्याएं हुई थीं. जब इकट्ठे बहुत सारे लोग आ गए थे. तब से इनकी लोकप्रियता बढ़ रही है."
साल 2015 के प्रवासी संकट के वक्त स्वीडन ने बहुत उदार रुख दिखाया था. एक लाख 63 हज़ार लोगों ने स्वीडन में शरण पाने के लिए आवेदन किया था. स्वीडन ने जनसंख्या के अनुपात में किसी भी मुल्क के मुक़ाबले ज़्यादा प्रवासियों को जगह दी थी. करीब एक करोड़ जंनसख्या वाले इस देश में दस फ़ीसदी से ज़्यादा प्रवासी हैं.
प्रोफेसर भाष्मति सरकार कहती हैं, "2015 के प्रवासी संकट के दौरान आप देखेंगे, स्वीडन की सरकार ने जर्मनी की तरह का कदम उठाया था. प्रवासियों का बहुत स्वागत किया था लेकिन एकाएक जब बहुत से लोग आए तो इनकी व्यवस्था में दिक्कतें आईं. इनके यहां मौसम बहुत कठिन है, ऐसे में बाहर से आए लोगों को रहने के लिए कहां जगह दी जाए, इसे लेकर बहुत दिक्कत हो गई थी."
राष्ट्रवादी पार्टी का उभार
राजनीतिक विश्लेषक स्वीडन की राष्ट्रवादी पार्टी के उभार को इटली, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और फ्रांस में दक्षिणपंथी पार्टियों के प्रभाव में इजाफे से जोड़कर देखते हैं.
इटली में फाइव स्टार मूवमेंट ने चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया. जर्मनी में एडीएफ पार्टी पहली बार संसद में पहुंचने में कामयाब रही. ऑस्ट्रिया में फ्रीडम पार्टी सरकार में शऱीक है और फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में मरी ला पेन ने चुनौती पेश की.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफेसर हर्ष पंत कहते हैं कि ये बदलाव पहचान के संकट से जुडा है.
"2015 के प्रवासी संकट के दौरान जो कुछ हुआ उसका बहुत बड़ा असर हुआ. उसने यूरोप की पहचान को झकझोर कर रख दिया है. उससे ये सवाल खड़ा हुआ है कि अगर ये चलता रहा तो यूरोप की अपनी पहचान क्या रह जाएगी? ये सवाल ब्रिटेन ने तो ब्रेक्ज़िट में उठाए. अब स्वीडन में भी अलगाव यानी स्वेक्ज़िट की बात हो रही है."
पहचान का संकट
इस बार आम चुनाव में पिछले चुनाव के मुक़ाबले करीब छह फ़ीसदी ज़्यादा वोट हासिल करने वाली स्वीडन डेमोक्रेट्स पार्टी के नेता यिमी ऑकॉसन का दावा है कि उनकी पार्टी में नस्लभेद को बर्दाश्त नहीं किया जाता.
स्वीडन में हर छह में से एक व्यक्ति का वोट हासिल करने वाली ये पार्टी अपनी पहचान बदलने में जुटी है. महिलाओं और ऊंचे तबके को साथ लाना इसकी प्राथमिकता में शुमार हो गया है. लेकिन अब भी इसकी पहचान प्रवासियों के ख़िलाफ आवाज़ बुंदल करने को लेकर है. ये पार्टी यूरोपीय यूनियन से अलग होने की मांग उठाती है और जनमत संग्रह कराना चाहती है.
हर्ष पंत का आकलन है कि यूरोप की बाकी दक्षिणपंथी पार्टियों की तरह ये पार्टी भी पहचान के संकट को उठाकर आधार बढ़ाना चाहती है.
वो कहते हैं, "निश्चित तौर पर इसमें एक इस्लाम विरोधी तत्व भी है. ये सारे राजनीतिक दल कहीं पर इस्लाम विरोधी भी रहे हैं. मुझे ये एक पहचान का सवाल नज़र आता है. सारे देश जो कहते थे कि यूरोपीय यूनियन ने हमारी पहचान को ढक लिया है, वो इस बात से ज़्यादा डर गए हैं कि बाहर से जो लोग आ रहे हैं, वो हमारी पहचान पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं."
स्वीडन की अर्थव्यवस्था मजबूत है. लेकिन इस देश के लिए पहचान का मुद्दा अहम है. यूरोपीय यूनियन में होने के बाद भी स्वीडन ने एकल मुद्रा को मंजूर नहीं किया है.
कैसे बचेगी पहचान?
स्वीडन के कई लोग आवास, स्वास्थ्य सेवाओं और जनकल्याण सेवाओं में कटौती को लेकर चिंता है. बढ़ते अपराध भी फिक्र की वजह हैं. दक्षिणी शहर मोल्मो को यूरोप में बलात्कार की राजधानी कहा जाने लगा है. कई लोग बढ़ते अपराधों के लिए प्रवासियों को जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन आंकडे इस दावे का समर्थन नहीं करते. हालांकि हर्ष पंत कहते हैं कि आंकड़े आगे करके लोगों की सोच को नहीं बदला जा सकता है.
"लोगों को अगर आप आंकड़े देंगे तो उन्हें फर्क नहीं पड़ेगा. क्योंकि एक सोच बन गई है कि जब आपकी माली हालात अच्छी नहीं है तो किसी पर आप दोषारोपण करते हैं. ऐसे में प्रवासी एक आसान सा निशाना हैं. अपराध बढ़ रहे हैं तो इसकी वजह प्रवासियों की संख्या बढ़ने को बताया जाएगा. इससे फर्क नहीं पड़ता कि भले ही वो अपराध वहीं लोग कर रहे हों.
हर्ष पंत ये भी कहते हैं कि प्रपोर्शन रिप्रजेंटेशन यानी आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली पर गुमान करने वाले स्वीडन में जो बदलाव दिख रहे हैं, वो मुख्यधारा के राजनीतिक दलों की खामियों की ओर इशारा करते हैं.
तो क्या स्वीडन की उदार, प्रगतिशील और खुशनुमा देश की पहचान ख़तरे में है. इस सवाल पर प्रोफेसर सरकार कहती हैं, "एक चीज आपको देखनी चाहिए कि वहां पर बहुत मजबूत सिविल सोसाइटी है. कई एनजीओ हैं जो काम करते हैं. स्वीडन के साथ नॉर्वे में भी है. जो काफी मदद करते हैं प्रवासियों की. स्वीडन की एक पहचान रही है, वो पहचान बनी रहेगी."
स्वीडन भी अपनी उस पहचान को बचाना चाहता है, जिसके जरिए मिली बहुआयामी कामयाबी को देखने दशकों से पूरी दुनिया यहां आती रही है.
स्वीडन कैसे बन गया जिहाद का निर्यातक?
स्वीडन ने ट्रंप के बयान पर अमरीका से मांगी सफाई
स्वीडन में लोगों की सेक्स लाइफ़ पर रहेगी नज़र