भारत -नेपाल विवाद में चीनी राजदूत की क्या है भूमिका
नेपाल में चीन की राजदूत हाओ यांकी इन दिनों भारत और नेपाल की मीडिया में सुर्ख़ियां बटोर रहीं हैं.
एक ऐसे समय में जब चीन के ज़्यादातर राजनयिक उसकी विदेश नीति के एजेंडे को अराजनयिक तरीक़े से आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, नेपाल में चीन की राजदूत हाओ यांकी ने हिमालय की गोद में बसे इस छोटे से देश का दिल जीतने के लिए एक बहुत ही अलग सौम्य तरीक़ा अपनाया है.
हाओ यांकी के काम करने का तरीक़ा चीन के दूसरे राजनयिकों से बिल्कुल अलग है.
वैश्विक मीडिया ने चीन के राजनयिकों के लिए 'वॉल्फ़ वॉरियर्स' जैसे कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया है क्योंकि उनके मुताबिक़ चीनी राजनयिक चीन के बचाव के लिए उग्र और बेअदब तरीक़ा अपनाते हैं और कई बार तो बेबुनियाद साज़िश रचने का आरोप लगाते हैं.
नेपाल के नए राजनीतिक नक़्शे के कारण फ़िलहाल नेपाल से चल रहे राजनयिक तनाव के बीच ये भारत के लिए चिंता का विषय होना चाहिए.
नेपाल ने अपने नए नक़्शे में उन इलाक़ों को शामिल किया है जिन पर फ़िलहाल भारत का क़ब्ज़ा है लेकिन नेपाल उन पर अपनी दावेदारी पेश करता रहा है.
नेपाल को चीनी ख़ेमे में ले जाने की इस शानदार सफलता के कारण राजदूत हाओ यांकी को नेपाल और भारत की मीडिया में महत्वपूर्ण कवरेज मिल रही है.
वरिष्ठ पत्रकार ज्योति मल्होत्रा ने न्यूज़ वेबसाइट द प्रिंट में एक लेख लिखा है.
इस लेख में नेपाल में चीनी राजदूत का ज़िक्र करते हुए ज्योति मल्होत्रा लिखती हैं, "हाओ यांकी की बढ़ती लोकप्रियता इन दिनों नेपाल में हर किसी की ज़ुबान पर है. हालांकि ये उनके काम का हिस्सा है कि वो नेपाल को भारत के सांस्कृतिक गोद से छीनकर चीन की ओर खींच कर ले जाएं. और हर एतबार से वो अपने इस काम में सफल हो रही हैं."
भारत राजनयिक ज़मीन पर पिछड़ रहा है?
नेपाल में चीन की राजनयिक जड़ें मज़बूत होने के लिए कई लोग भारत की नीति को ज़िम्मेदार ठहराते हैं.
भारत और नेपाल ने सीमा विवाद को वर्षों तक इसी तरह छोड़ दिया और सुलझाने की कोई कोशिश नहीं की. लेकिन दोनों देशों के बीच इतने मज़बूत सांस्कृतिका और आर्थिक संबंध रहने के बावजूद दोनों में से कोई भी एक दूसरे पर पूरी तरह से भरोसा नहीं करता है.
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मामला इस साल और बिगड़ गया जब नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपनी गिरती लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए लोगों की उग्र-राष्टवाद की भावना को भड़काते हुए नेपाल-भारत सीमा को नए सिरे से खींचने की सफल कोशिश की.
कहा जा रहा है कि ओली के इस क़दम ने भारत को चौंका दिया, लेकिन भारत को नहीं चौंकना चाहिए क्योंकि साल 2018 के चुनाव में ओली ने भारत विरोधी अभियान चलाया था और चुनावी प्रचार के दौरान भारत पर आरोप लगाया था कि वो नेपाल की आंतरिक राजनीति में बहुत ज़्यादा दख़ल देता है.
इस दौरान चीन अपने पैसे और दूसरी मदद से नेपाल के साथ अपने रिश्ते को मज़बूत करने में लगा था.
दो साल से नेपाल में चीनी राजदूत हाओ यांकी इस दौरान दुनिया को बढ़ चढ़ कर बता रहीं थीं कि चीन नेपाल के लिए कितना कुछ कर रहा है.
ट्वीट के ज़रिए डिप्लोमेसी
हाओ यांकी चीन के उन राजनयिकों में से हैं जो सोशल मीडिया ख़ासकर ट्विटर का ख़ूब इस्तेमाल करते हैं. ट्विटर ख़ुद चीन में प्रतिबंधित है लेकिन चीनी राजनयिक चीन की छवि को बेहतर करने, उसकी आवाज़ को बुलंद करने और चीनी की विवादित नीतियों का बचाव करने के लिए ट्विटर का ख़ूब इस्तेमाल करते हैं.
हाओ के ट्विटर पर 40 हज़ार से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स हैं और वो उन सबको हमेशा याद दिलाती रहती हैं कि चीन और नेपाल के रिश्ते कितने गहरे हैं.
कभी-कभी वो नए साल की मुबारकबाद देती हैं, कभी फ़िल्मों की टिकट को तोहफ़े में देती हैं, कभी बहुत ही कलात्मक तरीक़े से खींचे गए पोर्टरेट्स और कभी अपने साथियों के ग़ुस्से वाले ट्वीट को री-ट्वीट करती हैं.
इन दिनों उनके ज़्यादातर ट्वीट्स चीन पर कोरोना महामारी की जानकारी छुपाने के लग रहे आरोपों के बचाव के लिए होते हैं. इसके अलावा वो कोरोना महामारी के दौरान नेपाल को चीन से मिल रही मदद के बारे में भी ख़ूब ट्वीट करती हैं.
ये सबकुछ वो बहुत ही ख़ामोशी से करती हैं, सिर्फ़ एक बार उन्होंने नेपाल के अंग्रेज़ी अख़बार काठमांडु पोस्ट को बुरा-भला कहा था जब अख़बार ने एक लेख छापा था जिसमें कोरोना वायरस को कंट्रोल से बाहर जाने के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहराया गया था.
हाओ ने जनवरी में चीनी शहर वुहान (जहां से कोरोना की शुरुआत हुई थी) में रह रहे कुछ नेपाली छात्रों का एक इंटरव्यू ट्वीट किया था. नेपाली छात्र कह रहे थे कि उनका स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक है, लेकिन ये उस वक़्त की बात है जब दुनिया ने कोरोना के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहराना नहीं शुरू किया था.
अगर आप उनके सोशल पेज पर जाएं तो बिना ज़्यादा मेहनत किए हुए आपको पता चल जाएगा कि वो चीन और नेपाल की बढ़ती नज़दीकियों की कितनी सराहना करती हैं.
The medical supplies including masks, PPEs, thermometers, PCR machines, testing kits, etc. donated by Xizang Autonomous Region were handed over to our Nepali friends today on China-Nepal Friendship Bridge at Tatopani!
— Ambassador Hou Yanqi (@PRCAmbNepal) April 22, 2020
हिमाल र नदीले जोडिएका छिमेकी हौँ । हाम्रो मित्रता अमर रहोस् । pic.twitter.com/7K5XCFo3tE
अप्रैल में उन्होंने नेपाली भाषा में ट्वीट किया, "हमलोग पड़ोसी हैं जो पहाड़ों और नदियों से जुड़े हुए हैं. हमारी दोस्ती अमर रहे."
अभी हाल ही में उन्होंने ट्वीट किया, "ज़रूरत के वक़्त काम आने वाला दोस्त ही असल में दोस्त है. चीन हमेशा नेपाल के साथ खड़ा रहेगा."
हाओ यांकी की नेपाल में सक्रियता और राजनयिक गतिविधियां भारत के काम करने के तरीक़े के ठीक उलट है.
नेपाल की लगातार कोशिशों के बावजूद भारत सीमा विवाद के बारे में बातचीत करने के लिए भी तैयार नहीं हुआ और नेपाल की जायज़ शिकायतों को ये कहते हुए ख़ारिज करता रहा कि नेपाल ये सबकुछ चीन के उकसावे पर कर रहा है.
It's a great pleasure to attend the Handover Ceremony for China Aid Medical Materials to Nepal with Hon. @dhbhanu. Actions speak louder than words! #ChinaNepalSolidarity is not just words but actions taken by the two peoples. Let's win the final victory against the pandemic! pic.twitter.com/kG8ztGsEgq
— Ambassador Hou Yanqi (@PRCAmbNepal) May 11, 2020
प्रभुत्व के लिए संघर्ष
नेपाल में चीनी राजदूत के विनम्र रवैये के कारण ये पता लगाना मुश्किल है कि नेपाली राजनीति में उनका कितना दख़ल है.
कुछ लोगों का मानना है कि गुटों में बंटी नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी को टूटने से बचाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और अगर राजदूत यांकी ने हस्तक्षेप नहीं किया होता तो प्रधानमंत्री ओली को कब का बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता.
राजनयिक लोग ज़्यादातर अपनी पोस्टिंग वाले देश की आंतरिक राजनीति से दूर ही रहते हैं, लेकिन नेपाल में अक्सर ऐसा नहीं होता है.
भारत में नेपाल के राजदूत रह चुके लोकराज बराल ने नेपाली टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "अपनी विदेश नीति के उद्देश्यों हेतु नेपाली राजनीति को माइक्रो मैनेज (छोटी से छोटी चीज़ को तय करना ) करने के लिए हमलोग चीन का नया दाव देख रहे हैं."
बराल ने आगे कहा, चीन का ये दाव हमें दिलाता है कि कुछ साल पहले तक नेपाल में यही रोल भारत अदा करता था.
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि राजदूत हाओ यांकी भारत के लिए परेशानी का कारण बन गईं हैं.
भारत के एक निजी अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल विऑन (WION) ने नेपाल में चीनी राजदूत को कुछ इस तरह से बयान किया था, "नेपाल का भारत से तलाक़ के पीछे का दिमाग."