अमेरिका ने पाकिस्तान को दिया झटका, भारत पर दिखाई नरमी
अमेरिकी विदेश मंत्री ने जिस लिस्ट को जारी किया है, उसमें पाकिस्तान, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और चीन समेत कई देशों के नाम हैं लेकिन भारत को इस लिस्ट से बाहर रखा है. अमेरिका के इस फ़ैसले की आलोचना हो रही है.
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने बुधवार को धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने वाले देशों के लिए 'कंट्रीज़ ऑफ़ पर्टीकुलर कंसर्न' यानी सीपीसी की सूची जारी की है.
धार्मिक आज़ादी का आकलन करने वाले एक अमेरिकी पैनल 'यूएस कमिशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ़्रीडम' के इस लिस्ट में भारत का नाम शामिल करने का सुझाव दिया था लेकिन इसके बावजूद बाइडन प्रशासन ने भारत का नाम सूची में शामिल नहीं किया.
इस सूची में पाकिस्तान, चीन, ईरान, रूस, सऊदी अरब, एरिट्रिया, ताज़िकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान और बर्मा सहित 10 देशों को शामिल किया गया है.
हर साल अमेरिका ऐसे देशों और संगठनों की लिस्ट जारी करता है, जो अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं. इसके अलावा अमेरिका ने अल्जीरिया, कोमोरोस, क्यूबा और निकारागुआ को विशेष निगरानी सूची में रखा है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के गंभीर उल्लंघन में शामिल हैं.
https://twitter.com/nahaltoosi/status/1460987341112233992
धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर काम करने वाले अमेरिकी कमिशन की सिफ़ारिश के बावजूद सीपीसी लिस्ट में भारत को शामिल नहीं करने पर कई लोग सवाल भी खड़े कर रहे हैं.
पॉलिटिको की सीनियर फॉरन अफ़ेयर्स संवाददाता नाहल तूसी ने ट्वीट कर कहा है, ''अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भारत में मुसलमानों के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के बावजूद उसे धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में सीपीसी यानी 'कंट्री ऑफ पर्टीकुलर कंसर्न' की लिस्ट से बाहर रखने का फ़ैसला किया है.''
''दूसरी तरफ़ धार्मिक स्वतंत्रता पर काम करने वाले अमेरिकी कमिशन ने भारत को इस लिस्ट में डालने का आग्रह किया था. लेकिन बाइडन प्रशासन भारत को अहम साझेदार के तौर पर देखता है और चीन के मामले में भारत की अहमियत अमेरिका के लिए और बढ़ गई है. बाइडन प्रशासन ने कहा था कि उसकी विदेश नीति में मानवाधिकार केंद्र में रहेगा लेकिन उसे छोड़ने का यह एक और उदाहरण है.''
इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल ने भारत को सीपीसी सूची में नहीं डालने पर अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की आलोचना की है. इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल ने ट्वीट कर कहा है, ''आईएएमसी ब्लिंकन के उस फ़ैसले की निंदा करता है, जिसमें भारत को धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन वाली सीपीसी लिस्ट से बाहर रखा गया है जबकि अमेरिकी कमिशन ने भारत को इस लिस्ट में डालने की सिफ़ारिश की थी.''
https://twitter.com/IAMCouncil/status/1461158213202726912
आईएएमसी ने लिखा है, ''यह खेदजनक है कि बाइडन प्रशासन भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर हो रहे व्यापक हमलों को लेकर ख़ामोश है. बाइडन प्रशासन नरेंद्र मोदी सरकार को भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले के लिए प्रोत्साहित कर रहा है.''
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https://twitter.com/SecBlinken/status/1460993184352423937
ये सूची जारी करते हुए ब्लिंकन ने कहा कि अमेरिका हर देश में धर्म की स्वतंत्रता की वकालत करने के लिए प्रतिबद्ध है. हमने पाया है कि दुनिया भर में बहुत से देशों में सरकारें लोगों को अपनी मान्यताओं के अनुसार जीवन जीने के कारण परेशान, गिरफ्तार कर जेल में डाल देती हैं, उन्हें पीटा जाता है.
ब्लिंकन ने कहा कि प्रशासन प्रत्येक व्यक्ति के धर्म की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करता है. यूएस कमिशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ़्रीडम ने इस सूची में भारत को शामिल ना करने पर हैरानी जताई है.
आयोग ने कुछ अन्य देशों के सुझाव भी दिए गए थे जिन्हें बाइडन प्रशासन ने सूची में शामिल नहीं किया.
आयोग ने अपने बयान में कहा है, ''साल 2020 में धार्मिक आज़ादी के आकलन के बाद सीपीसी सूची के लिए चार देशों के नाम विदेश मंत्रालय को सुझाए गए थे, जिनमें- भारत, रूस, सीरिया और वियतनाम शामिल हैं लेकिन रूस को छोड़ कर इनमें से किसी देश को सूची में शामिल नहीं किया गया.''
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आयोग ने भारत को लेकर जिन बिंदुओं पर चिंता जताई थी, उनमें नागरिकता संशोधन क़ानून सबसे अहम था. आयोग की रिपोर्ट में कहा गया, ''दिल्ली में हुए दंगों के दौरान हिंदू भीड़ को क्लीनचिट दी गई और मुस्लिम लोगों पर अति बल प्रयोग किया गया.''
हालांकि आयोग की सिफ़ारिशें मानने के लिए अमेरिकी प्रशासन बाध्य नहीं होता है.
भारत पर USCIRF सख़्त
इसी साल अप्रैल में धार्मिक आज़ादी का आकलन करने वाले एक अमेरिकी पैनल 'यूएस कमिशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ़्रीडम' (USCIRF) ने लातागार दूसरे साल ये सुझाव दिया था कि साल 2020 में सबसे ज़्यादा धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने के कारण भारत को 'कंट्रीज़ ऑफ़ पर्टीकुलर कंसर्न' यानी सीपीसी की सूची में डाला जाना चाहिए.
दूसरा सुझाव ये दिया था कि प्रशासन को अंतर-धार्मिक संवाद, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय फ़ोरम पर हर समुदाय को बराबरी के हक़ को बढ़ावा देना चाहिए.
इसके अलावा अमेरिकी कांग्रेस को सुझाव दिया गया था कि वह अमेरिका-भारत द्विपक्षीय रिश्तों में भी इस मुद्दे को सुनवाई के माध्यम से, चिट्ठियों और प्रतिनिधि मंडल के गठन के ज़रिए बार-बार उठाए.
हालांकि आयोग की सिफ़ारिशें मानने के लिए प्रशासन बाध्य नहीं है. ट्रंप प्रशासन ने पिछले साल भारत को सीपीसी सूची में शामिल करने के यूएससीआईआरएफड की सिफ़ारिश को अस्वीकार कर दिया था. इसी तरह इस बार बाइडन प्रशासन ने भी भारत को इस सूची से बाहर रखा है.
साल 2021 की रिपोर्ट में आयोग ने जिन मुद्दों पर चिंता जताई थी उनमें नागरिकता संशोधन क़ानून सबसे अहम है. यह आयोग हर साल दुनिया भर के उन देशों के बारे में विस्तृत रिपोर्ट जारी करता है जहां कथित तौर पर धार्मिक स्वतंत्रता की कमी या उल्लंघन और धार्मिक तौर पर अल्पसंख्यक समुदायों के ख़िलाफ़ भेदभाव होता है.
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