अमरीका के चुनावी मैदान में भारत-पाकिस्तान की ये महिलाएं
भारत, पाकिस्तान से अमरीका में जा बसीं कुछ महिलाएं वहां राज्यों के चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रही हैं.
अमरीका में ये अक्सर कहा जाता है कि अगर टेबल के पास बैठने की सीट नहीं मिली तो आपको मेन्यू में जगह मिलेगी.
तीन नवंबर को होने वाले अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव को कई लोग अमरीकी इतिहास के अब तक के सबसे महत्वपूर्ण चुनाव बता रहे हैं.
यहां कोरोना वायरस महामारी से अब तक दो लाख लोगों की मौत हो चुकी है और लाखों की संख्या में लोगों की नौकरियां भी गईं और इस दरम्यान अमरीका राजनीतिक और सामाजिक रूप से बँटा रहा.
ब्लैक लाइव्स मैटर्स का विरोध चल रहा है और कई शहर हिंसा और पुलिस की ज्यादती से प्रभावित रहे.
तीन नवंबर को ही कई राज्यों के चुनाव भी होने हैं. बीबीसी ने इन चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रही कुछ पाकिस्तानी और भारतीय महिलाओं से बात की जिनकी किस्मत का फ़ैसला भी इसी ख़ास दिन होना है.
सबीना ज़फ़र- पाकिस्तानी अमरीकी- सैन रैमन के मेयर पद के लिए मैदान में हैं.
सैन रैमन पश्चिम कैलिफोर्निया राज्य में सैन फ्रांसिस्को से क़रीब 35 मील पूरब में स्थित एक ख़ूबसूरत शहर है.
सबीना ज़ाफ़र फ़िलहाल वाइस मेयर हैं और अबकी बार मेयर के लिए चुनाव लड़ रही हैं.
उनके पिता राजा शाहिद ज़फ़र बेनज़ीर भुट्टो सरकार में पाकिस्तान के केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं.
ज़ूम पर बातचीत में उन्होंने मुझसे कहा, "मैं अपने पिता के कामों की प्रशंसा होते देखते पली बढ़ी हूं."
शादी के बाद वो अमरीका आईं और वो सैन रैमन में रहने लगीं. विविध आबादी वाले इस शहर की जनसंख्या 82 हज़ार है और इसमें लगातार इजाफ़ा हो रहा है.
सबीना बताती हैं कि इस शहर में 52 फ़ीसदी लोग काले हैं और यह बीते 10-15 सालों में हुआ है.
सबीना यहां की सिटी काउंसिल में जगह बनाने वाली पहली एशियाई अमरीकी हैं.
तो, राजनीति में उनकी एंट्री कैसे हुई?
सबीना कहती हैं सात आठ साल पहले सांसद एरिक स्वालवेल के साथ काम करने के दौरान "मेरे अंदर सोया समाज सेवा का जुनून बाहर आया."
एक परिचित ने इमर्ज कैलिफोर्निया नाम के एक प्रोग्राम के बारे में बताया जिसे डेमोक्रेट महिलाओं को चुनाव में उतरने के लिए ट्रेनिंग देने के लिए डिज़ाइन किया गया था.
इस ट्रेनिंग में अलग अलग पृष्ठभूमि की लगभग 40 महिलाएं शामिल थीं.
वो कहती हैं, "आप एक बड़े इकोसिस्टम में शामिल हो जाते हैं कि चुनाव कैसे लड़ना है, उन महिलाओं के साथ कैसे आपसी संबंध (बहनापा) बनाना है जो चुनाव में उतरने की तैयारी में जुटी हैं."
"उस प्रोग्राम में ट्रेनिंग के बाद सवाल ये नहीं था कि कब बल्कि सवाल ये था कि कैसे."
उन्होंने इसके बाद 2018 में सिटी काउंसिल में जगह बनाई और नवंबर 2019 में एक साल के लिए डिप्टी मेयर नियुक्त की गईं.
उनका कहना है कि कॉरपोरेट और टेक्नोलॉजी में उनके अनुभव से उन्हें मदद मिली.
वो कहती हैं, "कोई भी आवाज़ उठाने से पहले मुझे सीखना और सुनना पसंद है... जब कुछ बहुत महत्वपूर्ण हो और आपके दिल के क़रीब भी तो आपका आवाज़ उठाना भी उतना ही ज़रूरी है."
सुरक्षा, ट्रैफिक, जलवायु परिवर्तन वो कुछ अहम स्थानीय मुद्दे हैं जिस पर वो काम करना चाहेंगी.
वो कहती हैं, "हम सभी इस देश में प्रवासी हैं. चाहे आप 11 पीढ़ियां पहले आए हों या एक पीढ़ी पहले. सामूहिक रूप से यह धरती हम सब की है."
"यह बेहद महत्वपूर्ण है, ख़ासकर दक्षिण एशियाई समुदायों के लिए कि हमारी आवाज़ सुनी जाए."
राधिका कुन्नेल- भारतीय अमरीकी- नेवादा राज्य असेंबली डिस्ट्रिक्ट 2 के लिए मैदान में
राधिका एक वैज्ञानिक हैं. राजनीति में उनके क़दम कैसे पड़े इस पर वो 11 सितंबर 2001 (9/11) के उस दिन को याद करती हैं.
वो कहती हैं, "मैं किसी को टेक्स्ट कर रही थी. वो मंगलवार का दिन था... मैं एक प्रयोग पर काम कर रही थी. तभी मैंने लैब में काम कर रहे सहयोगियों को ज़ोर ज़ोर से 'ओह माइ गॉड, ओह माइ गॉड...' कहते सुना."
"दुनिया भर के टीवी नेटवर्क ट्विन टावर्स से निकलते भयावह लहराते धुंए की तस्वीरें दिखा रहे थे."
"उसके बाद, मैंने ऐसी भी बातें सुनी कि अपने देश वापस जाओ. वो पड़ोसी जो पहले बहुत ज़्यादा फ़्रेंडली थे, अब फ़्रेंडली नहीं रह गए, यहां तक कि उन्होंने हमसे बातचीत तक बंद कर दी थी."
वो कहती हैं, "उसका मुझ पर इतना प्रभाव पड़ा कि बाद के समय में मैं और अधिक संवेदनशील हो गई और साथ ही इस बात की हिमायती भी कि हमारा प्रतिनिधित्व होना चाहिए."
राधिका 1996 में माइक्रोबायोलॉजी विभाग में पीएचडी करने अमरीका आईं और उनका थीसिस कैंसर बायोलॉजी पर था.
बाद में, वो एक प्रवासी के तौर पर अपनी ज़िंदगी में व्यस्त हो गईं.
राजनीति में उतरने का दूसरा कारण वो विधायिका में वैज्ञानिकों के कम प्रतिनिधित्व को भी बताती हैं.
वो कहती हैं, "अगर निर्णय लेने की भूमिका में वैज्ञानिक नहीं होंगे तो जो विज्ञान प्रयोगशाला में तैयार की जाती है उसे कैसे ट्रांसलेट किया जाएगा क्योंकि आपके पास फ़ैसला लेने वाले लोग नहीं हैं जो इसके महत्व को समझ सकें."
राधिका स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के साथ ही राज्य में विविधता को और बेहतर बनाना चाहती हैं.
फ़राह ख़ान- पाकिस्तानी अमरीकी- कैलिफोर्निया के अरवाइन शहर में मेयर की चुनावी दौड़ में.
फ़राह तीन साल की उम्र में अमरीका आईं थीं. मां लाहौर और पिता कराची से हैं.
2004 में दक्षिण कैलिफोर्निया में आने से पहले वो शिकागो और सैन फ्रांसिस्को में पली बढ़ीं.
स्थानीय गैर लाभकारी संस्थाओं के साथ उनके काम करने के दौरान उन्होंने सिटी काउंसिल की सदस्यता के लिए उतरना तय किया.
2016 में वो मैदान में उतरीं और हार गईं. उससे उन्हें खूब अनुभव मिला.
फ़राह कहती हैं, "जब आप चुनाव लड़ रहे होते हैं, लोगों को लगता है कि यह बेहत प्रतिष्ठा की बात है लेकिन यह वाकई कठोर होता है. आपको कई तरह की बातें सुनने को मिलती हैं, जैसे हो सकता है यह शहर इतनी विविधता के लिए तैयार ही न हो. और आप पूछते हैं कि इसका क्या मतलब है?"
"फिर आप सुनते हैं कि आपके जैसे नाम के लोग शायद न चुने जाएं."
"तो आप सवाल करते हैं, हमारे पीछे आ रहे लड़के लड़कियों से कि वो क्या सोच रहे हैं. जब राजनीति में अपना प्रतिनिधित्व नहीं देखते हैं तो उन्हें क्या लगता है."
फ़राह कहती हैं, "यही मेरे लिए प्रेरणा बन गई और मैं एक बार फिर 2018 में मैदान में उतरी और जीत गई."
फ़राह के मुताबिक वर्तमान मेयर यह नहीं समझते कि समुदाय आज कितना विविध और प्रगतिशील बन गया है.
"मेरा मक़सद लोगों को आपस में जोड़ना और एक साथ लाने का है."
पद्मा कुप्पा- भारतीय अमरीकी- मिशिगन राज्य में ट्रॉय और क्लॉसन का फिर से प्रतिनिधित्व करने की रेस में
70 के दशक में जब पद्मा अपनी मां के साथ अमरीका गईं तो उनके पिता पहले से ही वहां रह रहे थे.
पद्मा किताबें पढ़ने की शौकीन, लेखिका और गणित पसंद करने वाली महिला हैं. इसलिए जब 1981 में उनके माता-पिता ने भारत वापस लौटने का फ़ैसला किया तो उन्हें लगा कि उनके मौजूदा विकल्प उनसे छीन लिए गए हों. तब वो 16 बरस की थीं.
लेकिन वो 1998 में मास्टर्स करने के लिए अमरीका वापस लौट आईं. उनके पिता और भाई दोनों पीएचडी हैं.
पद्मा कहती हैं, "जब मैं मिशिगन आई तो यहां के लोग अन्य संस्कृतियों के लोगों से परिचित नहीं थे."
"हम अन्य हैं क्योंकि हम अप्रवासी के रूप में अलग रहते हैं."
इंजीनियर और एक अनुभवी प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में उनका करियर ऑटोमोटिव, फाइनैंस और आईटी इंडस्ट्री में रहा है.
पद्मा महानगर डेट्रॉयट के स्थानीय भारतीय मंदिर में स्वेच्छा से काम करते हुए विभिन्न धर्मों से जुड़ा काम किया.
पद्मा कहती हैं, "मैंने मंदिर में स्वेच्छा से काम किया क्योंकि मैं चाहती थी कि बच्चे अपनापन महसूस करें. क्योंकि आप ऐसी जगह पर हैं जहां सभी ब्राउन हैं, आप उनके बीच आराम से गुम हो जाते हैं. यहां आपको आराम और अपनापन मिलता है."
"मैं चाहती थी कि वो हिंदू धर्म को अपने संपूर्ण रूप में समझें, न कि जैसा कि हम अपने घरों में करते हैं और उस पर बातें भी नहीं करते."
स्थानीय राजनीति के नेताओं के लिए लोगों से मिलने के दौरान उन्हें काफी अनुभव प्राप्त हुआ.
2018 में वो जीती थीं और फिर से चुनावी मैदान में हैं.