उत्तर कोरिया के भीतर ऐसी है दुनिया...
उत्तर कोरिया के अंदर जाकर वहां के आम लोगों से बात करना लगभग नामुमकिन है. अगर कोई बाहरी व्यक्ति उत्तर कोरिया में जाता है तो पुलिस उस पर सख़्त पहरा रखती है. वहां के लोगों को भी बाहरी दुनिया से कोई संपर्क करने नहीं दिया जाता.
लेकिन उत्तर कोरिया के दो बहादुर नागरिक मौत या कैद के खतरे के बावजूद बीबीसी से बात करने के लिए तैयार हो गए.
उत्तर कोरिया में नेता किम जोंग उन को भगवान की तरह माना जाता है
उत्तर कोरिया के अंदर जाकर वहां के आम लोगों से बात करना लगभग नामुमकिन है. अगर कोई बाहरी व्यक्ति उत्तर कोरिया में जाता है तो पुलिस उस पर सख़्त पहरा रखती है. वहां के लोगों को भी बाहरी दुनिया से कोई संपर्क करने नहीं दिया जाता.
लेकिन उत्तर कोरिया के दो बहादुर नागरिक मौत या कैद के खतरे के बावजूद बीबीसी से बात करने के लिए तैयार हो गए.
उत्तर कोरिया में नेता किम जोंग उन को भगवान की तरह माना जाता है, ऐसे में उन पर सवाल उठाने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता.
उत्तर कोरिया के लोगों को हमेशा से यही सिखाया जाता है कि किम जोंग उन सबकुछ जानते हैं और अगर उन्हें किम के खिलाफ़ विचार रखने वाले किसी व्यक्ति के बारे में पता चले तो वो प्रशासन को इसकी जानकारी दें, फिर चाहे वो शख़्स उनके घर का ही क्यों ना हो.
ऐसे में किम जोंग उन के प्रशासन के ख़िलाफ़ बोलने की हिम्मत करने वाली सुन हुइ जानती हैं कि वो ऐसा करके अपनी जान ख़तरे में डाल रही हैं.
उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बीबीसी ने उनकी पहचान छिपाई है और उनके असली नाम की जगह यहां उनका बदला हुआ नाम लिखा गया है.
अगर उत्तर कोरिया की सरकार को सुन हुइ की असली पहचान पता चल जाती, तो उन्हें कड़ी सज़ा दी जा सकती थी या उन्हें फांसी तक पर लटकाया जा सकता था. जेल की सज़ा सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि उनकी तीन पीढ़ियों को भुगतनी पड़ती.
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'किम पैसे चूसने वाला वैम्पायर'
सुन हुइ पेशे से मार्केट ट्रेडर हैं. वो नाराज़गी भरे लहज़े में कहती हैं, "किम जोंग उन बिज़नसमैन की तरह काम करते हैं और उनके इस रवैया की ज़्यादातर लोग आलोचना करते हैं. वो हमारे सारे पैसे हमसे ले लेते हैं. "
"लोग कहते हैं कि ये छोटा सा दिखने वाला आदमी वैम्पायर की तरह अपने दिमाग से हमारे पैसे को चूस लेता है."
सुन हुइ अपने पति और दो बेटियों के साथ रहती हैं. जब उनका काम अच्छा चलता है तो उनका परिवार तीन वक़्त की रोटी खाता है. और अगर नहीं चलता तो उन्हें रूखा-सूखा खाकर काम चलाना पड़ता है.
सुन जिस बाज़ार में काम करती हैं वहां स्ट्रीट फ़ूड, कपड़े और तस्करी किए हुए इलेक्ट्रॉनिक सामान मिलते हैं. इस बाज़ार पर 50 लाख से ज़्यादा लोगों का रोज़गार निर्भर करता है.
ये मार्केट ट्रेड उत्तर कोरिया की सरकार के कट्टर साम्यवाद के उलट है. लेकिन उत्तर कोरिया के ख़िलाफ़ लगाए गए कई आर्थिक प्रतिबंधों के बीच ये बाज़ार एक बड़ी आबादी का पेट भी भर रहा है.
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उत्तर कोरिया की सरकार इस मार्केट के ख़िलाफ़ कोई कदम इसलिए भी नहीं उठाती कि वो नहीं चाहती कि 90 के दशक में पड़े अकाल जैसी स्थिति उसके सामने फिर खड़ी हो.
स्थानीय लोगों को लगता है कि किम जोंग उन में सकारात्मकता बढ़ रही है शायद इसीलिए वो इस व्यापार के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं करते.
इस मार्केट में कई बार अफ़वाहों का बाज़ार भी गर्म रहता है.
सुन हुइ कहती हैं कि मैंने कुछ लोगों को मार्केट में कहते हुए सुना है कि अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप आने वाले हैं.
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"लोग दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच होने वाली मुलाकात के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं जानते हैं. लेकिन यहां के लोगों में किसी को भी अमरीका पसंद नहीं है."
वो आगे कहती हैं, "हम उत्तर कोरिया के लोग मानते हैं कि हमारी गरीबी का कारण ये है कि अमरीका ने हमें दक्षिण कोरिया से अलग कर दिया."
उत्तर कोरिया की सरकार अपने देश की कोई जानकारी बाहर जाने नहीं देती. उसके इस प्रोपगैंडा का अमरीका और उसका पड़ोसी देश दक्षिण कोरिया आलोचना करता रहा है.
हुइ कहती हैं, "लेकिन चीज़ें बीते कुछ वक्त में कुछ बदली हैं. अब अमरीका कह रहा है कि हमें दक्षिण कोरिया से करीबियां बढ़ानी चाहिए. ये एक अहम बदलाव है. "
दक्षिण कोरिया और अमरीका से रिश्ते बेहतर करने के लिए हाल ही में उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु परीक्षण स्थल को नष्ट कर दिया था. जल्द ही उत्तर कोरिया और अमरीका के प्रमुख नेता मुलाकात करने वाले हैं.
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उत्तर कोरिया के एक और नागरिक चोल हो ने भी बीबीसी से बात की. उन्होंने वहां के उन लोगों के असंतोष के बारे में बताया जो अपनी रोज़ाना की ज़िंदगी में बेपनाह मुश्किलें झेलते हैं.
चोल हो ने बताया, "कई बार लोगों को गलत चीज़ें बोलने के आरोप में पकड़ लिया जाता है. लोग अचानक गायब हो जाते हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों से ऐसा नहीं हो रहा है."
चोल हो जिन अचानक गायब हुए लोगों की बात कर रहे हैं उन्हें अक्सर उत्तर कोरिया की जेल शिविर में भेज दिया जाता है. यहां उन लोगों को बहुत टॉर्चर किया जाता है, उन्हें खुद की कब्रें खोदने पर मजबूर किया जाता है. इतना ही नहीं, सज़ा के तौर पर यहां लोगों का रेप कर दिया जाता है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक एक शिविर में 20,000 कैदियों को रखा जा सकता है.
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सुन हुइ कहती हैं कि इन शिविरों में मिलने वाली डरावनी सज़ा की वजह से ही लोग चुप रहते हैं.
वो बताती हैं कि जहां वो रहती हैं वहां के कई लोगों को पकड़कर इन शिविरों में भेजा जा चुका है.
चोल हो का मानना है कि रक्षा विभाग के कुछ लोग सिर्फ अपने नंबर बढ़ाने के लिए लोगों पर झूठे आरोप लगाकर शिविर में भेज देते हैं. वो लोगों से कहलवाते हैं कि वो चीन जाने की प्लानिंग कर रहे थे.
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बाहर से लाई हुई फिल्म देखने पर 10 साल सज़ा
अगर उत्तर कोरिया में कोई तस्करी करके विदेश से लाई गई फ़िल्में और टीवी कार्यक्रम देखता पकड़ा जाता है तो उसे हार्ड लेबर कैंप में 10 साल की कड़ी सज़ा भुगतनी पड़ती है.
दरअसल उत्तर कोरिया की सरकार नहीं चाहती कि उनके नागरिक विदेश का मीडिया देखें. ये उनके पश्चिम विरोधी प्रोपगैंडा का हिस्सा है.
लेकिन उत्तर कोरिया के लोग भी चीन के रास्ते यूएसबी स्टीक और डीवीडी में विदेशी फिल्में और कार्यक्रम ले आते हैं.
उत्तर कोरिया के लोग अपनी कोशिशों से तो बाहरी दुनिया में झांक रहे हैं लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि दुनिया उन्हें किस नज़र से देखती है.
चोल कहते हैं कि वो आजतक सिर्फ उत्तर कोरिया के लोगों से ही मिले हैं. उन्हें नहीं पता दूसरे देशों के लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं.
लेकिन वो अपने देश के लोगों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि भले ही यहां बहुत मुश्किलें हैं पर यहां के लोग अच्छे हैं.
चोल कहते हैं, "हमारे यहां एक कहावत है कि पड़ोसी रिश्तेदारों से बेहतर होते हैं. अगर पड़ोसियों को कुछ हो जाता है तो हम उनसे मिलने जाते हैं."
सुन हुइ बताती हैं कि वो खुद भी रात में कई बार दक्षिण कोरिया के कार्यक्रम और विदेशी फिल्में देखती हैं.
"लेकिन अगर कोई ये देखता पकड़ा जाता है तो कई बार कड़ी सज़ा और मोटी घूस देनी पड़ती है. इस सबके के बावजूद लोग अब भी ये सब देखना चाहते हैं."
हुइ बताती हैं कि दक्षिण कोरिया के कार्यक्रम समझने में आसान होते हैं. लोग जानना चाहते हैं कि दक्षिण कोरिया के लोग किस तरह की ज़िंदगी जीते हैं.
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उत्तर कोरिया के कुछ लोग वहां की ज़िंदगी से तंग आकर भाग जाते हैं. वो अपनी जान जोख़िम में डालकर चीन के रास्ते दक्षिण कोरिया निकल जाते हैं.
हाल के सालों में लोगों का भागना कम हुआ है. इसकी वजह उत्तर कोरिया की सीमा पर सुरक्षाबलों की चौकसी में बढ़ोतरी और चीन के साथ विवादित समझौता है. इस समझौते के तहत अगर चीन में उत्तर कोरिया को कोई नागरिक पाया जाता है तो उसे स्वदेश प्रत्यर्पित कर दिया जाएगा.
सुन हुइ देश की सीमा से काफी दूर रहती हैं. वो बताती हैं कि उनके इलाके से भागने वाले लोग कम हैं.
अगर कोई भाग जाता है तो उसके पीछे बचे लोग दक्षिण कोरिया का नाम नहीं लेते.
सुन बताती हैं, "जब कोई पड़ोसी गायब हो जाता है तो हम कहते हैं कि वो लोअर टाउन चला गया है."
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